चने को इंग्लिश में क्या कहते है? और इसकी खेती से जुड़ी जरूरी जानकारी

चने को इंग्लिश में क्या कहते है?

चने को इंग्लिश में क्या कहते है?

चने का इस्तेमाल हर घर में होता है. इसकी बनी सब्जी को लोग बड़े चाव से खाते हैं. वहीं अगर चने को अंग्रेजी मे क्या कहते हैं ये कोई पूछ ले तो काफी लोगों को इसका जवाब देने में परेशानी का सामना करना पड़ता है. इस लेख के माध्यम से हम आपकों बताएंगे कि चने को इंग्लिश में क्या कहते है?

चने को इंग्लिश में क्या कहते है?

चने को अंग्रेजी में Gram या chickpeas कहते हैं.

चना एक प्रमुख दलहनी फसल है. चने को दालों का राजा भी कहा जाता है. चने की ही एक किस्म को काबुली चना या प्रचलित भाषा में छोले भी कहा जाता है. चने को पीसकर बेसन तैयार किया जाता है. ये अफ्गानिस्तान, दक्षिणी यूरोप, उत्तरी अफ़्रीका और चिली में पाए जाते रहे हैं. वहीं भारतीय उपमहाद्वीप में अट्ठारहवीं सदी में इसे लाया गया था.और तब से यह यहां प्रयोग हो रहा है.

पोषक मान की दृष्टि से चने के 100 ग्राम दाने में औसतन 11 ग्राम पानी, 21.1 ग्राम प्रोटीन, 4.5 ग्राम वसा, 61.65 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 149 मि.ग्रा. कैल्शियम, 7.2 मि.ग्रा. लोहा, 0.14 मि.ग्रा. राइबोफ्लेविन तथा 2.3 मि.ग्रा. नियासिन पाया जाता है. देश में चने की खेती मुख्य रूप से उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान तथा बिहार में की जाती है. सबसे अधिक चने का क्षेत्रफल एवं उत्पादन वाला राज्य मध्य प्रदेश है.

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चने की खेती से जुडी आवश्यक जानकारी

जलवायु

चना एक शुष्क एवं ठण्डे जलवायु की फसल है जिसे रबी मौसम में उगाया जाता हैं. चने की खेती के लिए मध्यम वर्षा (60-90 से.मी. वार्षिक वर्षा) और सर्दी वाले क्षेत्र सर्वाधिक उपयुक्त होता है.इसकी

फसल में फूल आने के बाद वर्षा का होना हानिकारक होता है. क्योंकि वर्षा के कारण फूल चिपक जाते हैं. जिससे इसका बीज नही बनता . इसकी खेती के लिए 24 से-30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है.

भूमि का चुनाव 

चने की खेती सामान्य तौर पर हल्की से भारी भूमियों में की जाती है. किंतु अधिक जल धारण क्षमता एवं उचित जल निकास वाली भूमियाँ सर्वोत्तम रहती है. चने की खेती के लिए अधिक उपजाऊ भूमियाँ उपयुक्त नहीं होती, क्योंकि उनमें फसल की बढ़वार अधिक हो जाती है जिससे फूल एवं फलियाँ कम बनती हैं.

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भूमि की तैयारी 

चने की खेती हल्की से भारी भूमि में भी की जाती है, किन्तु अधिक जलधारण एवं उचित जलनिकास वाली भूमि सर्वोत्तम रहती है. मृदा का पी-एच मान 6-7.5 उपयुक्त रहता है. अंसिचित अवस्था में मानसून शुरू होने से पूर्व गहरी जुताई करने से रबी के लिए भी नमी संरक्षण होता है. एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल तथा 2 जुताई देशी हल से की जाती है. फिर पाटा चलाकर खेत को समतल कर लिया जाता है. चना की खेती के लिए मिट्टी का बारीक होना आवश्यक नहीं है, बल्कि ढेलेदार खेत ही चने की उत्तम फसल के लिए अच्छा समझा जाता है.

प्रमुख किस्में

समय पर बुआई के लिए-जी.एनजी. 1581 (गणगौर), जी.एन.जी. 1958 (मरुधर), जी.एन.जी. 663, जी.एन.जी. 469, आर.एस.जी. 888, आर.एस.जी. 963, आरएस.जी. 973, आर.एस.जी. 986, देरी से बुआई के लिए-जी.एन.जी. 1488, आर.एसजी. 974, आर.एस.जी. 902, आर.एस.जी. 945 प्रमुख हैं.

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चने की बुआई

चने की बुआई कतारों में करें. 7 से 10 सें.मी. गहराई पर बीज डालें. कतार से कतार की दूरी 30 सें.मी. (देसी चने के लिए) तथा 45 सें.मी. (काबुली चने के लिए).

सिंचाई

आमतौर पर चने की खेती असिंचित अवस्था में की जाती है. चने की फसल के लिए कम जल की आवश्यकता होती है. चने में जल उपलब्धता के आधार पर पहली सिंचाई फूल आने के पूर्व अर्थात बोने के 45 दिनों बाद एवं दूसरी सिंचाई दाना भरने की अवस्था पर अर्थात बोने के 75 दिनों बाद करनी चाहिए.

फसल कटाई से जुड़ी जानकारी

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