वो सम्मान, जिसके बोस हकदार हैं- सुभाष चंद्र बोस की जयंती के साथ अब शुरु होगा गणतंत्र दिवस समारोह

भारत को अभी बोस का कर्ज चुकाना है!

सुभाष चंद्र बोस जय हिन्द का नारा किसने दिया था

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केंद्र सरकार ने गणतंत्र दिवस को लेकर बड़ा फैसला लिया है। खबरों के अनुसार देश में अब गणतंत्र दिवस के जश्न की शुरुआत 24 जनवरी की जगह 23 जनवरी से होगी। बताया जा रहा है कि सरकार ने यह कदम सुभाष चंद्र बोस की जयंती को भी गणतंत्र दिवस के जश्न में शामिल करने के लिए उठाया है। अब गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम तीन दिवसीय न होकर चार दिवसीय होगा। मोदी सरकार का यह फैसला भारत के इतिहास और संस्कृति से जुड़ी बड़ी हस्तियों को याद करने के उद्देश्य से उठाया गया है।

इस मामले पर CNN के पत्रकार अमन शर्मा ने ट्वीट कर कहा, “सुभाष चंद्र बोस की जयंती को शामिल करने के लिए गणतंत्र दिवस समारोह अब 24 जनवरी के बजाय हर साल 23 जनवरी से शुरू होगा। मोदी सरकार ने पहले सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की थी।”

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उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, “गवर्नमेंट सोर्स का कहना है कि यह हमारे इतिहास और संस्कृति के महत्वपूर्ण पहलुओं को मनाने या मनाने पर मोदी सरकार के फोकस के अनुरूप है। यह 14 अगस्त की तरह है जिसे अब “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस” और 31 अक्टूबर को एकता दिवस मनाने की तरह है, जो कि सरदार पटेल की जयंती होती है।”

 

उन्होंने अपने ट्वीट में भगवान बिरसा मुंडा की जयंती यानी 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस, 26 नवंबर को संविधान दिवस और 26 दिसंबर को गुरुगोविंद सिंह के चार साहिबजादों को उचित श्रद्धांजलि देने हेतु मोदी सरकार द्वारा वीर बाल दिवस मनाए जाने के फैसले को याद दिलाया है।

गौरतलब है कि भाजपा सरकार पहले भी कई तारीखों को राष्ट्रीय महत्ता के दिवस के तौर पर घोषित कर चुकी है। इनमें 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस, 31 अक्तूबर को सरदार पटेल की जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस, 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस और 26 नवंबर को संविधान दिवस आदि शामिल है।

सुभाष चंद्र बोस को लेकर काफी सक्रिय है भाजपा!

बताते चलें कि सिर्फ गणतंत्र दिवस आयोजन में सुभाष चंद्र बोस को शामिल करना भाजपा का एजेंडा नहीं रहा है। केंद्र ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े देश भर में साइटों को बढ़ावा देने की योजना तैयार की है। पिछले साल अक्टूबर में, समाचार एजेंसी पीटीआई ने बताया था कि पर्यटन मंत्रालय आजाद हिंद फौज के गठन की वर्षगांठ मनाने के लिए कार्यक्रमों के हिस्से के रूप में क्यूरेटेड टूर की योजना बना रहा है।

एक अधिकारी ने कहा, “ऐसी साइटों की पहचान की गई है और इसमें कई मार्ग शामिल होंगे। हमने क्यूरेटेड यात्रा कार्यक्रम तैयार किए हैं जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े गंतव्यों को कवर करते हैं। नेताजी से संबंधित साइटों को बढ़ावा देने के लिए टूर ऑपरेटरों को यात्रा कार्यक्रम दिए जाएंगे।” भाजपा सुभाष चंद्र बोस के इतिहास को जिंदा करने के लिए प्रतिबद्ध है और इस चीज की कीमत महान स्वतंत्रता सेनानी के पीढियों से समझने की आवश्यकता है।

इस फैसले के बाद नेताजी बोस के पोते चंद्र कुमार बोस ने कहा है कि “सुभाष चंद्र बोस का वास्तव में सम्मान करने के लिए उनकी विचारधारा को समझना चाहिए और उस पर अमल करना चाहिए। आज विभाजनकारी राजनीति देश को तोड़ रही है। नेताजी की झांकी नहीं होगी तो गणतंत्र दिवस परेड बेमानी होगी।”

भारत को अभी बोस का कर्ज चुकाना है!

मोदी सरकार ने नेताजी सुभाषचंद्र को सबसे अगली पंक्ति के नेताओं में खड़ा किया है। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को भारत की पहली स्वाधीन सरकार की घोषणा की थी और इसके बाद 19 मार्च 1944 को आजाद हिंद फौज ने पहली बार भारत की धरती पर मणिपुर में तिरंगा फहराया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर सरकार ने स्वाधीनता संग्राम में उनके योगदान को अहमियत दी थी। पराक्रम दिवस से गणतंत्र दिवस समारोहों की शुरुआत को इसी क्रम में देखा जा रहा है। इसके पहले भी मोदी सरकार भारतीय संस्कृति और स्वाधीनता की रक्षा से जुड़े अहम घटनाओं को विशेष दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर चुके हैं।

बताते चलें कि नेताजी, स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित थे और यह भी मानते थे कि भगवद् गीता अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत थी। उन्होंने हमेशा ब्रिटिश शासन से भारत की पूर्ण और बिना शर्त स्वतंत्रता की वकालत की। जुलाई 1944 में बर्मा में भारतीयों की एक रैली में भारतीय राष्ट्रीय सेना के लिए एक प्रेरक भाषण के एक भाग के रूप में बोले गए, बोस का सबसे प्रसिद्ध नारा था, “तुम मुझे खून दो, और मैं तुम्हें आजादी दूंगा!”

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ध्यान देने वाली बात है कि अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए सुभाष चंद्र बोस हमेशा सशस्त्र क्रांति के पक्ष में थे। उस समय जब द्वितीय विश्व युद्ध हुआ था, बोस ने इंपीरियल जापानी सेना की मदद से भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) को पुनर्जीवित किया, और ‘आजाद हिंद रेडियो’ नामक एक भारतीय रेडियो स्टेशन की स्थापना भी की। लेकिन इतने बड़े क्रांतिकारी और देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले नेताजी को लंबे समय से काफी नीचे दिखाया गया है। हालांकि, अब मोदी सरकार ने उन्हें उचित सम्मान देते हुए नेताजी को क्रांतिकारियों की सबसे अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया है!

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