Chora Chori kand kab hua tha or iska Mukadama?

Chora Chori kand kab hua tha date

चौरा-चौरी कांड कब हुआ था Chora Chori kand kab hua tha?

आज के लेख में हम इतिहास से जुड़े एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण प्रश्न चौरी-चौरा कांड कब हुआ था (Chora Chori kand kab hua tha?) का उत्तर देने जा रहे है और आशा करते है कि यह उत्तर आपको पसंद आएगा. चौराचौरी कांड भारत के इतिहास का एक बहुत बड़ा अध्याय है. जिसने भारतीय इतिहास के एक युग को बदल डाला तथा एक नए नजरिय को जन्म दिया. क्योंकि यह एक ऐसी घड़ी थी जिसमें लोगों को लगने लगा था कि अब उन्हें और देश को आजादी मिलने वाली है. लेकिन एक घटना के कारण महात्मा गांधी ने पूरे असहयोग आंदोलन को रद्द कर दिया. इस एक घटना ने महात्मा गांधी पर भी कई सवालिया निशान खड़े कर दिए.

चौरा-चौरी कहाँ है?

चौराचौरी दो अलग-अलग गांवों – चौरी और चौरा का एक सम्म्लित क्षेत्र है. यह भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर ज़िले में स्थित एक क़स्बा है. ब्रिटिश भारतीय रेलवे के एक ट्रैफिक मैनेजर ने इस गांव का नाम एक साथ किया था. वहीं जनवरी 1885 में यहाँ एक रेलवे स्टेशन की स्थापना की गई थी. शुरु में सिर्फ़ रेलवे प्लेटफॉर्म और मालगोदाम का नाम ही चौरी-चौरा था.

Chora Chori kand kab hua tha?

गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ 1 अगस्त, 1920 को असहयोग आंदोलन की शुरूआत की थी. गांधीजी ने ब्रिटिश वस्तुओं, संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने के लिए असहयोग आंदोलन चलाया था. वहीं चौरी चौरा कांड 4 फरवरी 1922 को ब्रिटिश भारत में संयुक्त राज्य के गोरखपुर जिले के चौरीचौरा में हुई थी और यह वर्ष चौरीचौरा कांड का 100 वां वर्ष है इस आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस के साथ भिड़ गया था. जिसमें प्रदर्शनकारियों ने एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी थी. जिससे उनके सभी कब्जेधारी मारे गए.

दरअसल हुआ यह था कि चौरी चौरा कस्बे में 4 फरवरी 1922 दिन सभी प्रदर्शनकारियों ने जुलूस निकालने के लिये पास के मुंडेरा बाज़ार को चुना था. जब सत्याग्रही थाने के सामने से गुजर रहे थे तब तत्कालीन थानेदार ने जुलूस को अवैध घोषित कर जुलूस को रोकने के लिए बल का प्रयोग किया. इसके विरोध में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हो गई.जिसमें पुलिस ने गोली चला दी.

पुलिस की इस कार्रवाही में 11 सत्याग्रही की मृत्यु हो गई और कई घायल हो गए. इससे सत्याग्रही भड़क गए.गोली खत्म होने पर पुलिस थाने की तरफ भागे और उन्होने थाने के दरवाजे बंद कर. वहीं प्रदर्शनकारियों ने सुखी लकड़ियां, कैरोसिन तेल की मदद से थाना भवन को आग दी. जिसमे 22 पुलिसकर्मियों की जिन्दा जल के मृत्यु हो गई थी.

महात्मा गांधी, जो हिंसा विरोधी थे. उन्होने यह घटना देख 12 फरवरी 1922 को राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आंदोलन को रोक दिया था. गांधी जी के असहयोग आंदोलन को समाप्त करने की घोषणा से सुभाष चंद्र बोस, चितरंजन दास “देशबंधु”(सी.आर. दास) और मोतीलाल नेहरू जैसे कई शीर्ष कांग्रेस नेता नाराज हुए. अत: मोतीलाल नेहरू और सी.आर. दास (चितरंजन दास “देशबंधु”) ने गांधीजी के फैसले पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की और स्वराज पार्टी की स्थापना का फैसला किया.

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चौरीचौरा कांड का मुकदमा

16 फरवरी 1922 को गांधीजी ने अपने लेख ‘चौरीचौरा का अपराध’ में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएँ होतीं.जहां गांधीजी ने इस घटना के लिए पुलिस वालों को ज़िम्मेदार ठहराया ,तो दूसरी तरफ घटना में शामिल तमाम लोगों को अपने आपको पुलिस के हवाले करने की भी अपील की. गांधीजी को मार्च 1922 में गिरफ़्तार कर लिया गया और उन पर राजद्रोह का मुकदमा भी चला.

चौरीचौरा काण्ड के लिए पुलिस ने कई लोगों को दोषी बनाया.वहीं गोरखपुर सत्र न्यायालय के न्यायाधीश मिस्टर एचईहोल्मस ने 9 जनवरी 1923 को 172 अभियुक्तों को मौत की सजा के साथ 2 को दो साल की कारावास और 47 को संदेह के लाभ में दोषमुक्त कर दिया गया. गोरखपुर सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ जिला कांग्रेस कमेटी, गोरखपुर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अभियुक्तों की तरफ से अपील दाखिल की. इसकी पैरवी पंडित मदन मोहन मालवीय ने की थी. पंडित मदन मोहन मालवीय 151 लोगो को फांसी की सजा से बचाने में सफल रहे.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सर ग्रिमउडपीयर्स तथा न्यायमूर्ति पीगट ने 30 अप्रैल 1923 को फैसला सुनाया, जिसके तहत 19 अभियुक्तों को मृत्यु दण्ड, 16 को काला पानी, बचे लोगों को आठ, पांच व दो साल की सजा दी गई. 3 को दंगा भड़काने के लिए दो साल की सजा तथा 38 को छोड़ दिया गया. 19 लोगों को जुलाई, 1923 के दौरान फांसी दे दी गई.

चौरीचौरा स्मारक

ब्रिटिश सरकार ने चौरी चौरा में मारे गए पुलिसवालों की स्मृति में एक स्मारक का निर्माण किया था. वहीं 1971 में गोरखपुर जिले के लोगों ने उन 19 लोगों रो जिन्हें चौरी चौरा कांड के बाद फांसी दे दी थी. उनकी स्मृति में ‘शहीद स्मारक समिति’ का निर्माण किया. इस समिति ने 1973 में चौरी चौरा में 12.2 मीटर एक मीनार बनाई. इसके एक तरफ एक शहीद को फांसी देते हुए लटकाया गया. इसे चंदे के पैसे से बनाया गया था. इसकी लागत 13,500 रुपये आई थी.

Chora Chori kand kab hua tha?

Chora Chori kand 4 February 1922 ko hua tha.

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