Omicron के कारण नहीं रुकनी चाहिए भारत की आर्थिक गतिविधियां

इसे लेकर ज्यादा पैनिक होने की आवश्यकता नहीं है!

ओमिक्रोन वेरिएंट

Source- TFIPOST

ओमिक्रोन (Omicron) का हौव्वा पूरे देश को बर्बाद करने के लिए काफी है। बीमारी के नाम पर नए-नए नाम से डराने वाला कोरोना वायरस अब फिर से सबके जुबान पर है। अबकी बार यह एकदम सुनामी की तरह आया है। तमाम भारतीय प्रदेश सुरक्षा के नजरिये से बदलाव करने के लिए तैयार हैं। कई जगह नाईट कर्फ्यू लगा दिया गया है, तो कई जगह सम्पूर्ण लॉकडाउन की तैयारी भी चल रही है। इन सबके बीच यह सोचना जरूरी है कि क्या लॉकडाउन लगाना आवश्यक है? क्योंकि अगर जरूरी नहीं है और फिर भी लगाया गया, तो यह एक बड़े आर्थिक संकट को निमंत्रण दे सकता है। जहां तक तथ्यों की बात है, ओमिक्रोन वेरिएंट की वजह से लॉकडाउन लगाना मूर्खता होगी।

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ओमिक्रोन वेरिएंट लोगों के अंदर बढ़ा देगा इम्युनिटी

नए अध्ययनों की एक श्रृंखला ने ओमिक्रोन वेरिएंट के चांदी की परत की पुष्टि की है। एक तरफ कोरोना के मामलों की संख्या रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ रही है, लेकिन गंभीर मामलों और अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या काफी कम है। कुछ डेटा वैज्ञानिक कहते हैं कि यह महामारी के एक नए यानी कि कम चिंताजनक अध्याय का संकेत हैं। सैन फ्रांसिस्को में स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की एक प्रतिरक्षाविज्ञानी मोनिका गांधी (Monica Gandhi) ने कहा कि अब हम एक पूरी तरह से अलग चरण में हैं। वायरस हमेशा हमारे साथ रहने वाला है, लेकिन मेरी आशा है कि ओमिक्रोन वेरिएंट लोगों के अंदर इतनी इम्युनिटी बढ़ा देगा कि यह कोरोना महामारी को पूरी तरह से खत्म कर देगा।

गौरतलब है कि ओमिक्रोन वेरिएंट दक्षिण अफ्रीका में एक महीने पहले ही खोजा गया था। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि स्थिति बदलने में अभी भी काफी समय है, लेकिन पिछले सप्ताह के आंकड़ों से पता चलता है कि व्यापक प्रतिरक्षा और कई उत्परिवर्तन के संयोजन के परिणामस्वरूप यह वायरस उत्पन्न हुआ है, जो पिछले पुनरावृत्तियों की तुलना में बहुत कम गंभीर बीमारी का कारण बनता है।

डेल्टा के मुकाबले गंभीर बीमारी होने की संभावना 73 फीसदी कम

दक्षिण अफ्रीका के एक अध्ययन में पाया गया है कि कोरोना वायरस की ओमिक्रोन वाली चौथी लहर के दौरान अस्पताल में भर्ती रिकार्ड संख्या में हुई है, लेकिन तीसरी लहर के दौरान डेल्टा के साये में आये मरीजों की तुलना में ओमिक्रोन वेरिएंट से गंभीर बीमारी होने की संभावना 73% कम है। केप टाउन विश्वविद्यालय के एक इम्यूनोलॉजिस्ट वेंडी बर्गर का कहना है कि “डेटा अब काफी ठोस है कि अस्पताल में भर्ती होने और मामलों में बड़ा अंतर है।”

ऐसा प्रतीत होता है कि कई कारकों ने ओमिक्रोन वेरिएंट को कोविड-19 की पिछली लहरों की तुलना में कम विषैला या सामान्य बना दिया है। एक कारक फेफड़ों को संक्रमित करने की वायरस की क्षमता भी है। कोविड संक्रमण आमतौर पर नाक में शुरू होकर गले तक फैलता है। एक हल्का संक्रमण इसे ऊपरी श्वसन पथ से ज्यादा दूर नहीं करता है, लेकिन अगर वायरस फेफड़ों तक पहुंचता है तो आमतौर पर अधिक गंभीर लक्षण होते हैं। लेकिन पिछले सप्ताह में पांच अलग-अलग अध्ययनों ने सुझाव दिया कि संस्करण पिछले रूपों की तरह फेफड़ों को आसानी से संक्रमित नहीं करता है।

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ओमिक्रोन से बचाव कर रहे हैं T-सेल

दूसरी ओर यह भी खबर है कि हमारी सामान्य प्रतिरोधक क्षमता भी इस वेरिएंट पर कारगर है। एंटीबॉडी के विपरीत, टी कोशिकाएं पूरे वायरस के स्पाइक प्रोटीन को लक्षित कर सकती हैं। यह तब भी काम करती है जब एंटीबॉडी कम हो जाते हैं। इससे समझा जा सकता है कि संक्रमण की एक रिकॉर्ड लहर अब तक अस्पतालों में भर्ती के रूप में क्यों नहीं आई है। टी कोशिका, वायरस से संक्रमित कोशिकाओं के खिलाफ शरीर का हथियार है और टीकाकरण द्वारा पर्याप्त रूप से इसे ताकत दिया गया है। नीदरलैंड में इरास्मस विश्वविद्यालय और दक्षिण अफ्रीका में केप टाउन विश्वविद्यालय से अलग-अलग अध्ययनों में T-सेल को ओमिक्रोन वेरिएंट से बचाव करते हुए पाया गया है।

निष्कर्ष यह समझने में मदद कर सकते हैं कि ओमिक्रोन मामलों की लहर ने अब तक दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और ब्रिटेन में मृत्यु दर में वृद्धि क्यों नहीं की है। एंटीबॉडी के विपरीत, टी कोशिकाएं पूरे वायरस के स्पाइक प्रोटीन को लक्षित कर सकती हैं, जो काफी हद तक समान रहती है। भारत में एक बड़ी आबादी को वैक्सीन लगा दिया गया है। हालांकि, वैज्ञानिक आधार पर ओमिक्रोन वेरिएंट को भी घातक बताया जा रहा है, लेकिन हालिया रिपोर्ट कुछ और ही बयां कर रहे हैं। ऐसे में जरुरी यह है कि इसका हव्वा प्रतिबंध लगाने पर मजबूर न करे।

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