मुख्य बिंदु
- बच्चों को स्कूलों से दूर रखने से उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर संभावित प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है
- स्कूलों को फिर से खोला जाए विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां कोविड -19 वक्र (Curve) ने नीचे जाने के स्पष्ट संकेत दिखाए थे
- केंद्र सरकार को शीघ्रताशीघ्र निर्देश देते हुए राज्यों को स्कूल खोलने के लिए बाध्य करना चाहिए
Omicron के आने और ऐतिहासिक गति से भारतीय टीकाकरण के कारण कोरोना महामारी एक ऐसे चरण में प्रवेश कर रही है, जहां दैनिक गतिविधियां छोटी और बहुत सामान्य सावधानियों के साथ फिर से शुरू हो सकती हैं। Omicron लोगों को नैसर्गिक प्रतिरोधक क्षमता प्रदान कर रहा है, तो वहीं टीकाकरण की द्रुत गति भारत को सुरक्षा कवच। इसी स्थिति को देखते हुए एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा, “स्कूलों को फिर से खोला जाए विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां कोविड -19 वक्र (Curve) ने नीचे जाने के स्पष्ट संकेत दिखाए थे।”
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स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा “स्कूलों को खोला जाए”
दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के निदेशक डॉ अनुराग अग्रवाल ने इंडियन एक्सप्रेस के लाइव इवेंट में कहा है कि बच्चों को स्कूलों से दूर रखने से उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर संभावित प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उनकी राय में, यह वर्तमान में संक्रमण के जोखिम से बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा कि भारत की स्थिति उच्च टीकाकरण दर, उच्च स्तर की प्रतिरक्षा, गंभीर बीमारी या ओमाइक्रोन से होने वाली मौतों का जोखिम काफी कम हो गया है। अतः भारत के लोगों को कुछ सावधानियों को ध्यान में रखते हुए अपने जीवन के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
डॉ अग्रवाल ने कहा कि स्कूलों को फिर से खोलना उनकी प्राथमिकताओं की सूची में सबसे ऊपर है। Sars-CoV-2 वायरस इवोल्यूशन पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के तकनीकी सलाहकार समूह के अध्यक्ष और एकमात्र भारतीय सदस्य डॉ अग्रवाल ने कहा कि महामारी की तीसरी लहर द्वारा बड़े शहरों को प्रभावित होने की सबसे अधिक संभावना थी। परन्तु, महामारी अपेक्षाकृत उतना कहर नहीं बरपा पाई और कोरोना एक सामान्य फ्लू के समान प्रतीत हुआ।
हालांकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने अपने बयान में नरमी बरतते हुए कहा कि जिन मामलों को देखा गया, वे ज्ञात मामले थे जो परीक्षण पर निर्भर थे, जो पूरे देश में एक समान नहीं थे। उन्होंने कहा कि फरवरी की शुरुआत में भारत में कोराेना मामले का चरमोत्कर्ष देखने को मिलेगा और इसी माह में गिरावट भी शुरू हो जाएगी। यह पूछे जाने पर कि क्या कोविड -19 अपने अंतिम पड़ाव में है, डॉ अग्रवाल ने कहा कि यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि हम कोविड का खात्मा कैसे करते हैं?
ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई कब तक?
