देश में पांच राज्यों के चुनाव होने वाले हैं, जिसमें भाजपा शासित गोवा भी शामिल है। गोवा में फरवरी महीनें में चुनाव संपन्न होने वाले हैं। प्रदेश में वर्तमान सत्तारूढ़ भाजपा के अतिरिक्त कांग्रेस पार्टी भी सरकार बनाने की दावेदारी ठोक रही है। इसके अतिरिक्त प्रदेश में अपनी पहचान बना रही दो नई पार्टियां, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी अपना राजनीतिक जनाधार तैयार करने के लिए प्रयासरत है। गोवा में 66.08 फीसदी हिंदू आबादी, जबकि 25.10 फीसदी ईसाई आबादी मौजूद है। गोवा में ईसाइयों का वोट जीत हार तय करने में निर्णायक भूमिका अदा करता है। भारत के ईसाई मतदाताओं को अमूमन भाजपा का वोटर नहीं माना जाता है। किंतु गोवा के ईसाई एक प्रमुख सामाजिक कारण की वजह से आगामी चुनाव में भी भाजपा को वोट करने वाले हैं।
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गोवा तक पहुंची केरल की आग
यदि आप ध्यान दें तो यह चलन बहुत आम हो गया है कि जिन स्थलों पर पर्यटकों की उपस्थिति अधिक होती है, वहां मुस्लिम आबादी का तेजी से विस्तार होता है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य इस समस्या से जूझ रहे हैं। उत्तराखंड में तो मुस्लिम आबादी का विस्तार एवं भूमि जिहाद एक प्रमुख समस्या बन गया है और यह चुनाव का एक महत्वपूर्ण मुद्दा भी है। गोवा में भी मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है। राज्य में पिछले 5 दशकों में मुस्लिम आबादी करीब 5 गुना बढ़ चुकी है।
गोवा के ईसाइयों की समस्या यह है कि जैसे-जैसे मुस्लिम आबादी राज्य में बढ़ेगी, उनकी राजनीतिक पूछ कम होती जाएगी। केरल इसका प्रमुख उदाहरण है, जहां भाजपा के अतिरिक्त सभी प्रमुख राजनीतिक दल मुसलमानों को संतुष्ट करने के लिए परेशान दिखते हैं। जबकि केरल के ईसाइयों को वहां के हिंदुओं की तरह ही, मुसलमानों के कारण विभिन्न प्रकार की समस्याएं हो रही हैं।
हाल ही में क्रिसमस पर्व पर केरल के मुस्लिम श्रमिकों ने एक फैक्ट्री में काम करने ईसाई श्रमिकों पर हमला कर दिया था। दोनों पक्षों की झड़प 3 घंटे पर चलती रही थी। केरल में मुसलमानों और ईसाइयों का टकराव लव जिहाद और नारकोटिक जिहाद के मुद्दे को लेकर भी है। केरल के ईसाइयों का आरोप है कि मुस्लिम युवकों द्वारा ईसाई युवतियों को प्रेम और ड्रग्स के जाल में फंसाया जा रहा है। स्वयं चर्च द्वारा ईसाइयों को इसके प्रति सचेत किया जा रहा है कि उनकी बेटियां स्लीपर सेल के आतंकियों का निशाना बन सकती हैं।
पादरी जोसेफ कलारंगट ने दिया था बयान
इससे पूर्व केरल के ईसाइयों ने भी इसी ओर सत्ताधारी कम्युनिस्ट सरकार का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया था। कोट्टायम के पाला चर्च के पादरी जोसेफ कलारंगट ने लव जिहाद और नारकोटिक्स जिहाद के प्रति जनता को चेताते हुए कहा था, “कट्टरपंथी संगठन और उनके अनुयायी ऐसे तरीकों का इस्तेमाल उन जगहों पर कर रहे हैं, जहां हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और कैथोलिक परिवारों को इस संबंध में सावधान रहना चाहिए। केरल में एक खास ग्रुप है जो विभिन्न इलाकों में कैथोलिक और हिंदू युवाओं को ड्रग व अन्य नशों का आदी बना रहे हैं। ऐसे लोगों का मकसद दूसरे धर्म को भ्रष्ट करने का है। लव जिहाद और नारकोटिक जिहाद दो चीजें हैं जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। पूर्व डीजीपी ने भी कहा था कि केरल आतंकियों का भर्ती केंद्र बनता जा रहा है। इधर आतंकियों के स्लीपिंग सेल्स हैं”।
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गोवा में भाजपा ही एकमात्र विकल्प
गौरतलब है कि मुसलमानों के प्रभाव ने ईसाइयों को केरल की राजनीति में हाशिए पर धकेल दिया है। सरकारी योजनाओं का मुसलमानों द्वारा बढ़-चढ़कर लाभ उठाया जा रहा है। विजयन सरकार ने अल्पसंख्यक कोटे की छात्रवृत्ति में 80% हिस्सा मुसलमानों को दे दिया था। हालांकि, हाई कोर्ट ने सरकार के निर्णय पर रोक लगा दी, किंतु विजयन सरकार का यह कदम ईसाइयों के लिए एक स्पष्ट राजनीतिक संदेश था। मुसलमानों और ईसाइयों की एक विशेषता यह है कि उनके पास पूरे भारतवर्ष में मस्जिद और चर्च का एक मजबूत नेटवर्क व्याप्त है, जो किसी संगठित नेक्सेस की तरह कार्य करता है।
ऐसे में केरल के ईसाइयों की आवाज गोवा तक नहीं पहुंची होगी, यह मानना मूर्खता है। गोवा के ईसाइयों के पास अब एक ही राजनीतिक विकल्प है कि वह किसी ऐसे दल को गोवा की सत्ता दें, जो इस्लामिक शक्तियों के प्रभाव को रोक सके। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी या तृणमूल कांग्रेस कोई भी ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि इनके कारनामें और इस्लामिक शक्तियों के प्रति इनके रवैये को पूरी दुनिया देख रही है। ऐसे में इस बात को तय माना जा सकता है कि इस विधानसभा चुनाव में गोवा के ईसाई भी गोवा के हिंदुओं की तरह भाजपा को ही वोट करेंगे।
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