भारतीय संस्कृति पर मुगलों का प्रभाव- अध्याय 2: भारतीयों वस्त्रों पर ‘मुगलई’ छाप

भारतीय परिधानों पर अभी भी है मुगलों का असर!

घूंघट

Source- TFIPOST

“पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ,
पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा….”
“दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है,
दुल्हन का तो दिल दीवाना लगता है!”

घूंघट/पर्दा प्रथा – आप भी सोच रहे होंगे कि एक गंभीर लेख में ऐसा शायराना अंदाज? परंतु यह संस्कृति हमारी अपनी नहीं है, ये संस्कृति मुगलों द्वारा थोपी गई है। ये सत्य है कि कोस कोस पर बदले पानी और चार कोस में वाणी, परंतु विविधता का अर्थ ये भी नहीं कि हम दासता को ही अपनी संस्कृति बना लें। मुगलों के आक्रमण ने सनातन संस्कृति को जितना प्रभावित किया है, उतना शायद ही किसी अन्य संस्कृति ने किया हो। अपने प्रथम अध्याय में हमने इस बात पर प्रकाश डाला था कि कैसे हिन्दी भाषा का उर्दूकरण मुगलों के कारण हुआ था और इस अध्याय में हम आपको अवगत कराएंगे कि कैसे मुगलों ने हमारे परिधानों पर गहरा प्रभाव डाला!

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कभी सोचा है आपने कि अंगवस्त्रम और साड़ी के देश में सलवार कमीज़ कहां से प्रचलित हो गई? कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि कैसे प्रात: काल में होने वाले विवाह अचानक से मध्य रात्रि में होने लगे? कभी सोचा है कि अचानक से भारत में जहां पगड़ी के बिना अनुष्ठान अधूरा माना जाता था, वो अचानक सेहरा और पर्दा को अपनी परंपरा कैसे मानने लग गया? अगर आप ध्यान दें, तो इन सबके पीछे एक वंश की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है – मुगल वंश

भाषा से लेकर कई क्षेत्रों में इन्होंने अपना गहरा प्रभाव डाला है और ऐसे में परिधान कैसे पीछे छूटते? ऐसा नहीं है कि तुर्क और अफ़गान आक्रांताओं ने कोई प्रभाव नहीं डाला था, परंतु उनके आक्रमणों से हमारी वेशभूषा पर लेशमात्र भी अंतर नहीं पड़ा था। लेकिन यह सब बदला मुगलों के आगमन, क्षमा कीजिए, आक्रमण से। उन्होंने हमारी सांस्कृतिक परिधानों पर जो गहरा प्रभाव डाला, उसके बारे में जितना कहा जाए, उतना कम होगा। सूची तो अनंत है, परंतु कुछ ऐसे प्रमुख परिधान हैं, जो विशेष रूप से मुगलों की देन रहे हैं –

घूंघट/पर्दा प्रथा

अगर कुछ गांवों और कस्बों को छोड़ दें, तो अब आपको यह प्रथा दूर-दूर तक नहीं दिखेगी। लेकिन यह घूंघट भारतीय संस्कृति का भाग कैसे बना? वैदिक काल छोड़िए, प्राचीन भारत में दूर-दूर तक घूंघट का उल्लेख नहीं था। यहां तक कि तुर्क काल में भी घूंघट प्रथा पूरी तरह से भारत में नहीं फैल पाई थी, तो फिर घूंघट का प्रादुर्भाव हुआ कैसे? कारण स्पष्ट है – मुगल आक्रांता। तुर्क या अफ़गान भी कम नहीं थे, परंतु मुगलों की ‘बात ही कुछ और थी’। जो बात सल्तनत के युग में बहुत दुर्लभ थी, वो मुगल काल तक आम बात हो चली थी। मुगल हरम में हिन्दू स्त्रियों की कोई कमी न थी, चाहे वो जोधाबाई हो या इंदिरा कंवर! एक बार किसी मुगल ने अपना मन बना लिया, तो संसार की कोई शक्ति उस स्त्री को मुगल हरम का भाग बनने से नहीं रोक सकती थी।

