मोदी सरकार ने 6000 NGOs को दिया बड़ा झटका, रद्द किया विदेशी फंडिंग का लाइसेंस

मिशनरीज ऑफ चैरिटी के बाद, इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर का हुआ लाइसेंस रद्द!

2022 की शुरुवात एक बड़ी कार्रवाई के साथ हुई है l कल, यानी 1 जनवरी 2022 को लगभग 6,003 गैर सरकारी संगठनों (NGO) को विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के पंजीकृत संगठनों की सूची से हटा दिया गया है। अधिकारियों ने कहा कि इन संस्थानों ने या तो अपने FCRA लाइसेंस के नवीनीकरण के लिए आवेदन नहीं किया था या केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उनके आवेदनों को खारिज कर दिया है l इस कदम के बाद, गृह मंत्रालय के डैशबोर्ड के अनुसार अब देश में FCRA पंजीकृत संगठनों की संख्या 22,832 से घटकर 16,829 रह गई है।

आप को बता दें कि FCRA लाइसेंस रद्द हो जाने पर ये संगठन विदेशों से वित्तीय सहायता लेने में असमर्थ होंगे l

मिशनरीज ऑफ चैरिटी समेत कई NGO का लाइसेंस हुआ रद्द

जिन 6003 संगठनों का लाइसेंस रद्द हुआ है, उनमें मदर टेरेसा की मिशनरीज ऑफ चैरिटी, ऑक्सफैम इंडिया, जामिया मिल्लिया इस्लामिया (JMI), नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी, इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर (IICC), इंडिया हैबिटेट सेंटर, ट्यूबरकुलोसिस एसोसिएशन ऑफ इंडिया, चैतन्य रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी, हमदर्द एजुकेशन सोसाइटी, दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क सोसाइटी, लेडी श्री राम कॉलेज फॉर विमेन, इमैनुएल हॉस्पिटल एसोसिएशन आदि शामिल हैं l

इनमें से मदर टेरेसा की मिशनरीज ऑफ चैरिटी का लाइसेंस रद्द होने को लेकर कुछ दिनों पहले विपक्ष द्वारा झूठ फैलाया जा रहा थाl पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि भारत सरकार ने इस संस्था का पंजीकरण रद्द कर दिया है और उसके सभी बैंक अकाउंट फ्रीज़ कर दिए हैं l

इस पर गृह मंत्रालय ने उत्तर देते हुए बताया था कि “हमारी ओर से ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है और MHA ने मिशनरीज के किसी भी खाते को फ्रीज नहीं किया हैl केवल इस संस्था का FCRA रिन्यू करने से इनकार किया गया है। इसका कारण पात्रता शर्तों को पूरा नहीं करना है FCRA पंजीकरण 31 दिसंबर, 2021 तक वैध थाl” 

इसके अलावा मिशनरीज ऑफ चैरिटी की ओर से भी स्पष्ट किया गया था कि उनके किसी भी बैंक खाते पर MHA की तरफ से कोई रोक लगाने का आदेश नहीं दिया गया है।

सरकार ने नवीनीकरण के लिए दिए थे बहुत मौके

गृह मंत्रालय के अधिकारियों के हवाले से इस कार्रवाई को लेकर कहा गया है कि, “सभी एनजीओ को शुक्रवार, 31 दिसंबर से पहले FCRA नवीनीकरण के लिए आवेदन करने के लिए रिमाइंडर भेजा गया था, लेकिन कई NGO ने ऐसा नहीं किया l जब आवेदन ही नहीं किया गया तो, उन्हें अनुमति कैसे दी जा सकती है?”

इसके अलावा आवेदन करने की तारीख भी आगे बढाई गई थी लेकिन उसके बाद भी इन संस्थाओं ने FCRA लाइसेंस रिन्यू करने के लिए आवेदन नहीं किया l

क्या है भारत में विदेशी चंदा स्वीकारने से जुड़े नियम?

