1946 की क्रांति को चित्रित कर भारत देगा आजादी के असली नायकों को न्याय

अब इतिहास का राजा वही बनेगा, जो योग्य होगा!

रॉयल इंडियन नेवी

Source- TFIPOST

कभी-कभी इतिहास बदलने के लिए एक कदम ही पर्याप्त होता है और लगता है भारतीय नौसेना ने अब वो कदम उठाने का निर्णय ले लिया है।आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस के 125 वर्ष पूरे होने के शुभ अवसर पर भारतीय नौसेना ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में घोषणा की है कि गणतंत्र दिवस परेड में नौसेना की झांकी में न केवल भारत के नए स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर, INS विक्रांत की झलकी दिखाई जाएगी, अपितु 1946 में हुए रॉयल इंडियन नेवी क्रांति को भी चित्रित किया जाएगा। जी हां, यह सत्य है। रॉयल इंडियन नेवी के ऐतिहासिक विद्रोह, जिसे वामपंथी इतिहासकारों ने दबा दिया था, वह अब पुनः भारतीय इतिहास का केंद्र बनेगा। उसे अब पुनः लाईमलाइट मिलेगी, और जिस देश के लिए हजारों नौसैनिकों ने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया, उसे अब वास्तव में उनका उचित सम्मान मिलेगा।

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क्या था RIN विद्रोह?

परंतु यह रॉयल इंडियन नेवल विद्रोह था क्या? ऐसा भी क्या हुआ, जिसके कारण अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर विवश होना पड़ा? असल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के गायब होने के पश्चात लाल किले में इंडियन नेशनल आर्मी के अफसरों, विशेषकर मेजर जनरल शाह नवाज़ खान, कर्नल प्रेम कुमार सहगल और लेफ्टिनेंट कर्नल गुरबक्श सिंह ढिल्लों के विरुद्ध प्रारंभ हुए मुकदमे का असर ठीक उल्टा पड़ा और मुकदमा खत्म होते-होते तत्कालीन सैन्य प्रमुख, जनरल क्लाउड औचिनलेक को भी आभास हो चुका था कि अब स्थिति पहले जैसी नहीं रही। उन्होंने ब्रिटिश शासन को स्पष्ट चेतावनी दी कि उक्त अफसरों में किसी को भी दंडित करने का दुष्परिणाम बहुत भयानक होगा।

जनरल औचिनलेक की भविष्यवाणी एकदम सत्य सिद्ध हुई। 18 फरवरी 1946 को बॉम्बे के निकट नौसैनिक ट्रेनिंग स्कूल HMIS Talwar पर वो हुआ, जिसकी कल्पना किसी ब्रिटिश साम्राज्यवादी ने नहीं की थी। अनेकों गैर कमीशन नाविकों ने घटिया खानपान और रहन-सहन को लेकर हड़ताल कर दी। जब HMIS Talwar के कमांडर ने उनकी मांगों को सुनने के बजाए, उन्हें अभद्र भाषा में उलाहने देने प्रारंभ किए, तो भारतीयों का क्रोध सातवें आसमान के पार निकल गया। उन्होंने जहाज पर धावा बोलते हुए ब्रिटिश पताका हटाई और कांग्रेसी तिरंगा लहरा दिया। यही नहीं, जो भी अंग्रेज़ अफसर विरोध करता ये उसे या तो गोलियों से भून देते या फिर उसे जहाज से नीचे समुद्र में फेंक देते।

यह रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह या बॉम्बे विद्रोह भारतीय नाविकों का विद्रोह था। रॉयल इंडियन नेवी के नाविकों ने बॉम्बे बंदरगाह पर हड़ताल की और 18 फरवरी 1946 को एक विद्रोह का आयोजन किया। पूरे विद्रोह में 78 जहाज, 20 तट प्रतिष्ठान और 20,000 नाविक शामिल थे। इस विद्रोह को बाद में RIN विद्रोह के रूप में जाना जाने लगा।

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सरदार पटेल के हस्तक्षेप से सामान्य हुई स्थिति

ये तो कुछ भी नहीं है। दावानल की भांति यह विद्रोह कोच्चि, विशाखापटनम, कराची और कलकत्ता में फैलने लगा। हर जगह जय हिन्द और वन्दे मातरम का उद्घोष होने लगा और इसका असर ऐसा पड़ा कि ब्रिटिश इंडियन आर्मी के सबसे कर्तव्यनिष्ठ गोरखा सिपाही तक अपने ही भाइयों पर गोली चलाने से मना करने लगे। उनके लिए अब राष्ट्रवाद सर्वोपरि था। 20 फरवरी 1946 तक भारतीय नौसेना ने गेटवे ऑफ इंडिया समेत सम्पूर्ण बॉम्बे को घेर लिया था। अब यह आर या पार की लड़ाई थी।

यदि उस समय सरदार पटेल ने हस्तक्षेप न किया होता, तो ऐसी खूनी क्रांति होती कि ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की अगली सात पीढ़ियां इसका उल्लेख करने से पूर्व सिहर उठती। ये क्रांति रॉयल इंडियन नेवी से अब रॉयल इंडियन एयर फोर्स तक आ पहुंची और कुछ वर्षों बाद जब पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली भारत यात्रा पर आए, तो उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि यह रॉयल इंडियन नेवी के विद्रोह का ही परिणाम था कि अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर विवश होना पड़ा। आज जब भारतीय नौसेना ने इस इतिहास के इस महत्वपूर्ण भाग को श्रद्धांजलि देने का निर्णय किया, तो ये न केवल प्रशंसनीय है, अपितु भारतीय इतिहास के असली नायकों को उनका वास्तविक सम्मान मिलेगा। अब इतिहास का राजा वही बनेगा, जो योग्य होगा!

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