जब हिंदुओं में विवाह अपने चरम पर होते थे, जैसे सहालग के समय, तो मुगलों की ओर से अनेक आक्रांत राह चलते किसी भी विवाह समारोह पर आक्रमण कर देते और महिलाओं को उठाकर ले जाते। साम, दाम, दंड, भेद, किसी भी भांति स्त्रियों, विशेषकर हिंदू स्त्रियों पर मुगल अधिकार जमाना चाहते थे। ऐसे में सती और घूंघट स्वेच्छा नहीं, विवशता थी। इसके अतिरिक्त दो और सांस्कृतिक बदलाव हुए, जो आज तक विद्यमान थे, पर धीरे धीरे इनमें भी बदलाव दिखने लगे हैं –

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मुगलों का प्रभाव उत्तर और उत्तर पश्चिमी भारत में सर्वाधिक था और यहां पर घूंघट सनातन संस्कृति का भी एक ‘अभिन्न अंग’ बन गया, ठीक वैसे ही, जैसे विवाह में वर के परिधान में शेरवानी और सेहरा सम्मिलित हो गया। पंजाब में तो ‘सेहराबंदी’ नामक एक विशेष रीति भी प्रचलित है, जो अब सनातन विवाहों का भाग बन चुकी है। परंतु प्रारंभ में सनातन विवाह में अंगवस्त्रम, धोती और पगड़ी ही वर के प्रमुख परिधान हुआ करते थे। लेकिन अब शेरवानी और सेहरा न हो, तो वर ‘कूल’ नहीं लगता! शेरवानी भी मध्यकालीन इतिहास की उपज थी, जिसे यदि मुगल न लाए होते तो शायद ये भारत में भी नहीं आता!

सलवार-कमीज़

अब आप शायद चकित हों, लेकिन सलवार कमीज़ भी भारतीय नहीं है। अपने शोध पत्र ‘Elucidation of Indian Salwar Kameez’ में मोनिषा कुमार और अमिता वालिया लिखती हैं कि “सलवार ढीले-ढाले ट्राउज़र्स समान परिधान थे, जिन्हे नाड़े से बांधा जाता था और इस शब्द की उत्पत्ति तुर्की, पर्शिया (अब ईरान) और अरब जगत से हुआ है। इसी भांति कमीज़ शब्द की उत्पत्ति अरबी है, जो विभिन्न लंबाइयों के ‘शर्ट/कुर्तों’ का विवरण देती है।” मुगलों से पहले सलवार कमीज़ भारतीय परिधान का प्रमुख हिस्सा नहीं था। हालांकि, इससे मिलते-जुलते परिधान राजस्थान की ओर देखे जा सकते थे। परंतु मुगलों ने बड़ी चतुराई से इसे एक ‘भारतीय परिधान’ में परिवर्तित कर दिया, मानों इससे पूर्व हमारे पास कोई और परिधान था ही नहीं।

बुर्का

लेकिन इससे भी अधिक अगर मुगलों ने किसी विदेशी परिधान का ‘भारतीयकरण’ किया है, तो वह है बुर्का। घूंघट की भांति बुर्का का दूर-दूर तक प्राचीन भारत में अस्तित्व नहीं था, लेकिन आज भारत में बुर्का पहनना तो मानो किसी फैशन से कम नहीं है। बुर्का शब्द की उत्पत्ति ही अरबी है और इसका मूल स्त्रोत भी भौगोलिक अधिक है। बुर्का का मूल उद्देश्य था रेगिस्तान की रेत और कुछ जानवरों से अपनी रक्षा करना। परंतु भारत में ऐसा भूगोल कहां है भाई? जो थोपा गया, उसे हाथों हाथ लपक लिया गया और आज बुर्का देशभर में कैंसर की भांति फैल रहा है।पर मुगलों की गंदगी केवल यहीं तक सीमित नहीं है। भोजन पर भी उन्होंने अपना अलग डेरा जमा रखा है। अगले अध्याय में हम इस बात पर प्रकाश डालेंगे कि कैसे ‘मुगलई’ भोजन के नाम पर मुगलों और उनके चाटुकारों ने दशकों तक देश को उल्लू बनाया!

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