पिछले कुछ वर्षों में आपने कई बार बीच चौराहे पर मनुस्मृति की प्रतियों के जलने के किस्से सुने होंगे l 21 वीं सदी के नारीवादियों के लिए मनुस्मृति जलाना, सिंदूर और मंगलसूत्र का उपहास उड़ना, सीताहरण करने वाले रावण की प्रशंसा करना और श्री राम को अपशब्द कहना, करवा चौथ का व्रत रखने वाली स्त्रियों और बिंदी लगाने वालो को रुड़ीवादी कहना, श्री गणेश की मूर्ति के हाथ में सेनेटरी पैड थमा देना, ये सब एक प्रतिक बन चुका है- नारी के अधिकारों के लिए लड़ने का l नारी के प्रति हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध अपनी लड़ाई को चर्चा में रखने का l
लेकिन ये विरोध अक्सर पितृसत्तात्मक प्रणाली को चुनौती देने की जगह सनातन धर्म की परंपराओं, प्रथाओं, मान्यताओं और रीतियों के विरोध तक सीमित रह जाता है और नारी के अधिकारों की बात करने वाले हिंदू विरोध ही करते रह जाते हैं l ऐसे ही कुछ दिनों पहले किसी अभिनेत्री के विवाह के बाद सिंदूर लगी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल होने पर कुछ अति प्रगतिशील लोग उसे रूडिवादी कहने लगे l एक व्यक्ति ने तो यह तक कह दिया कि सिंदूर नारी उत्पीड़न का प्रतिक हैl लेकिन क्या हिंदू समाज इतना पिछड़ा हुआ है कि वो स्त्रियों का उत्पीड़न करे?
हमें कई हिंदू शास्त्रों में सिंदूर का उल्लेख मिलता है। रामायण में, माता सीता को अपने पति, भगवान श्री राम के लिए सिंदूर लगाती हैं, जिन्हें देख अंजनिपुत्र रामभक्त हनुमान भी श्री राम की प्रसन्नता के लिए अपने पुरे शरीर में सिंदूर लगा लेते हैं l बिंदी की तरह, सिंदूर का महत्व सिर के केंद्र में तीसरे नेत्र चक्र (आज्ञा चक्र) से जुड़ा है। आज्ञा चक्र की मस्तिष्क से निकटता इसे एकाग्रता, इच्छा और भावनात्मक नियमन से जोड़ती है। सिंदूर का उपयोग पारंपरिक रूप से औषधीय कारणों से भी किया जाता रहा है। आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों में, हिंदू धर्म में ऐतिहासिक जड़ों वाली दवा की एक प्रणाली, लाल सिंदूर पाउडर में औषधीय गुण होते हैं जो महिलाओं को लाभ पहुंचाते हैंl लेकिन कुछ लोगों को लगता है कि जो भी स्त्री सिंदूर लगाती हैं वो ऐसा परिवार या समाज के दबाव में करती है l सोचने की बात है जब सिंदूर न लगाना व्यक्तिगत इच्छा की बात है तो किसी स्त्री का सिंदूर लगाना कैसे सामाजिक उत्पीड़न का कारण हुआ?
खैर, इस तर्क-कुतर्क की दौड़ में प्रश्न फिर पीछे छूट न जाए इसलिए आइये जानते हैं कि क्या सनातन धर्म महिलाओं का उत्पीड़न करता है?
मासिक धर्म नहीं है लज्जा का विषय
असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या में स्थित है। कामाख्या देवी को मूर्ति के रूप में नहीं अपितु एक ‘योनि’ के आकार के पत्थर के रूप में पूजा जाता है। कामाख्या मंदिर देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। पौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। इस दौरान पास से बहने वाली एक नदी का रंग भी लाल हो जाता है और मंदिर के कपट 3 दिन तक बंद रहते हैं l जहाँ 21 वीं सदी में भी मासिक धर्म को अपवित्रता से जोड़कर देखा जाता है तो वहीं सनातन धर्म ने हजारों वर्षों पूर्व ही मासिक धर्म को शक्ति से जोड़ उसे स्त्री जीवन से जुड़ी एक सामान्य प्रक्रिया के तौर पर स्थापित कियाl
यहां बड़ा ही अनोखा प्रसाद दिया जाता हैl दरअसल, यहां तीन दिन मासिक धर्म के चलते एक सफेद कपड़ा माता के दरबार में रख दिया जाता है l तीन दिन बाद जब दरबार खुलते है तो कपड़ा लाल रंग में भीगा होता है जिसे प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता हैl माता सती का मासिक धर्म वाला कपड़ा बहुत पवित्र माना जाता है l साथ ही कामाख्या शक्तिपीठ में कौमारी-पूजा अनुष्ठान का भी महत्व है। आद्य-शक्ति की प्रतीक सभी कुल व वर्ण की कौमारियाँ होती हैंl यहाँ किसी जाति का भेद नहीं होता है।
इसके अलावा ओडिशा में हिंदू मानते हैं कि पृथ्वी भगवान विष्णु (भगवान जगन्नाथ) की पत्नी हैंl देवी हैंl भूदेवीl जब गर्मियां ख़त्म होने वाली होती हैंl मानसून आने को होता हैl कहा जाता है कि उस वक़्त भूदेवी को पीरियड्स आते हैंl 3 दिनों तकl इसीलिए इस दौरान उनको आराम करने की ज़रूरत होती हैl इन 3 दिनों में कटाई, बोआई या जमीन से जुड़ा इस तरह का कोई काम नहीं किया जाता जिससे उनको तकलीफ होl घर की लड़कियों और औरतों को भी इस दिन आराम दिया जाता है l
