“कालीन भैया, इज्जत करते हैं लोग आपकी!”
“इज्जत नहीं करते, डरते हैं सब और डर की यही दिक्कत है, कभी भी ख़त्म हो सकता है!”
‘मिर्ज़ापुर’ वेब सीरीज का यह संवाद उत्तर प्रदेश के ऐसा परिवार की वास्तविकता को दर्शाता है, जिसके नाम से उत्तर प्रदेश समेत आधा भारत थर-थर काँपता था। यह डर इतना व्यापक था कि एक समय में केन्द्रीय राजनीति में इनके बिना कोई निर्णय नहीं लिया जाता था किन्तु समय का चक्र ऐसा बदला कि कल तक जो देश के सबसे ताकतवर खानदानों में से एक थे, आज सोशल मीडिया पर उन्हीं का मज़ाक सबसे अधिक उड़ाया जाता है। ये कथा है मुलायम सिंह यादव और उनकी समाजवादी पार्टी की। ये वही मुलायम सिंह यादव हैं, जिनके सुपुत्र को सदैव ‘टोंटीचोर यादव’ बताया जाता है और जिनके जुबान के लड़खड़ाने पर सहानुभूति तक नहीं जताई जाती।
उत्तर प्रदेश के बाहुबली परिवार की कहानी
22 नवम्बर 1939 को सुघर सिंह यादव और मूर्ति देवी के घर पैदा हुए मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव मूल रूप से कृषि परिवेश से आते हैं किंतु वे राजनीति में विशेष रुचि रखते हैं। जितने दांव पेंच मुलायम सिंह अखाड़े में लगाते थे, उतने ही वे राजनीति के अखाड़े में भी लगाते थे। पहली बार 1967 में वे उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में चुने गए और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने। वहीं, उन्होंने आपातकाल में इंदिरा गांधी का विरोध किया।
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एक कटु सत्य है कि हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती। सत्ता एक ऐसा विष होता है कि जो इसको ग्रहण कर ले, वो इसके दुष्प्रभावों से नहीं बच सकता। ऐसे में, जल्द ही मुलायम सिंह यादव का असली स्वरूप भी सामने आ गया। जेपी आंदोलन से जिसका भी संबंध रहा है, उसने सदैव देश का किसी न किसी रूप में नाश ही किया और मुलायम सिंह यादव भी इसी श्रेणी में आते थे। उत्तर प्रदेश में ‘बाहुबली’ राजनीति को लाने वाले यही व्यक्ति थे कि जब बुद्धि से न जीत सको, तो आतंक से विजयी हो। इसी के अंतर्गत मुलायम सिंह यादव ने यूपी में बिहार के ‘जंगलराज’ से पूर्व अपना ‘जंगलराज’ स्थापित किया। यहां बुद्धि मुलायम चलाते थे और बल शिवपाल यादव का था।
केंद्रीय राजनीति में भी सक्रिय थे मुलायम सिंह यादव
इसी तिकड़मबाज़ी के बल पर वर्ष 1989 में समाजवादी पार्टी की पहली बार उत्तर प्रदेश में सरकार बनी और एक वर्ष बाद ही बिहार में लालू प्रसाद यादव भी सत्ता में आ गए। इन दोनों नेताओं के सत्ता में आने के बाद एक साथ उत्तर प्रदेश और बिहार का पतन प्रारंभ हुआ लेकिन इस बीच दोनों के विरुद्ध चुनौती पेश करना मतलब प्रलय को निमंत्रण देने के समान था।
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण 1990 में ही देखने को मिला, जब जलियांबाग की भांति मुलायम सिंह यादव ने शांतिप्रिय कारसेवकों पर अंधाधुंध गोलियां चलवाने का तालिबानी हुक्म दिया। इनको चुनौती देने के लिए कल्याण सिंह ने प्रयास किया परंतु उन्हें सम्पूर्ण समर्थन नहीं प्राप्त था और ठीक इसी समस्या के कारण राजनाथ सिंह जैसे योग्य प्रशासक को भी सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
वहीं, मुलायम सिंह यादव केवल क्षेत्रीय राजनीति तक सीमित नहीं रहे अपितु 1996 से 1998 तक पहले प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और फिर इन्द्र कुमार गुजराल की सरकार में इन्होंने रक्षा मंत्रालय का कार्यभार भी संभाला। एक समय था जब मनमोहन सिंह की सरकार खतरे में थी, तब मुलायम सिंह यादव ने बाहरी समर्थन देकर केंद्रीय राजनीति में अपना प्रभुत्व कायम रखा। उनके बहुर्मुखी राजनीतिक प्रतिभा के कारण 2012 में समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में पुनः सत्ता भी प्राप्त की।
