मुख्य बिंदु
- श्रीलंका ने अपनी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को बचाने हेतु कर्ज चुकाने के पुनर्गठन में चीन से मांगी सहायता
- श्रीलंका पर वर्ष 2020 के अंत तक है चीन का 3.5 बिलियन डॉलर बकाया
- पड़ोसी देश भारत ने दिया श्रीलंका को वित्तीय संकट से उबरने में मदद करने का आश्वासन
दरअसल, एक खबर के अनुसार कर्ज में डूबे श्रीलंका ने अपनी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को बचाने हेतु कर्ज चुकाने के पुनर्गठन में सहायता के लिए चीन से संपर्क किया है। श्रीलंका के राष्ट्रपति कार्यालय के एक बयान के अनुसार, राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से कहा कि “यह देश के लिए एक बड़ी राहत होगी यदि आर्थिक संकट के समाधान के रूप में कर्ज चुकाने के पुनर्गठन पर ध्यान दिया जाए।”
केंद्रीय बैंक के आंकड़ों के अनुसार, श्रीलंका पर वर्ष 2020 के अंत तक चीन का 3.5 बिलियन डॉलर बकाया है, जिसमें राज्य के स्वामित्व वाली फर्मों को कर्ज शामिल नहीं है। बता दें कि श्रीलंका का चौथा सबसे बड़ा ऋणदाता चीन है। वहीं, श्रीलंका से उम्मीद है कि वह 2022 तक 4.5 बिलियन डॉलर का कर्ज चुका सकता है, जिसकी शुरुआत 18 जनवरी को 500 मिलियन डॉलर के अंतरराष्ट्रीय सॉवरेन बांड पुनर्भुगतान के साथ होगी। वहीं, राजपक्षे ने चीन से एक रियायती व्यापार-कर्ज योजना को स्थापित करने के लिए भी कहा है।
चीन के कर्ज जाल में फंसा श्रीलंका
सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका के गवर्नर के अनुसार श्रीलंका अपनी कर्ज सेवा प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सहायता के लिए चीन से अतिरिक्त कर्ज की मांग कर रहा है। वहीं, नए फंड प्राप्त करने में देरी के कारण फिच रेटिंग्स और मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस द्वारा श्रीलंका की क्रेडिट रेटिंग को डाउनग्रेड कर दिया गया है, जो कर्ज प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक है। श्रीलंका अब डिफॉल्ट के कगार पर है।
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सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2021 में देश की महंगाई दर 11.1 फीसदी की नई ऊंचाई पर पहुंच गई, जिसमें खाद्य महंगाई 16.9 फीसदी पर के साथ सबसे अधिक आँकी गई। वहीं, श्रीलंका के स्थानीय मुद्रा में 2021 की तुलना में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 7.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जिसके कारण कीमतों में वृद्धि हुई है। चीन ने पिछले दशक के दौरान श्रीलंका को राजमार्गों, बंदरगाहों, एक हवाई अड्डे और एक कोयला बिजली संयंत्र के लिए 5 अरब डॉलर से अधिक का कर्ज दिया है। हालांकि, विरोधियों का दावा है कि धन का उपयोग कम रिटर्न वाली White Elephant Projects के लिए किया गया था, जिसे चीन इनकार करता है। बता दें कि इस प्रोजेक्ट का उपयोग एक वित्तीय प्रयास के संदर्भ में किया जाता है, जो अपनी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता है।
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का महत्वपूर्ण हिस्सा है श्रीलंका
श्रीलंका बीजिंग की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है, जो चीन और बाकी दुनिया को जोड़ने वाले बुनियादी ढांचे के निर्माण और वित्त पोषण की दीर्घकालिक रणनीति है। अन्य देशों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका ने BRI की आलोचना की है और इसे विकासशील देशों के लिए ‘ऋण जाल’ कहा है। पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने भी श्रीलंका को चीन के साथ व्यापार करने के खिलाफ सलाह दी है और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को एक “शिकारी” कहा है, जो भूमि और समुद्र पर संप्रभुता का उल्लंघन करना जारी रखती है।