अब भी जब हम स्वयं को मॉडर्न कहते हैं लेकिन पीरियड्स के बारे में बात करना में ‘असहज’ हो जाते हैंl ऐसे में सनातन से उत्पन्न ऐसे उदहारणों के बारे में जानकर गर्व का अनुभव होता हैl
सतयुग से लेकर त्रेता और द्वापरयुग तक सनातन धर्म की कई विदुषियां हुई जिनमें विश्वआरा, अपाला, घोषा, गार्गी, लोपामुद्रा, मैत्रेयी, सिकता, रत्नावली आदि शामिल हैं।आपको एक प्रसंग शायद याद होगा जब युद्ध में घायल महाराज दशरथ के प्राण रानी कैकयी ने बचाए थे और ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि युद्ध में महाराज दशरथ के साथ रानी कैकयी भी गई थीl इसके अलावा अर्जुन से विवाह करने हेतु सुभद्रा ने रथ पर अर्जुन को अगवा कर लिया थाl इतना ही नहीं, मंडन मिश्र की पत्नी भारती ने स्वयं शंकराचार्य के साथ शास्त्रार्थ किया थाl
संपत्ति पर अधिकार
सनातन धर्म में महिलाओं को संपत्ति रखने का अधिकार है। स्त्रीधन अर्थात वो धन/उपहार जो कन्या को विवाह के समय प्राप्त होते हैं उस पर केवल उसका ही अधिकार हैl वेद और अन्य धार्मिक ग्रंथ स्पष्ट रूप से कहते हैं कि महिलाओं को अपने पिता / पति की संपत्ति में अधिकार है। ऋग्वेद (2•17•7) पिता की संपत्ति में बेटी के हिस्से को प्रमाणित करता है।
अमाजूरिव पित्रोः सचा सती समानादा सदसस्त्वामिये भगम्। कृधि प्रकेतमुप मास्या भर दद्धि भागं तन्वो३ येन मामहः॥
इतना ही नहीं वो मनुस्मृति जिसे आये दिन नारी विरोधी कहकर जलाया जाता है उसी मनुस्मृति में कहा गया है कि पुत्र और पुत्री का परिवार में समान दर्जा है। पुत्र स्वयं के समान है, और पुत्री पुत्र के समान है; इसलिए जब तक वह अपने असली चरित्र में है, कोई और उसकी संपत्ति कैसे ले सकता है?
ययक्षेव दैत्य और प्रजनन क्षमता सम.
तस्यं आत्मनिटिष्टन्त्यां कथं अन्यो धनं दैत्य
मनुस्मृति 9/130
कन्या खुद चुने अपना वर
सनातन धर्म में पुरातन काल से ही स्त्रियों की इच्छा/ सहमति का विशेष ध्यान रखा गया और इसी कारण से कन्या के विवाह के लिए स्वयंवर आयोजित किये जाते थे l स्वयंवर एक हिन्दू परंपरा है जिसमे कन्या स्वयं अपना वर चुनती थी और उससे ही उसका विवाह होता था। माता सीता के स्वयंवर में कैसे प्रभु श्री राम ने शिव धनुष तोड़ा था या कैसे अर्जुन ने द्रौपदी के स्वयंवर में मछली की आंख पर निशाना लगाया था इसके बारे में तो सभी ने सुना है, लेकिन इतिहास में और भी कई स्वयंवर रचे गए हैं l
माता पार्वती का स्वयंवर: हिमालय पुत्री पार्वती ने स्वयंवर में महादेव को अपना पति चुना थाl
संयोगिता का स्वयंवर: पृथ्वीराज के साथ गान्धर्वविवाह कर के संयोगिता पृथ्वीराज की अर्धांगिनी बनी थी।
दमयन्ती का स्वयंवर: दमयन्ती विदर्भ नरेश भीम की पुत्री थी जो नॅषधराज नल पर अनुरक्त हो गई थी।
पुरुष के नाम से पहले स्त्री का नाम
आपने कई बार लोगों को यह प्रश्न करते हुए सुना होगा कि हम अपने नाम के बाद अपने पिता का ही उपनाम क्यों लगते हैं? माता का क्यों नहीं? लेकिन क्या आप जानते हैं इतिहास में ऐसे कई सनातनी राजा रह चुके हैं जो अपनी माता का नाम अपने नाम से पूर्व लगते थे l
उनमें से एक हैं गौतमीपुत्र शतकर्णी जो सातवाहन साम्राज्य के शासक थे l उनकी माता का नाम गौतमी था और इसलिए वो अपने नाम के पूर्व गौतमीपुत्र की संज्ञा लगते थे l इसके अलावा वसिष्ठीपुत्त्रर पुलुमवी (“वसिष्ठी के पुत्र पुलुमवी”) सहित अन्य सातवाहन राजा भी इसी प्रकरण अपने नाम के पूर्व अपनी माताओं का नाम लगाते थेl
इतना ही नहीं हिंदू देवताओं और महापुरषों के नाम के साथ सदैव ही उनकी अर्धान्गानियों का नाम जोड़ा जाता है l जैसे सीताराम, राधेश्याम, गौरीशंकर, सावित्रीसत्यवान, लक्ष्मीनारायण आदिl यज्ञ-हवन आदि भी तभी पूर्ण माने जाते है जब पुरुष के साथ में उसकी में पत्नी यज्ञ में शामिल हो l ऐसे में नारी को बराबरी का दर्जा देने वाले धर्म को नारी विरोधी बताये जाना शर्म का विषय है और सोचने का भी कि गौ-गंगा-गायत्री-गीता का पूजन करने वाला सनातन आज कैसे लोभियों के बीच खड़ा है और ये भी कि किसी भी विषय पर अध्यन करने से पूर्व ही धर्म में कमियां निकलने वाले हम, चिर पुरातन सनातन को कितना ही जान पाए हैं?