जब समाजवादी पार्टी का पतन प्रारंभ हुआ
परंतु वो कहते हैं न अति सर्वत्र वर्जयते, यानी किसी भी चीज की अति हानिकारक है। जिस भय नीति के बल पर समाजवादी पार्टी ने सत्ता प्राप्त की, उसी भय नीति ने उनके विनाश की नींव रखी। TFI द्वारा प्रकशित एक लेख में हम आपको बता चुके हैं कि कैसे योगी आदित्यनाथ को बतौर सांसद यादव परिवार की निरंकुशता का सामना करना पड़ा। योगी आदित्यनाथ तब संसद में बोले थे,
“सत्ता का संरक्षण प्राप्त होने के साथ साथ एक सत्ता द्वारा प्रायोजित उपद्रव किस तरीके से निर्दोष लोगों को जेल में ठूंसने का काम करता था इसका मैं स्वयं भुक्तभोगी हूं। 11 दिन तक मैं जेल में रहा। मुझे 27 जनवरी को जेल में डाला जाता है। संसद को सूचना दी जाती है कि मेरे ख़िलाफ 107/16 में FIR की जा रही है। 31 जनवरी को मेरे ख़िलाफ बैक डेट पर फिर से FIR दर्ज की जाती है। 10 हज़ार से ज़्यादा निर्दोष नागरिकों को जेल के अंदर डाला गया। मैं देखकर ताज्जुब में हूं कि जब मुझे न्याय नहीं मिल सकता तो देश के उन लोगों पर क्या बीत रही होगी जो इस आशा में हैं कि कोई सांसद या विधायक उनको न्याय दिला पाएगा।”
लेकिन जल्द ही अखिलेश यादव के शासन में समाजवादी पार्टी की निरंकुशता निर्लज्जता की सभी सीमाएँ पार करने लगी। इसी बीच 2014 में राजीतिक बयार ऐसी आई कि नरेंद्र मोदी ने प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता प्राप्त करते हुए भारतीय जनता पार्टी को वर्षों बाद सत्ता में पहुंचाया। यही नहीं, उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अविश्वसनीय प्रदर्शन का परिचय देते हुए 80 में से 71 सीटें भी जीती। यहीं से समाजवादी पार्टी का पतन प्रारंभ हुआ।
जिसने कथा प्रारंभ की, वही इसे खत्म भी करेगा!
मुलायम सिंह यादव अब पूर्व की भांति एक सुलझे हुए तिकड़मबाज़ नहीं रहे और उन्होंने वही किया जो महाभारत में धृतराष्ट्र ने किया। पुत्रमोह में अनर्थ को बढ़ावा दिया। इस कारण से अखिलेश यादव का न केवल दुस्साहस बढ़ा अपितु उसने पूरे समाजवादी पार्टी पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। लेकिन फिर भी 2017 तक उन्हें चुनौती देने वाला दूर-दूर तक कोई नहीं था।
‘घमंड में रावण तक नहीं टिक पाया, तो अखिलेश की क्या हस्ती?’ अपने आप को महाशक्तिशाली सिद्ध करने के लिए अखिलेश ने उस कांग्रेस से गठबंधन कर लिया, जिससे हाथ मिलाने को तृणमूल कांग्रेस तक तैयार नहीं थी। न किसी ने उन्हें कहा था, न इसकी कोई आवश्यकता थी। कहते हैं न अखिलेश के सामने कौन टिकता? अंत में क्या हुआ, इसके लिए कोई विशेष शोध की आवश्यकता नहीं है। 2017 के विधानसभा चुनाव में 325 सीटों पर NDA ने प्रचंड बहुमत प्राप्त करते हुए सत्ता पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया और अखिलेश यादव न घर के रहे, न घाट के!
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एक समय होता था, जब समाजवादी पार्टी के किसी जिला स्तर के नेता के विरुद्ध भी कुछ बोलने से पहले हज़ार बार बोलना पड़ता था, यादव परिवार के विरुद्ध उंगली उठाना तो दूर की कौड़ी रही! लेकिन आज सोशल मीडिया पर इतने पेज हैं, जो बारम्बार अखिलेश यादव को ‘टोंटीचोर’ कहते हैं, मुलायम सिंह यादव को उनके तोतलेपन के लिए चिढ़ाते हैं और शिवपाल सिंह यादव की मानो कोई हस्ती नहीं है। यही पतन है यादव परिवार का, जिसके लिए एक ही व्यक्ति दोषी है – मुलायम सिंह यादव। जिसने कथा प्रारंभ की, वही इसे खत्म भी करेगा!