‘माइक’ से लेकर ‘इफ़्तिखार’ तक: मेजर मोहित शर्मा का जीवन अपने आप में प्रेरणास्त्रोत है

बाबूमोशाय! ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं

मेजर मोहित शर्मा
कई लोग ऐसे भी होते हैं, जो बड़ी जल्दी चले जाते हैं, लेकिन ऐसा प्रभाव छोड़ जाते हैं कि उन्हें वर्षों तक स्मरण रखा जाता है, उनके कार्यों, उनके साहस को कोई नहीं भूल पाता। ऐसे ही एक वीर थे मेजर मोहित शर्मा, जो आज 44 वर्ष के होते, लेकिन समय के कुचक्र ने उन्हें हमसे दूर कर दिया।

वर्ष 1978 में हरियाणा के रोहतक जिले में आज ही के दिन (13 जनवरी) जन्मे मेजर मोहित शर्मा प्रारम्भिक तौर पर इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन कुछ अनोखा करने की जिजीविषा ने उन्हें भारतीय सेना में जुड़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने तुरंत NDA (राष्ट्रीय रक्षा अकादमी) की परीक्षा में प्रवेश के लिए आवेदन किया और फिर NDA में सफलता पाने के बाद उन्होंने इंडियन मिलिट्री एकेडमी की ज्वाइन की। मेजर मोहित शर्मा ने 11 दिसंबर 1999 को इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) से अपनी ट्रेनिंग पूरी की और उन्हें बतौर लेफ्टिनेंट पहला कमीशन 5-मद्रास रेजिमेंट मिला।

और पढ़ें: हवलदार मेजर निहाल सिंह- वो भारतीय सैनिक जो रेजांग ला युद्ध के बाद चीन की कैद से भाग निकले

‘माइक’ उपनाम से संबोधित किए जाने वाले लेफ्टिनेंट मोहित शर्मा की पहली पोस्टिंग हैदराबाद थी और यहां से उन्‍हें कश्‍मीर में 38 वें राष्‍ट्रीय राइफल्‍स के साथ तैनात किया गया। बता दें कि वर्ष 2005 में लेफ्टिनेंट मोहित शर्मा को उनकी वीरता और शौर्यता को देखते हुए भारतीय सेना में उन्हें पद्दोनत कर मेजर का रैंक दिया गया। उन्होंने अपने आप को छापामार युद्धनीति में प्रशिक्षित किया और जल्द ही वे एक विशेष रणनीति के अंतर्गत अपने एक कोडनेम (इफ़्तिखार भट) के साथ आतंकियों के खेमे में सम्मिलित हो गए।

जब एक मिशन पर मेजर मोहित शर्मा बने इफ़्तिखार भट्ट

अपने रणनीति के तहत इफ़्तिखार ने आतंकियों को बताया कि वर्ष 2001 में उनके भाई को भारतीय सुरक्षाबलों ने मार दिया था और अब उन्‍हें अपने भाई की मौत का बदला लेना है और उनकी प्‍लानिंग आर्मी चेकप्‍वाइंट पर हमला करने की है। इसके लिए उन्‍होंने सारा ग्राउंडवर्क भी कर लिया था। आतंकियों का भरोसा जीतने के लिए उन्होंने अपने हाथों से तैयार नक़्शे भी दिखाए थे। आतंकियों ने तय किया कि वह इफ़्तिखार की मदद करेंगे। लेकिन जब एक को संदेह हुआ तो उसने इफ़्तिखार पर बंदूक तानी और इफ़्तिखार ने भी कहा कि चाहे तो गोली चला सकते हो। दोनों आतंकी चकित होकर एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे और उन्‍होंने अपने हथियार रख दिए थे।

इसी समय मेजर मोहित ने अपनी 9 MM की पिस्‍तौल को लोड किया और दोनों आतंकियों को देखते ही देखते ढेर कर दिया। इफ़्तिखार ने पाकिस्तान की सरजमीं पर आतंकियों को ढेर किया था लेकिन मेजर मोहित शर्मा की कथा यहीं पर खत्म नहीं हुई। Para SF की एक विशेष टुकड़ी के साथ एक कमांडो ऑपरेशन में उन्हें एक जगह पर आतंकियों के छुपे होने की सूचना मिली। मेजर मोहित ने पूरे ऑपरेशन की प्‍लानिंग की और अपनी कमांडो टीम का नेतृत्व किया। हर तरफ से आतंकी फायरिंग कर रहे थे और मेजर मोहित शर्मा बिना डरे अपनी टीम को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे।

मेजर मोहित शर्मा के जीवन पर बनेगी फिल्म

वहीं, फायरिंग इतनी तीव्र थी कि चार कमांडो तुरंत ही चपेट में आ गए थे, परंतु मेजर मोहित शर्मा ने अपनी सुरक्षा पर जरा भी ध्‍यान नहीं दिया और वह रेंगते हुए अपने साथियों तक पहुंचे और उनकी जान बचाई। बिना सोचे-समझे उन्‍होंने आतंकियों पर ग्रेनेड फेंके और दो आतंकी वहीं ढेर हो गए। इसी दौरान मेजर मोहित शर्मा के सीने में एक गोली लग गई, लेकिन इसके बाद भी वह रुके नहीं और अपने कमांडो को बुरी तरह घायल होने के बाद भी निर्देश देते रहे। अंत में, मेजर मोहित शर्मा विजयी हुए, परंतु वे इतनी बुरी तरह से घायल हो चुके थे कि वे वीरगति प्राप्त हो गए।

और पढ़ें: कैसे मेजर जनरल सगत सिंह राठौर की ज़िद्द ने भारत को चीन के विरुद्ध सबसे अप्रत्याशित सैन्य जीत दिलाई

वर्ष 2010 में मेजर मोहित शर्मा को मरणोपरांत उनकी सेवाओं के लिए भारत के सर्वोच्च शांतिकाल वीरता सम्मान, अशोक चक्र से सम्मानित किया गया, जिसे लेने के लिए उनकी पत्नी, मेजर रिश्मा शर्मा स्वयं राजपथ तक अत्यंत साहस के साथ सामने आई। शायद इसीलिए भारतीय सेना में ये वाक्य एक मंत्र की भांति गूँजता है, “अगर आप फौजी हैं, तो आप भाग्य से जीते हो, इच्छा से प्रेम करते हों, और पेशे के लिए लड़ते हो!” और वह इस वाक्य को आत्मसात करते थे। अंततः मेजर मोहित शर्मा का जीवन प्रेरणास्त्रोत है और जल्द ही उनकी जीवनी एक फिल्म के रूप में सामने आएगी, जिसका नाम इनके कोडनेम पर ही होगा, ‘इफ़्तिखार’!

Exit mobile version