Foreign Contribution Regulation Act (FCRA) यानी विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम l 1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने घरेलू राजनीति में विदेशी भागीदारी को सीमित करने के उद्देश्य से विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम को पारित किया था। वर्ष 2010 में UPA सरकार में इसे संशोधित किया गया था और विदेशी दान को विनियमित करने के लिए कई नए उपायों को अपनाया गया था।

आपको बता दें कि FCRA उन सभी संस्थाओं, संघों, समूहों और गैर सरकारी संगठनों पर लागू होता है जो विदेशी चंदा प्राप्त करना चाहते हैं। इसके लिए FCRA के तहत पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। शुरुआत में यह पंजीकरण पांच वर्षों के लिए होता है, जिसे सभी मानदंडों को पूरा करने पर रिन्यू करवाए जाने का प्रावधान है।

मोदी सरकार ने पिछले साल किया था FCRA नियमों में बदलाव

मोदी सरकार ने NGO की विदेशी फंडिंग को लेकर FCRA नियमों में सितंबर 2020 में कुछ बदलाव किये थे। इन बदलावों के तहत संसद में विदेशी अंशदान संशोधन अधिनियम 2020 को पारित किया गया था, जिसके अनुसार विदेशी अंशदान लेने वाले सभी गैर सरकारी संगठनों को भारतीय स्टेट बैंक की नई दिल्ली स्थित मुख्य शाखा में खाता खोलना होगा और सारा विदेशी अंशदान भी यहीं लेना होगा। नियमों में स्पष्ट किया गया है कि किसी भी विदेशी शख्स या स्रोत या फिर भारतीय रुपये में मिले विदेशी दान को भी विदेशी अंशदान माना जाएगा। इसके अलावा इन संस्थानों के लिए FCRA के तहत पूर्व अनुमति, पंजीकरण और पंजीकरण के नवीनीकरण के लिए संगठन से जुड़े सभी पदाधिकारियों, निदेशकों और प्रमुख पदाधिकारियों का आधार कार्ड नंबर प्रस्तुत करना अनिवार्य है।

पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि देश में चल रहे विकासकार्यों को रोकने के लिए कई NGO अदालत तक पहुंच जाते हैं l जिसके बाद मामले को क़ानूनी दांव-पेच में फंसाकर लंबित करने का प्रयास किया जाता है l इंटेलिजेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि गैर सरकारी संगठन ऐसी गतिविधियों में शामिल हैं जो राष्ट्रीय हितों के लिये नुकसानदेह हैं, सार्वजनिक हितों को प्रभावित कर सकते हैं या देश की सुरक्षा, वैज्ञानिक, सामरिक या आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार विदेशी सहायता प्राप्त कई NGO देश में अलगाववाद और माओवाद को हवा दे रहे हैं। उन पर यह आरोप भी लगाया जाता है कि विदेशी शक्तियाँ उनका उपयोग एक प्रॉक्सी के रूप में भारत के विकास पथ को अस्थिर करने के लिये करती हैं, जैसे- परमाणु ऊर्जा संयंत्रें और खनन कार्य के खिलाफ गैर सरकारी संगठनों का विरोध प्रदर्शन।

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2011 के बाद से 20,664 संगठनों का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा चुका है। इन पर विदेशी योगदान के दुरुपयोग, अनिवार्य वार्षिक रिटर्न जमा न करने और अन्य उद्देश्यों के लिए विदेशी धन को डायवर्ट करने जैसे उल्लंघनों के तहत कार्रवाई हुई।  इसके अलावा इनमें से कुछ संस्थानों पर ज़बरन धर्मांतरण करवाने विशेषकर आदिवासियों को ईसाई बनाने के आरोप भी लगते आये हैंl

ऐसे में केंद्र सरकार की यह कार्रवाई सराहनीय है क्योंकि कानून सभी के लिए एक समान है और समाज सेवा के नाम पर किसी को भी देश की संप्रभुता से खिलवाड़ करने नहीं दिया जायेगाl

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