दुनिया की सर्वश्रेष्ठ संगीत शैली को नया जीवन देने के लिए PM मोदी का धन्यवाद

भारतीय शास्त्रीय संगीत को देंगे PM मोदी 'संजीवनी'

मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा, सुर की नदियाँ हर दिशा से बहते सागर में मिलें
बादलों का रूप ले कर बरसे हल्के हल्के, मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा, मिले सुर मेरा तुम्हारा …मिले सुर मेरा तुम्हारा

भारतीय शास्त्रीय संगीत भारतीय संगीत की दुनिया में एक अमूल्य धरोहर है। भारत के शास्त्रीय संगीत में ‘मधुबन में राधिका नाचे’ से लेकर ‘हनुमान चालीसा’ तक, पंडित भीमसेन जोशी से लेकर अनूप जलोटा तक, मधुर भजन और कर्णप्रिय संगीत से घरों को गुंजायमान करने वाली मिठास होती थी। ऐसी अमूल्य धरोहर जो कभी विलुप्त होने के कगार पर थी, इसे हाल ही में एक ऐसी संजीवनी मिली है, जिसके लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जितनी प्रशंसा करें, कम होगी। भारत के अनमोल रत्न अर्थात शास्त्रीय संगीत को PM मोदी ने नया जीवन दिया है।

संगीत के क्षेत्र में होगा रिवॉल्यूशन

दरअसल, दिवंगत संगीतज्ञ पंडित जसराज के जन्मदिवस के अवसर पर PM मोदी ने एक विशेष ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उन्हे भव्य श्रद्धांजलि अर्पित की। पंडित जसराज कल्चरल फाउंडेशन (Pandit Jasraj Cultural Foundation) के शुभारंभ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि इस संगठन का प्राथमिक उद्देश्य भारत की राष्ट्रीय विरासत कला और संस्कृति की रक्षा करना और इसका विकास एवं प्रचार करना होगा। PM मोदी के अनुसार, “मुझे जानकर अच्छा लगा कि ये फाउंडेशन उभरते हुए कलाकारों को सहयोग देगा और आर्थिक रूप सक्षम बनने के लिए प्रयास करेगा।” लेकिन PM मोदी वहीं पर नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा, “जब टेक्नोलॉजी का प्रभाव हर क्षेत्र में है, तो संगीत के क्षेत्र में भी टेक्नोलॉजी और आईटी का रिवॉल्यूशन होना चाहिए। भारत में ऐसे स्टार्टअप तैयार हों, जो पूरी तरह संगीत को डेडिकेटेड हों, भारतीय वाद्य यंत्रों पर आधारित हों और भारत के संगीत की परंपराओं पर आधारित हों।”

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बता दें कि संगीत के क्षेत्र में भारत का एक स्पष्ट इतिहास रहा है। आदिकाल से भारत का वैश्विक संगीत में अतुलनीय योगदान रहा है और वर्तमान इतिहास में भी यह योगदान तनिक भी कम नहीं हुआ। पुराणों में संगीत का अद्वितीय महत्व रहा है। पौराणिक दृष्टि से देखें तो हमारे संगीत का इतिहास अति प्राचीन है। सनातन संस्कृति और हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मांड में सुनाई देने वाली पहली ध्वनि नादब्रह्म या ओम मंत्र है। यह ध्वनि संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है। चूँकि यह ईश्वरीय शक्ति (ब्रह्म) की अभिव्यक्ति है, यह सुनाई देने वाली सबसे शुद्ध ध्वनि है। ऐसा माना जाता है कि संगीतकार अपनी `साधना` या समर्पित खोज में इस पवित्रता को प्राप्त करने का प्रयास करता है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत का इतिहास

अगर ऐतिहासिक दृष्टि से देखें शास्त्रीय संगीत में भारत की एक विशिष्ट पहचान रही है और सामवेद तो संगीत को ही समर्पित रहा है। वैदिक काल में सामवेद के मंत्रों का उच्चारण उस समय के वैदिक सप्तक या सामगान के अनुसार सातों स्वरों के प्रयोग के साथ किया जाता था। गुरू-शिष्य परंपरा के अनुसार, शिष्य को गुरू से वेदों का ज्ञान मौखिक ही प्राप्त होता था और उन में किसी प्रकार के परिवर्तन की संभावना से मनाही थी। इस तरह प्राचीन समय में वेदों व संगीत का कोई लिखित रूप न होने के कारण उनका मूल स्वरूप लुप्त होता गया। कई योद्धाओं के लिए तो संगीत उनके अभ्यास का एक महत्वपूर्ण भाग हुआ करता था और ये बात गुप्त एवं राजपूत वंश के योद्धाओं से बेहतर कौन जानता है? वहीं, भारतीय संगीत को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं:

  1. ∙ शास्त्रीय संगीत – जिसे ‘मार्गी’ भी कहते हैं।
  2. ∙ उपशास्त्रीय संगीत – जिसमें ठुमरी, टप्पा, होरी, दादरा, कजरी, चैती इत्यादि सम्मिलित हैं
  3. ∙ सुगम संगीत – जो जनसाधारण में प्रचलित है जैसे – भजन, भारतीय फ़िल्म संगीत, ग़ज़ल, भारतीय पॉप (Pop) संगीत, लोक संगीत, चित्रपट-संगीत

ज्ञात हो कि भारतीय शास्त्रीय संगीत की भी दो प्रमुख पद्वतियां हैं

  1. ∙ हिन्दुस्तानी संगीत – जो उत्तर भारत में प्रचलित हुआ।
  2. ∙ कर्नाटक [Carnatic] संगीत – जो दक्षिण भारत में प्रचलित हुआ।

