‘बेरोजगारी’ को लेकर विपक्ष द्वारा फैलाए गए भ्रम को खारिज कर रहे हैं EPFO के आंकड़े

विपक्ष के दावे की निकली हवा!

भारत में बेरोजगारी

Source- TFIPOST

भारत में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। यह जितनी बड़ी समस्या है, उससे भी बड़ी समस्या यह है कि भारत में किसे बेरोजगार कहा जाए और किसे न कहा जाए। विपक्षी पार्टियों की ओर से आये दिन बेरोजगारी को लेकर मोदी सरकार पर सवाल उठाए जाते हैं। विपक्ष के नेता तो खुले मंच से लोगों के मन में इस भ्रम को डाल रहे हैं! ध्यान देने वाली बात है कि हमारे देश में असंगठित क्षेत्र और संगठित क्षेत्र के बीच कोई साफ रेखा नहीं है। असंगठित क्षेत्र में कम कौशल वाले मजदूरों की भरमार होती है। उनके रोजगार भी तय नहीं होते हैं और शायद इसीलिए भारत में हर तिमाही बेरोजगारी के आंकड़े बदलते रहते हैं। असल में बेरोजगारी के बड़े आंकड़े असंगठित क्षेत्र के ही होते हैं।

संगठित क्षेत्र में मजदूरों का लेखा-जोखा होता है। EPFO को ही ले लीजिये। हर कंपनी अपने कर्मचारियों का पंजीकरण यहां कराती है और यहां के आंकड़े एक बढ़िया मानक हो सकते हैं। अब इस क्षेत्र से एक बड़ी खबर सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि भारत के औपचारिक (संगठित) नौकरी क्षेत्र में कोविड-19 महामारी से उत्पन्न कठिन परिस्थितियों के बावजूद, मजबूत वृद्धि देखी जा रही है। यह बात उस विपक्ष को भी मालूम है, जो आजकल बेरोजगारी के लिए सरकार पर सवाल उठा रहा है। ईपीएफओ के नवंबर 2021 के आंकड़े देश में बेरोजगारी पर विपक्ष द्वारा फैलाए गए भ्रम की हवा निकालते दिख रहे हैं।

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औपचारिक रोजगार सृजन में हुई वृद्धि

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के अनुसार, नवंबर 2021 में भारत में औपचारिक रोजगार सृजन में 37.9 फीसदी की वृद्धि हुई, जिसमें ईपीएफओ की नई सूची में 1.39 मिलियन नए लोग शामिल हुए। महीने-दर-महीने देखा जाए, तो ईपीएफओ ने नवंबर में 25.6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की, जो अक्टूबर 2021 में जोड़े गए 1.11 मिलियन नए ग्राहकों की तुलना में 0.28 लाख अधिक था। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, नवंबर के दौरान 0.36 मिलियन नए नौकरी करने वाले लोग जुड़ें। जुड़ने वाले लोगों में 22-25 आयु वर्ग में सबसे अधिक नामांकन दर्ज किए गए, जबकि 18-21 वर्ष के आयु वर्ग में 0.28 मिलियन नामांकन दर्ज किए गए। हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने औपचारिक रोजगार सृजन की होड़ का नेतृत्व किया।

ऐसे में औपचारिक नौकरियों की संख्या में वृद्धि के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में भी वृद्धि इस दावे को खारिज करती है कि मोदी सरकार के तहत आर्थिक विकास, नौकरियों में तब्दील नहीं हुआ है। ये झूठे दावे वामपंथी अर्थशास्त्रियों और विपक्षी दलों द्वारा फैलाए गए हैं, जो मोदी सरकार की आलोचना करने के लिए उपयोगी बिंदुओं की तलाश में रहते हैं, लेकिन इन्हें कुछ मिलता नहीं है। ऐसे अर्थशास्त्रियों के साथ समस्या यह है कि ये भारत के अनौपचारिक क्षेत्र में बेरोजगार लोगों की संख्या निर्धारित करने के लिए, विपक्षी दलों, अस्पष्ट सर्वेक्षणों और संगठनों पर निर्भर रहते हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) और सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) जैसे संगठन बहुत छोटे स्तर पर सर्वेक्षण करते हैं।

MSMEs सेक्टर रच रहा इतिहास

गौरतलब है कि ‘विशाल बेरोजगारी’ का निष्कर्ष आम तौर पर एक सर्वेक्षण के माध्यम से निकाला जाता है, जिसका सैंपल आकार अधिकतम एक लाख से अधिक होता है। इन सर्वेक्षणों के सर्वेक्षक उचित प्रश्न भी नहीं पूछते हैं। लोगों से पूछा जाता है कि क्या वे ‘नियोजित’ हैं? ऐसे में भले ही किसी व्यक्ति के पास कोई स्थायी नौकरी न हो, लेकिन वह अच्छी कमाई कर रहा हो, उसे बेरोजगार माना जाएगा।

निश्चित रूप से भारत में बेरोजगारी एक समस्या बनी हुई है। लेकिन मोदी सरकार के नेतृत्व में इस समस्या को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की जरूरत नहीं है। क्योंकि मोदी सरकार के सफल प्रयासों से MSMEs सेक्टर देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 29 फीसदी, कुल विनिर्माण उत्पादन में लगभग एक तिहाई और कुल निर्यात में लगभग 40 फीसदी योगदान देता है। MSMEs सेक्टर को भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के इंजन के रूप में वर्णित किया गया है और इससे लगभग 11 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। यही कारण है कि मोदी सरकार ने इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया और 1.5 करोड़ नौकरियों को बचाने में कामयाब रही!

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बेरोजगारी पर विपक्ष के दावे की निकली हवा

जैसा कि टीएफआई ने पहले बताया था कि जनवरी में मोदी सरकार ने आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLG) जारी कर एमएसएमई क्षेत्र में लगभग 13.5 लाख इकाइयों और 1.5 करोड़ नौकरियों को बचाने में मदद की है। बचाये गए 13.5 लाख इकाइयों में से लगभग 93.7 फीसदी सूक्ष्म और लघु श्रेणी में हैं। इसलिए सबसे कमजोर उद्यम इस योजना के प्रमुख लाभार्थी रहे हैं। ECLG योजना के तहत, MSMEs और व्यावसायिक उद्यमों को 50 करोड़ रुपये तक का ऋण देने का प्रावधान किया गया। इस ऋण-राशि के अलावा 20% अतिरिक्त ऋण के लिए सरकार द्वारा 100% गारंटी भी प्रदान की गई थी।

गौरतलब है कि भारत में नौकरी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, लेकिन कांग्रेस और विपक्ष द्वारा फैलाया गया भ्रम वास्तविकता से बहुत दूर है। भारत के औपचारिक क्षेत्र में नौकरियों की वृद्धि उसी बात की गवाही देती है। ईपीएफओ के आंकड़ों के अनुसार, औपचारिक क्षेत्र की नौकरियां अगस्त 2021 में 48 फीसदी बढ़ी। हालांकि, अगस्त में नए ग्राहकों की वृद्धि जुलाई में संशोधित 1.31 मिलियन की तुलना में 12.9% अधिक है। ईपीएफओ के तहत नए ग्राहकों के नामांकन अप्रैल 2021 में 0.83 मिलियन, मई में 0.59 मिलियन और जून में 1.01 मिलियन थे।

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