कर्नाटक के स्कूल में नमाज़ की अनुमति देने वाली प्रधानाध्यापिका को किया गया निलंबित

नमाज़ पहले बाकी सब बाद में!

कर्नाटक प्रधानाध्यापिका
मुख्य बिंदु

दरअसल, कर्नाटक के कोलार जिले के एक सरकारी स्कूल की प्रधानाध्यापिका को मुस्लिम छात्रों को परिसर में शुक्रवार की नमाज़़ करने की अनुमति देने के कारण निलंबित कर दिया गया है। उनके निलंबन का समाचार आपको संतोष देगा परन्तु, अध्यापिका महोदया ने एक विशेष धर्म के बच्चों को जो विशेषाधिकार दिया वह आपको चिंतित कर सकता है। आपको यह भी बता दें कि इस निर्णय के पीछे अध्यापिका महोदया का कहना है कि वो यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि मुस्लिम बच्चे अपनी कक्षाएं मिस न करें।

यह घटना कर्नाटक बेंगलुरु-चित्तूर हाईवे पर स्थित बाले चांगप्पा गवर्नमेंट हायर प्राइमरी स्कूल में हुई और प्रधानाध्यापिका का नाम है- उमा देवी। स्कूल में लगभग 400 छात्र हैं और उनमें सिर्फ 165 मुस्लिम समुदाय के हैं और बाकी 235 बच्चे हिन्दू या अन्य धर्मों के। स्कूल के अधिकारियों ने हाल ही में छात्रों को तीन कारणों से परिसर में शुक्रवार की प्रार्थना करने की अनुमति देने का फैसला किया।

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नमाज़ अदा करने का वीडियो हुआ वायरल

एक, जो छात्र प्रार्थना के लिए बाहर जा रहे थे, वे स्कूल नहीं लौट रहे थे इसलिए उनकी पढ़ाई बाधित हो रही थी। दूसरा, उन्हेंं बाहर जाने की अनुमति देने से उनमें कोविड-19 से संक्रमित होने और अन्य छात्रों में संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ गई। तीसरा, दुर्घटनाओं से बचने के लिए छात्रों को नजदीकी मस्जिद तक पहुंचने के लिए व्यस्त राष्ट्रीय राजमार्ग को पार करना होगा। 21 जनवरी को स्कूल में नमाज़ अदा करने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। जल्द ही लोगों ने प्रधानाध्यापक के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि उसने नियमों का उल्लंघन किया है। प्रदर्शन करने के अलावा उन्होंने उपायुक्त को एक अभ्यावेदन प्रस्तुत किया, जिन्होंने आरोपों की जांच के आदेश दिए ।

सार्वजनिक निर्देश (कोलार) के उप निदेशक रेवनसिदप्पा ने एक जांच की। उन्होने कहा कि प्रधानाध्यापक ने छात्रों को स्कूल में प्रार्थना करने की अनुमति नहीं दी थी, लेकिन बाद में उन्होंने छात्रों को राष्ट्रीय राजमार्ग पार करने से रोकने के लिए अनुमति दे दी। ऊपर से उनमें से कई छात्र दोपहर के सत्र के लिए स्कूल नहीं लौट रहे थे। प्रधानाध्यापिका ने कहा कि उन्हेंं यह भी डर था कि परिसर से बाहर निकलने वाले लोग संक्रमित हो सकते हैं। खंड शिक्षा अधिकारी (मुलबगल) गिरिजेश्वरी देवी ने कहा कि कक्षा 6 से 8 के छात्रों ने स्कूल में नमाज़ अदा की। हालांकि, उन्हेंं सस्पेंड कर दिया गया है।

धार्मिक कट्टरता का बढ़ता प्रभाव

विद्यालय समानता, शिक्षा और चरित्र के महत्व को सिखाते है। ऐसा करना एक प्रधानाध्यापक का परम कर्तव्य है। स्वयं सोचिए, 6-8 कक्षा में पढ़ने वाले ये अबोध बच्चे धार्मिक रूप से इतने कट्टर होते जा रहें है कि शिक्षा, प्रधानाध्यापिका तथा विद्यालय प्रबंधन के आदेशों को दरकिनार करते हुए अपने शुक्रवार की नमाज़ को तवज्जो देते हैं। जरा सोचिए, धर्म ने इनमे कितनी कट्टरता भर दी है की सहपाठियों और अपनी जान की परवाह ना करते हुए ये अबोध बच्चे राष्ट्रीय राजमार्ग को पार कर कोविड के संक्रमण के इस दौर में भी अपने नमाज़ को तवज्जो देते हैं।

मुस्लिम तुष्टीकरण को महत्ता दे रही हैं विपक्षी पार्टियां 

इन्हें ना तो अपने पाठ  छुटने की चिंता है, ना ही कोविड संक्रमण का। इन्हें ना तो राष्ट्रीय राजमार्ग पर दौड़ती गाड़ियों की चिंता है और ना ही शासन के आदेश की परवाह। ‘भाड़ में जाए सब, नमाज़ महत्वपूर्ण है बस’ वाले नारे पर ये बच्चे चल रहें है। धार्मिक परंपरा को इन्होंने अपने निजी नहीं बल्कि सामाजिक अधिकार में परिवर्तित कर दिया है और जो प्रधानाध्यापिका इन्हें रोकने के लिए और समानता का पाठ तथा शिक्षा और अनुशासन का महत्व सीखाने के लिए नियुक्त है वो भी इनके आगे झुक जाती है।

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और अब जरा उन 235 बच्चों के मनोदशा के बारे में भी सोचिए जो विद्यालय द्वारा इन मुस्लिम बच्चों को प्रदान किए जानेवाले विशेषाधिकार को बस चुप चाप देखते है और सोचते है की धर्म तो उनका भी है फिर इन्हेंं ही ये विशेषाधिकार क्यों? शायद, इसलिए क्योंकि वो अनुशासन और व्यवस्था से अधिक धर्म को तवज्जो देते हैं। वैसे आपको ये बता दें की उन बच्चों को आजकल इस देश में एक विशेष वर्ग परिलक्षित कर रहा है जबकि मुस्लिम तुष्टीकरण को महत्ता देते हुए उनके धार्मिक आजादी को अराजकताओं में परिवर्तित करने की भूमिका में देश की विपक्षी पार्टियां हैं और 235 बच्चे देश के उन हिंदुओं को परिलक्षित करते है, जो ये सोच रहें है कि धर्म तो उनका भी है फिर मुसलमानों को ही रोड पर नमाज़ पढ़ने का अधिकार क्यों?

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