सरकार ने सख्त मानदंडों के साथ स्वदेशी सैन्य उपकरणों की खरीद को बढ़ाने हेतु अथक प्रयास किया है, जिसके परिणामस्वरूप सशस्त्र बलों ने अपने पूंजी परिव्यय का 64 फीसदी वर्ष 2021-22 के लिए स्वदेशी रक्षा उपकरणों, संसाधनों और विकल्पों पर खर्च किया है। खबरों के मुताबिक मोदी सरकार ने अगले वित्त वर्ष के लिए 68 फीसदी बजट फंड स्वदेशी उपकरणों पर खर्च करने का लक्ष्य रखा है। पिछले महीने की समीक्षाओं में यह सामने आया कि सेना को 1,000 करोड़ रुपये के करीब का टेंडर विदेशी कंपनियों को सौंपना पड़ सकता है, लेकिन सरकार ने अंतिम समय में इस आवंटन को समाप्त कर, इसके स्वदेशीकरण का निर्णय लिया है। सैन्य संसाधन की खरीद निर्णायक रूप से स्वदेशी उपकरणों के पक्ष में और ‘स्वदेशी आयात’ अनुपात के बढ़ोत्तरी हेतु सरकार की नीति के अनुरूप है। हालांकि, विशेष रूप से हाई-टेक वस्तुओं के लिए व्यवहार्य विकल्पों की अनुपस्थिति एक चुनौती साबित हुई है।
और पढ़ें: आकाश प्राइम का परीक्षण सफल, स्वदेशी Iron Dome की ओर भारत का पहला कदम
स्वदेशी आयात अनुपात को बढ़ाने पर जोर
उदाहरण के लिए वर्ष 2021 में थल सेना ने स्वदेशी खरीद पर 72 फीसदी धन खर्च किया, लेकिन यह वायु सेना और नौसेना की तुलना में धन का आनुपातिक रूप से कम कुशल उपयोग था। उनमें से नौसेना का स्वदेशी संसाधनों पर खर्च लगभग 65.9 फीसदी रहा, जबकि वायु सेना का स्वदेशी सैन्य संसाधनों पर खर्च 59.2 फीसदी था। वर्ष 2021-22 में कुल रक्षा पूंजी परिव्यय 1,13,717.58 करोड़ रुपये था और स्वदेशी आयात का अनुपात लगभग 64:36 रहा। खबरों के मुताबिक अगले वित्त वर्ष में इसे 68:32 करने की योजना है, जिसके फलस्वरूप ‘स्वदेशी आयात’ अनुपात को 1,17,400 करोड़ रुपये से थोड़ा अधिक करने का प्रयास किया जाएगा। इसे प्राप्त करने के लिए सेवावार लक्ष्य भी निर्धारित किए गए हैं।
बताया जा रहा है कि थल सेना 75-76 फीसदी स्वदेशी खरीद का लक्ष्य रखने वाली है, जबकि नौसेना 70 फीसदी तक पहुंचने का लक्ष्य रखेगी और वायु सेना 62 फीसदी का लक्ष्य रखेगी। वहीं, दूसरी ओर रक्षा मंत्रालय ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि ‘स्वदेशी आयात’ अनुपात से परे किसी भी खरीद के लिए एक विस्तृत औचित्य की आवश्यकता होगी, जिसके लिए रक्षा मंत्री की विशेष मंजूरी की जरुरत होगी। राफेल लड़ाकू विमानों, उसके सहायक उपकरणों और S-400 वायु रक्षा प्रणाली के लिए चल रहे भुगतान को देखते हुए वायु सेना का आयात बिल अधिक बना हुआ है। परंतु, सरकार ने विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करने के लिए यह रणनीतिक निर्णय लिया है।
और पढ़ें: ‘मेक इन इंडिया’ की बदौलत भारत का हथियार उद्योग रॉकेट की गति से आगे बढ़ रहा है
जल्द ही सैन्य उपकरणों का निर्यात करेगा देश
बताते चलें कि भारत के सैन्य उपकरणों और पुर्जों का प्रमुख स्रोत रूस के साथ हाल की 2+2 बैठक में भारतीय पक्ष ने यह स्पष्ट किया कि संबंधों का भविष्य अमेठी में AK-203 राइफल्स जैसी मेक इन इंडिया परियोजनाओं में मास्को द्वारा किए गए निवेश में निहित है। इसी तरह ब्रह्मोस मॉडल को आगे बढ़ने पर भी सरकार जोर-शोर से काम कर रही है। भारत ने फिलीपींस के साथ अपना पहला ब्रह्मोस निर्यात सौदा अभी-अभी पूरा किया है।
ध्यान देने वाली बात है कि भारत अब सैन्य संसाधनों और उपकरणों का ग्राहक होने के बजाय, अब इसके सबसे बड़े व्यापारी बनने की ओर कदम बढ़ा रहा है। भारत के पास सबसे बड़ा बाजार है। भारत के पास आधारभूत संरचना और अभियंताओं का एक बड़ा वर्ग भी है, जो देश के सैन्य बाजार को नैसर्गिक रूप से स्वदेशी और स्वावलंबी करने में सक्षम हैं। अतः भारत अब इसी बराबरी के मानदंडों पर अन्य निर्यातक देश के साथ गंठजोड़ करते हुए अपने सैन्य बाजार को वृहद और विस्तृत बनाना चाहता है। इससे न सिर्फ रोजगार पैदा होंगे, बल्कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार और अर्थ शक्ति भी बढ़ेगी। इसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु मोदी सरकार का प्रयास जारी है।
और पढ़ें: हथियारों की निर्भरता कम कर भारत रूस के साथ सम्बन्धों को ऊर्जा और मिनरल की ओर मोड़ रहा है