‘गोडसे से गांधी तक’ बाल ठाकरे के बाद कैसे बदली शिवसेना की प्राथमिकताएं

सत्ता के लोभ में शिवसेना कुछ भी कर सकती है!

मुख्य बिंदु

राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें बदलाव के साथ-साथ स्थिरता भी जरुरी है। जब राजनीति से जुड़ा व्यक्ति या दल आज एक विचारधारा का समर्थन करता है और कल दूसरे विचारधारा का समर्थन करता है, तब उसकी विश्वसनीयता खतरे में पड़ जाती है। कुछ ऐसा ही हाल स्वघोषित हिंदुत्ववादी पार्टी शिवसेना के राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ नेता संजय राउत का है, जो मीडिया के सामने आकर आए-दिन बयान देते रहते हैं। दरअसल, बीते 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर शिवसेना के वरिष्ठ नेता राउत ने कहा कि अगर कोई असली हिंदुत्ववादी होता, तो वह गांधी की जगह जिन्ना को गोली मारता।

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गोडसे से गांधी समर्थक बनी शिवसेना

यह वही शिवसेना है, जो अबतक नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करती रही है। शिवसेना ने सत्ता के लोभ में आकर अपनी सरकार बनाने हेतु महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी गठबंधन का सहारा लिया। वहीं, शिवसेना ने अब अपने मूल से समझौता कर लिया है क्योंकि शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के अनुसार गोडसे देशभक्त थे। यह सत्य है, जिस दिन से शिवसेना ने महाराष्ट्र में कुर्सी की लालसा में राकांपा और कांग्रेस के साथ गठजोड़ स्थापित किया है, उस दिन से शिवसेना की हिंदुत्व वाली धुरी सिरे से ख़ारिज हो चुकी है।

गौरतलब है कि जब से शिवसेना ने कांग्रेस और राकांपा से हाथ मिलाने के लिए अपनी हिंदुत्व की विचारधारा से समझौता किया है, तब से नाथूराम गोडसे और वीर सावरकर की विरासत को लेकर उसके गठबंधन सहयोगियों ने उस विचार को अपमानित किया है। जहां शिवसेना ने अपने गठबंधन सहयोगियों को वीर सावरकर को नीचा दिखाने की अनुमति बहुत पहले दे दी थी, वहीं गोडसे के नाम को बदनाम करने के लिए उसने काम अपने हाथ में ले लिया है।

वहीं, हाल ही में शिवसेना नेता और सांसद संजय राउत ने मोहनदास गांधी की पुण्यतिथि पर टिप्पणी करते हुए कहा, “अगर कोई वास्तविक हिंदुत्ववादी होता, तो वह जिन्ना को गोली मार देता, कोई गांधी को क्यों गोली मारता?” एक अलग पाकिस्तान की मांग, जिन्ना द्वारा दी गई आवाज़ थी। अगर आप असली आदमी होते और हिम्मत रखते तो बंटवारे के जरिए हिंसा फैलाने वाले शख्स को मार देते, ऐसा कृत्य देशभक्ति का कार्य होता।” शिवसेना नेता ने आगे कहा, “मेरे हिसाब से गांधी को मारना, जो एक संत थे, बिल्कुल सही नहीं था। दुनिया आज भी गांधी जी के निधन पर शोक व्यक्त करती है।”

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शिवसेना ने ओढ़ लिया है धर्मनिरपेक्षता का चोला

बता दें कि संजय राउत अपने ही बयान में घिर गए। शिवसेना एक समय पर गोडसे को देशभक्त कहते नहीं थकती थी। यह बालासाहेब ठाकरे की दृष्टि थी, जिसके आधार पर शिवसेना अब तक महाराष्ट्र की राजनीति में जीवित है। वहीं, अब धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़ने के चक्कर में शिवसेना इस स्तर तक गिर गई है कि वो गोडसे को भुला कर अब महात्मा गांधी का समर्थन करने लगी है।

वहीं, 2010 में एक विवाद सामने आया था, जब 84वें मराठी साहित्य सम्मेलन की स्मारिका में नाथूराम गोडसे का उल्लेख था, जिन्होंने 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या की थी। हालांकि, इस घटना के बाद राकांपा नेता जितेंद्र अवध ने नाथूराम गोडसे की जगह पर पुलिस के एनकाउंटर में मारी गई आतंकवादी इशरत जहां की तस्वीर लगाने की मांग की थी।

शिवसेना का बदलता स्वरुप

उसी दौरान शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में कहा गया था कि नाथूराम से नफरत करने वाले इशरत से प्यार करते हैं। क्या वे चाहते हैं कि नाथूराम की जगह इशरत की तस्वीर को स्मारिका में प्रकाशित किया जाए? हाल के बयानों के विपरीत, पार्टी ने उस समय गोडसे के बयानों और लेखनी के माध्यम से एक ऐसे नेता के रूप में रखा, जिसे स्वदेश और हिंदुत्व पर गर्व था। सामना के संपादकीय में आगे कहा गया था कि, “वह (नाथूराम) हमेशा अखंड भारत के लिए खड़े रहे। क्या ऐसी भावनाओं को पनाह देना राष्ट्रविरोधी है? वह एक सच्चे देशभक्त थे।” सामना में दावा किया गया था कि ‘पंडित’ नाथूराम गोडसे इटली से नहीं आए थे बल्कि एक कट्टर देशभक्त थे।

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ऐसे में, यही कारण है कि जिस गठबंधन में आज शिवसेना है, उसकी दसों उँगलियाँ एक जैसी नहीं हैं। लिहाजा, अपनी सत्ता को बचाने के लिए शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपने ज़मीर को नीलम करना ही उचित समझा। वहीं, संजय राउत के बयान से यह भी साफ़ हो गया कि अब वो उसी परिपाटी में नहीं है, जिसकी नींव हिन्दू ह्रदय सम्राट कहे जाने वाले शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे ने रखी थी।

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