श्रीलंका ने स्वयं दिया वित्तीय संकट को आमंत्रण
एक रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने चीन से संकटग्रस्त द्वीप राष्ट्र (श्रीलंका) के कर्ज चुकौती का पुनर्गठन करने के लिए कहा है, ताकि दक्षिण एशियाई देश की बिगड़ती वित्तीय स्थिति को ठीक करने में मदद मिल सके। दरअसल, इन्ही राजपक्षे बंधुओं के कारण श्रीलंका की आज यह स्थिति हुई है। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे चीन की प्रशंसा करते हैं क्योंकि वह श्रीलंका में भी एक दलीय शासन स्थापित करना चाहते हैं।
श्रीलंका के इतिहास में पहली बार देश की आर्थिक नीतियों और रक्षा मंत्रालयों का नेतृत्व तीन भाइयों ने किया है। गोटबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति, महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री और तुलसी राजपक्षे वित्त मंत्री हैं। राजपक्षे परिवार के पांच अन्य सदस्य हैं, जो वर्तमान श्रीलंका सरकार में मंत्री के रूप में कार्यरत हैं। राजपक्षे परिवार एक ऐसा परिवार है, जहां CCP के उत्साही समर्थक बहुतायत में पाए जाते हैं। राजपक्षे बंधु स्वयं अपने देश को कर्ज के जाल में फंसने की इजाजत देकर राजनीतिक ताकत को मजबूत करना चाहते हैं।
पिछले साल जुलाई में, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने CCP की भूमिका की प्रशंसा करते हुए कहा, “चीन ने अपनी खुली आर्थिक नीति के तहत 900 मिलियन लोगों की गरीबी को सफलतापूर्वक समाप्त कर दिया है। मुझे विश्वास है कि चीन इस रेशम के माध्यम से 500 साल पहले एशिया की आर्थिक ताकत को वापस लाएगा। चीन हमेशा मानता था कि बुनियादी ढांचे में सुधार से लोगों को नई जिंदगी मिलेगी। इसलिए, हमने अपने देश के बुनियादी ढांचे को विकसित करने में मदद करने के लिए चीन को लगातार आमंत्रित किया।” परन्तु आज श्रीलंका चीन की कर्ज जाल में पूरी तरह से फंस चुका है। चीन कर्ज के जाल में श्रीलंका की भूमि पर कब्जा करके अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है।
भारत ने दिया मदद का आश्वासन
इसी बीच भारत ने बीते गुरुवार को अपने पड़ोसी देश श्रीलंका को वित्तीय संकट से उबरने में मदद करने का आश्वासन दिया है। खबरों के अनुसार, भारत ने बाहरी कर्ज भुगतान के कारण होने वाली वित्तीय बाधाओं को दूर करने के लिए श्रीलंका को $2.415 बिलियन की राशि की पेशकश की है। भारतीय विदेश मंत्रालय का यह बयान एस. जयशंकर और श्रीलंका के वित्त मंत्री तुलसी राजपक्षे की वर्चुअल मीटिंग के बाद आया है। बैठक के दौरान, विदेश मंत्री ने कहा कि भारत हमेशा कोलंबो (श्रीलंका की राजधानी) के साथ खड़ा रहा है और COVID-19 महामारी से उत्पन्न आर्थिक और अन्य चुनौतियों पर काबू पाने के लिए हर संभव तरीके से श्रीलंका की रक्षा करना जारी रखेगा।
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इसके अलावा, रिपोर्ट में चीनी विदेश मंत्री वांग यी की श्रीलंका यात्रा पर भी प्रकाश डाला गया, जिसमें उन्होंने कहा कि चीन किसी अन्य देश को श्रीलंका के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देगा। ऐसे में, चीनी अधिकारी के बयान के बावजूद भारत ने संकट को दूर करने को लेकर अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है।