अगर लोगों को लगता है कि कोविड के खात्मे का मतलब महामारी का अंत है, तो ऐसा नहीं है। आने वाले भविष्य में कोविड के पूर्णतः खत्म होने की संभावना अत्यंत कम है। परन्तु, ये बात अवश्य है की इसकी विभीषिका एकदम नगण्य हो गई है। कोविड अब महामारी न रह कर सिर्फ एक साधारण बीमारी रह गया है। अतः स्कूल खोलने की प्रक्रिया भी अविलंब शुरू होनी चाहिए अन्यथा भारत के भविष्य को इससे अपूर्णीय क्षति हो रही है। अग्रवाल ने कहा कि SARS-CoV2 का गायब होना एक असंभव सी कल्पना है लेकिन एक खतरनाक बीमारी के रूप में कोविड -19 का अंत अब हो चुका है। अतः, कोविड का डर खत्म करते हुए सरकार को स्कूल खोलने का साहसिक निर्णय लेना चाहिए।
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा कि पोलियो या चेचक जैसे वायरस का भी कभी पूर्ण उन्मूलन कभी नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि कोविड -19 रहेगा, लेकिन अब यह केवल प्रतिरक्षा-दमित या गंभीर उच्च जोखिम वाले लोगों को ही प्रभावित करेगा और धीरे धीरे इसकी तीव्रता खत्म होती जायेगी। जैसा कि हम सब जानते हैं एक छात्र का समग्र मनो-सामाजिक विकास स्कूल में होता है। समग्र विकास में सामाजिक और चुनौतीपूर्ण वातावरण, जुड़ाव, संचार, समूह कार्य, मूल्य शिक्षा, साथियों के साथ खेलने और विश्राम का समय भी शामिल होता है।
स्कूल बंद होने से बच्चों का जीवन हुआ बाधित
वे मस्ती, कला, संगीत, खेल और ज्ञान के चक्र के माध्यम से सीखते और बढ़ते हैं। कोविड के कारण स्कूल बंद करना आवश्यक था पर कोविड से अनावश्यक डरना छात्रों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है और ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई कभी भी इसका विकल्प नहीं बन सकता। एक स्कूल वाली दिनचर्या और साथियों की बातचीत की अनुपस्थिति ने न केवल बच्चों के जीवन को बाधित किया है, बल्कि अलगाव, बीमारी की आशंका और शारीरिक, बौद्धिक और सामाजिक जुड़ाव के नुकसान के कारण होने वाली चिंता को बढ़ा दिया है।
राज्यों को स्कूल खोलने के लिए कहे केंद्र सरकार
स्कूल बंद होने से बच्चों की सुरक्षा भी प्रभावित होती है, जिससे उनके साथ दुर्व्यवहार का जोखिम बढ़ जाता है। ASIR अनुसंधान केंद्र की निदेशक सुमन भट्टाचार्य ने रिपोर्ट में पाया कि कक्षा I और II में लगभग 3 में से 1 बच्चे ने कभी भी व्यक्तिगत रूप से कक्षा में भाग नहीं लिया है। सरकारी स्कूल के छात्रों में यह 36.8 प्रतिशत और निजी स्कूलों में यह संख्या 33.6 प्रतिशत है।
भारत जैसे देश में जहां सीखने का स्तर कम है, ये नुकसान विनाशकारी हो सकते हैं और इसे उलटने में लंबा समय लग सकता है। टास्क फोर्स ने बच्चों के लिए खोई हुई शिक्षा को पकड़ने के लिए उपचारात्मक अवधि बढ़ाने के लिए कहा है। जहां 2018 और 2021 के बीच घर में कम से कम एक स्मार्टफोन रखने वाले नामांकित बच्चों का प्रतिशत 36.5 से बढ़कर 67.6 हो गया है, वहीं कक्षा I-II में केवल 19.9 प्रतिशत बच्चों के पास ही उपकरणों तक पहुंच होती है।
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स्मार्टफोन तक उम्र के साथ बढ़ती पहुंच कक्षा IX तक के बच्चो में पोर्न से लेकर वीडियो गेम तक की भयंकर लत लगा रही है। बच्चे भारत के भविष्य होते हैं। ये ही राष्ट्र निर्माण की धुरी हैं और विद्यालय राष्ट्र निर्माण के केंद्र। अगर विद्यालय जाने की कोरी उम्र में हमने इनका व्यक्तित्व निर्माण नहीं किया तो आगे चलकर ये भारत के लिए क्षतिपूर्ण होगा। अतः केंद्र सरकार को शीघ्रताशीघ्र निर्देश देते हुए राज्यों को स्कूल खोलने के लिए बाध्य करना चाहिए।