एंटी-CAA प्रोटेस्ट में जहरीले भाषण देने वाले शरजील इमाम पर चलेगा देशद्रोह का केस, कोर्ट ने दिया आदेश

फ्री-स्पीच के नाम पर दंगा भड़काने वालों का यही हश्र होगा!

शरजील इमाम देशद्रोह

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शरजील इमाम को दिल्ली कोर्ट ने देशद्रोही मान लिया है! शरजील इमाम पर देशद्रोह, धर्म, जाति, जन्म स्थान के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने, राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक आरोप और भारतीय दंड संहिता के तहत सार्वजनिक शरारत और गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) के तहत गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को भड़काऊ भाषणों से जुड़ी FIR के आधार पर शरजील इमाम के खिलाफ आरोप तय किए।

एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने यह आदेश दिया और साथ ही 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान उनके द्वारा किए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित एक मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि साल 2019 के दिसंबर में दिए गए भाषणों के लिए शरजील इमाम को ट्रायल का सामना करना होगा। कोर्ट ने उन भाषणों को भड़काऊ माना है। JNU के स्टूडेंट रहे इमाम पर 13 दिसंबर 2019 को दिल्ली के जामिया इलाके में और 16 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कथित भड़काऊ भाषण देने का आरोप था। इस पर शरजील इमाम के खिलाफ देशद्रोह और दूसरी धाराओं में FIR दर्ज की गई थी।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने अपने आदेश में कहा कि मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा-124 (देशद्रोह), धारा-153ए (दो अलग समूहों में धर्म के आधार पर विद्वेष को बढ़ावा देना), धारा-153बी (राष्ट्रीय एकता के खिलाफ अभिकथन), धारा-505 (सार्वजनिक अशांति के लिए बयान), गैरकानूनी गतिविधि (निषेध) अधिनियम (यूएपीए) की धारा-13 (गैरकानूनी गतिविधि के लिए सजा) के तहत मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य है।

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इमाम के वकील को मिला करारा जवाब

साथ ही अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने आदेश दिया कि यूएपीए की धारा-13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा) के तहत शरजील इमाम द्वारा नियमित जमानत देने के लिए दायर आवेदन खारिज किया जाता है। वहीं, दूसरी ओर इतना सब कांड करने के बाद इमाम ने जमानत की मांग करते हुए कहा था कि शरजील इमाम के भाषण देशद्रोह के अर्थ में नहीं आते। इमाम की ओर से पेश हुए अधिवक्ता तनवीर अहमद मीर ने अदालत के समक्ष तर्क रखा कि इमाम द्वारा दिए गए भाषणों में हिंसा का कोई आह्वान नहीं किया गया और अभियोजन द्वारा लगाए गए आरोप केवल बयानबाजी हैं, जिनका कोई आधार नहीं है।

उन्होंने कहा कि सरकार की आलोचना करना राजद्रोह नहीं हो सकता और किसी व्यक्ति को पूरी तरह संदेह के आधार पर आरोपित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने अभियोजन पक्ष के आरोप को गलत बताते हुए कहा कि इमाम ने अपना भाषण अस-सलामु अलैकुम शब्दों के साथ शुरू किया था, जो यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि यह एक विशेष समुदाय को संबोधित किया गया था न कि बड़े पैमाने पर।

जबकि अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि उनके भाषणों ने केंद्र सरकार के प्रति घृणा, अवमानना ​​​​और असंतोष को उकसाया और लोगों को भड़काया जिसके कारण दिसंबर 2019 में हिंसा हुई। विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने जवाब देते हुए कहा कि विरोध करने का मौलिक अधिकार उस सीमा से आगे नहीं जा सकता, जिससे जनता को समस्या हो। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि कथित राजद्रोही भाषण देकर इमाम ने भारत की संप्रभुता को भी चुनौती दी और एक समुदाय विशेष के लोगों में निराशा और असुरक्षा की भावना डालने की कोशिश की कि उनके पास देश में कोई उम्मीद नहीं बची है।

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जनवरी 2020 से न्यायिक हिरासत में है इमाम

गौरतलब है नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशभर में चले आंदोलनों के बीच शरजील इमाम का जामिया और अलीगढ़ में भड़काऊ भाषण देने का एक विवादित बयानों वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। यही नहीं शरजील इमाम ने शाहीन बाग में भड़काऊ भाषण देते हुए कहा था कि बाकी भारत को नॉर्थ ईस्ट से जोड़ने वाला चिकन नेक मुस्लिम बहुल इलाका है और अगर सभी मुस्लिम इकट्ठा हो जाएं, तो वे नॉर्थ ईस्ट को भारत से अलग कर सकते हैं।

इमाम ने कहा था क्या आप जानते हैं कि असम के मुसलमानों के साथ क्या हो रहा हैएनआरसी पहले से ही वहां लागू हैउन्हें हिरासत में रखा गया है। आगे चलकर हमें यह भी पता चल सकता है कि 6- 8 महीने में सभी बंगालियों को मार दिया गया। हिंदू हो या मुस्लिम। अगर हम असम की मदद करना चाहते हैंतो हमें भारतीय सेना और अन्य आपूर्ति के लिए असम का रास्ता रोकना होगा इसके बाद पुलिस ने उसके खिलाफ देशद्रोह समेत विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कर जनवरी के आखिर में शरजील को उसके पैतृक स्थान बिहार के जहानाबाद से गिरफ्तार किया था। वो जनवरी 2020 से ही न्यायिक हिरासत में है। अब शरजील इमाम पर दिल्ली न्यायालय का यह फैसला स्वागत योग्य कदम है!

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