भारत ने नकली पर्यावरणविदों के मुंह पर जड़ा तमाचा, वन क्षेत्र में दर्ज की जबरदस्त वृद्धि

मुंहतोड़ जवाब दे रहा है भारत!

वन क्षेत्र
मुख्य बिंदु

वर्तमान परिदृश्य में विश्व जलवायु परिवर्तन की वैश्विक समस्या से जूझ रहा है। पश्चिम के देश जलवायु परिवर्तन के लिए विकासशील देशों को दोषी ठहराते हैं। वहीं, भारत ने पश्चिमी देशों को गलत ठहराते हुए यह साबित कर रह है कि  वह जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर सक्रिय है और इसी क्रम में बीते गुरुवार को जारी इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (ISFR) 2021 के अनुसार, आंध्र प्रदेश में 647 वर्ग किमी के अधिकतम वन क्षेत्र में वृद्धि के साथ, पिछले दो वर्षों में भारत के वन और वृक्षों के आवरण में 2,261 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने देश के वन संसाधनों के आकलन के लिए भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) की द्विवार्षिक रिपोर्ट जारी की। 2019 की रिपोर्ट की तुलना में इस बार की बढ़ोतरी में कुल 1,540 वर्ग किमी की वन भूमि जबकि 721 वर्ग किमी वृक्ष आवरण भूमि शामिल है।

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भारत के वन क्षेत्र में हुई वृद्धि

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा, “यह जानकर बहुत संतोष हुआ कि भारत में वृक्षों और वनों का आवरण बढ़ा है। रिपोर्ट उन पहलुओं को भी छूती है, जो जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं। हम हरित मिशन के दूसरे चरण में प्रवेश कर रहे हैं। मंत्रालय ने वन संरक्षण और लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए कई निर्णय लिए हैं। 2030 तक 2.5 से 3 बिलियन टन CO2 के बराबर अतिरिक्त कार्बन सिंक बढ़ाने के लिए नगर वन योजना को शुरू किया गया है, जो अगले पांच वर्षों में हरित मिशन के दूसरे चरण के साथ जुड़ जायेगा।” 

उन्होंने यह भी कहा, “वन अधिकारी और फ्रंटलाइन कर्मचारी हमारे जंगलों को बचाने और कठिन परिस्थितियों में काम करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं, इसलिए पर्यावरण मंत्रालय उन्हें नौकरी की सुरक्षा प्रदान करने और उनकी क्षमता निर्माण में मदद करने के लिए काम कर रहा है।” वहीं, केंद्रीय मंत्री ने वनों पर बोझ कम करने के लिए निजी क्षेत्र द्वारा उदार वृक्षारोपण की आवश्यकता पर बल दिया।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत का कुल वन और वृक्ष आवरण अब 80.9 मिलियन हेक्टेयर में फैला हुआ है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.62 प्रतिशत है। वन क्षेत्र में वृद्धि के मामले में शीर्ष पांच राज्य आंध्र प्रदेश (647 वर्ग किमी), तेलंगाना (632 वर्ग किमी), ओडिशा (537 वर्ग किमी), कर्नाटक (155 वर्ग किमी) और झारखंड (110 वर्ग किमी) हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि “वन आवरण में वृद्धि या वन घनत्व में सुधार बेहतर संरक्षण उपायों, वनीकरण गतिविधियों, वृक्षारोपण अभियान और कृषि वानिकी का फल है।” क्षेत्रफल की दृष्टि से मध्य प्रदेश में देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र हैं।

मैंग्रोव वन क्षेत्र में भी दर्ज की गई वृद्धि

हालांकि, इस रिपोर्ट में भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से ने सकारात्मक परिणाम नहीं दिखाए क्योंकि वर्तमान आकलन में इस क्षेत्र में 1,020 वर्ग किमी की सीमा तक वन क्षेत्र में कमी देखी गई है। अरुणाचल प्रदेश में 257 वर्ग किमी का वन क्षेत्र खत्म हो गया, इसके बाद मणिपुर ने 249 वर्ग किमी, नागालैंड ने 235 वर्ग किमी, मिजोरम ने 186 वर्ग किमी और मेघालय ने 73 वर्ग किमी वन क्षेत्र खत्म हो गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 17 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों का भौगोलिक क्षेत्र 33 प्रतिशत से अधिक में वन आवरण है। इन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से लक्षद्वीप, मिजोरम, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में 75 प्रतिशत से अधिक वन क्षेत्र हैं, जबकि 12 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों जैसे मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा, गोवा, केरल, सिक्किम, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव, असम, ओडिशा में 33 प्रतिशत से 75 प्रतिशत के बीच वनावरण भूमि है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देश के कुल 140 पहाड़ी जिलों में पिछले दो वर्षों में वन क्षेत्र में 902  वर्ग किमी की कमी आई है। 2019 की रिपोर्ट में, पहाड़ी क्षेत्रों के वन क्षेत्र में 544 वर्ग किमी की वृद्धि हुई थी।

वहीं, वर्ष 2019 के पिछले आकलन की तुलना में देश में मैंग्रोव वन क्षेत्र में भी 17 sq. km  की वृद्धि दर्ज की गई है। देश में कुल मैंग्रोव वन क्षेत्र 4,992 वर्ग किमी है। मैंग्रोव वन क्षेत्र में वृद्धि करने वाले शीर्ष तीन राज्य ओडिशा (8 वर्ग किमी), महाराष्ट्र (4 वर्ग किमी) और कर्नाटक (3 वर्ग किमी) हैं। रिपोर्ट के अनुसार, देश के जंगल में कुल कार्बन स्टॉक 7,204 मिलियन टन होने का अनुमान है।

फर्जी पर्यावरणविदों के मुंह पर तमाचा है यह रिपोर्ट

वहीं, 2019 के अंतिम आकलन की तुलना में देश के कार्बन स्टॉक में 79.4 मिलियन टन की वृद्धि हुई है। कार्बन स्टॉक में वार्षिक वृद्धि 39.7 मिलियन टन की है। भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) ने बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (BITS) पिलानी के गोवा कैंपस के सहयोग से ‘भारतीय वनों में जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट की मैपिंग’ पर आधारित एक अध्ययन भी किया है। भविष्य की तीन समयावधियों, यानी वर्ष 2030, 2050 और 2085 के लिए तापमान और वर्षा डेटा के कंप्यूटर मॉडल-आधारित प्रक्षेपण का उपयोग करते हुए, भारत में वन आवरण पर जलवायु हॉटस्पॉट का मानचित्रण करने के उद्देश्य से यह सहयोगी अध्ययन किया गया था।

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बता दें कि जलवायु परिवर्तन के फर्जी आंदोलनकारियों को अब मोदी सरकार से जूझना मुश्किल हो रहा है, खासकर तब जब पीएम खुद फ्रंट फुट पर उनका जवाब दे रहे हों। पिछले साल नवंबर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए, पीएम मोदी ने ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ को दूर करने का आह्वान किया, जो कई विकृतियों को जन्म दे रही है। इसके अलावा भारत ने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने प्रयासों को बढ़ाया है। पर्यावरण संरक्षण के साथ ही, उन्होंने फर्जीवादियों द्वारा शुरू की गई फर्जी जनहित याचिका की संस्कृति से प्रभावित होने के लिए न्यायपालिका पर कटाक्ष भी किया। भारत कार्बन उत्सर्जन, वृक्षारोपण, वन आवरण जैसे हरेक क्षेत्रों में तथाकथित पर्यारणविदों से आगे है और यह रिपोर्ट ऐसे फर्जी पर्यावरणविदों के मुंह पर तमाचा है!

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