आपने कहीं न कहीं इस बात पर भी ध्यान दिया होगा कि कर्नाटक संगीत में भक्ति रस अधिक मिलता है और हिन्दुस्तानी संगीत में श्रृंगार रस। ऐसा इसलिए क्योंकि अनेक आक्रमणों के बाद भी हमारी मूल संस्कृति और हमारे भारतीय संगीत पर व्यापक प्रभाव नहीं पड़ा। निस्संदेह हमारी शैली में बदलाव हुआ परंतु संगीत में हमारी मूल आस्था और शास्त्रीय संगीत पर हमारा वर्चस्व अक्षुण्ण रहा। हालांकि, स्वतंत्रता के पश्चात यह सब कुछ बदल गया। लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात नेहरूवादी मानसिकता और व्यवसायीकरण की अंधी दौड़ में भारतीय संगीत की रचनात्मकता कहीं गुम हो गई। सुगम गीत में भी चित्रपट यानी फिल्मी संगीत ने धीरे-धीरे अपना वर्चस्व जमाना प्रारंभ कर दिया। बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया के सिद्धांत ने मानो भारतीय संगीत का सत्यानाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिसके लिए कोई एक स्त्रोत अकेले जिम्मेदार नहीं।

भारतीय संगीत उद्योग के समक्ष चुनौतियां

सबके हाथ गंदे हैं इस पाप में, चाहे वह फिल्म प्रोड्यूसर हों, उर्दू प्रेमी बुद्धिजीवी हों या फिर बड़े-बड़े म्यूज़िक कंपनी लेबल और आर डी बर्मन, अनु मालिक जैसे आवश्यकता से अधिक प्रशंसित संगीतज्ञ, जिन्होंने संगीत का कचरा करने और अधकचरे उत्पादों को संगीत का नाम देने से अधिक कुछ नहीं किया। कभी जिस लोक संगीत के लिए भोजपुरी और पंजाबी ख्याति के पुल बांध रहे थे, व्ययवसायीकरण की दौड़ में वे भी अश्लीलता के अड्डे से अधिक कुछ नहीं बन पाए।

इसके अतिरिक्त पश्चिमी संगीतज्ञों का अंधानुकरण भी भारतीय संगीत उद्योग के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ। आपको पता है विदेशों में छन्नू लाल मिश्रा, पंडित भीमसेन जोशी, पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, पंडित रवि शंकर, अनुष्का शंकर, यहाँ तक कि शंकर महादेवन इत्यादि क्यों सफल सिद्ध हुए और चार दिन की चाँदनी के पश्चात यो-यो हनी सिंह, बादशाह जैसे कलाकार क्यों फुस्स हुए? क्योंकि जो शास्त्रीय संगीत से जुड़े थे, वे अपनी मूल संस्कृति से भी जुड़े हुए थे और उन्होंने कभी भी अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। परिणामस्वरूप इनके साथ विश्व के बड़े से बड़े संगीतज्ञ तक जुगलबंदी करने के लिए विवश थे और ये बात ‘बीटल्स’ से बेहतर कौन जान सकता है? क्या ऐसी जुगलबंदी हनी सिंह और ऐमिनैम में देखने को मिलेगी? असंभव! क्योंकि नकल के लिए भी अक्ल चाहिए!

संगीत के क्षेत्र का भी होगा कायाकल्प

इसके अतिरिक्त हमें ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’ वाली मानसिकता से भी बाहर निकलने की आवश्यकता है। जब तक किसी फिल्म में हम लोक संगीत के छंद न सुने, तब तक उसे घास भी नहीं डालते। ‘उड़ता पंजाब’ से पूर्व कितने लोग जानते थे कि पंजाब में नशे और गड्डी के अलावा शिव कुमार बटालवी जैसे रत्न हैं, जिन्होंने ‘अज्ज दिन चढ़ेया’, ‘इक कुड़ी’ जैसे गीत लिखे थे? हम तो फिल्मी संगीत में छिपे बप्‍पी लहिरी एवं अमित त्रिवेदी जैसे रत्नों को जानते हैं, जो संगीत के कण-कण से हीरे मोती निकालने का गुण रखते हैं। अमित त्रिवेदी वे संगीतज्ञ हैं, जिन्हें फिल्मों में अवसर तो मिलता है, लेकिन जितना यश उन्हें मिलना चाहिए, उसका अंश मात्र भी नहीं प्राप्त हुआ है।

परंतु अब PM मोदी ने दृढ़ संकल्प ले लिया है, जैसे स्मार्टफोन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता आ रही है, वैसे ही शनै-शनै: संगीत के क्षेत्र का भी कायाकल्प होगा। यह बात उनके वक्तव्य में भी स्पष्ट झलकती है, जब उन्होंने कहा, “आज हम काशी जैसे अपनी कला और संस्कृति के केंद्रों का पुनर्जागरण कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति प्रेम को लेकर हमारी जो आस्था रही है, आज भारत उसके जरिए विश्व को सुरक्षित भविष्य का रास्ता दिखा रहा है।”

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वहीं, इसी दिशा में कुछ सकारात्मक बदलाव भी प्रारंभ हुए हैं। उदाहरण के लिए सारेगामा म्यूज़िक उद्योग ने संगीत उद्योग में 750 करोड़ रुपये का निवेश करने की घोषणा की है। भारत के पास संगीत के ऐसे अनमोल रत्न हैं कि अगर वह इन्हीं को संसार में निर्यात करे, तो भारत को निरंतर यश और कीर्ति मिलती रहेगी।

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