DD बना ताइवान समर्थक देशों की सबसे बड़ी आवाज, तो चीन तिलमिलाया

दूरदर्शन अपने वैश्विक कार्यक्रम में चीन की पोल खोल रहा है!

दूरदर्शन ताइवान

80 और 90 के दशक में जब भारत के अधिकांश घरों में टेलीविज़न दस्तक दे रहा है था, तो उस ज़माने में दूरदर्शन सूचना का एक प्रमुख केंद्र था। दैनिक समाचार हो या चित्रहार या रविवार के दिन रामायण या फिल्म दिखाने का चलन, दूरदर्शन हमेशा से सन्देश के क्षेत्र में भारत का स्तम्भ रहा है। आज का दूरदर्शन बदल गया है आज वो जिस तरह से वो वैश्विक मुद्दे पर चर्चा कर रहा है वह देखने योग्य है। हम आज दूरदर्शन की चर्चा इसलिए कर रहे है क्यूंकि दूरदर्शन ने भारत विरोधी चीन की सिट्टी-पिट्टी गुम कर दी है। दरअसल, दूरदर्शन पिछले कुछ समय से ताइवान समर्थित देशों को अपने वैश्विक कार्यक्रम में निमंत्रित कर चीन की पोल खोल रहा है।

इसी बीच एक सम्बंधित कार्यक्रम में दूरदर्शन ने स्लोवेनिया के प्रधानमंत्री के साथ ताइवान के मुद्दे पर चर्चा की जिसे देख चीन अब सकते में आ सकता है। ताइवान को लेकर चीन हमेशा से ही काफी संवेदनशील रहा है। जैसा कि चीन ताइवान को अपना अभिन्न अंग मानता है, पर जब भी कोई ताइवान को एक स्वतंत्र देश कहता है तो वह असहज हो जाता है। सीसीपी यह नहीं चाहती कि कोई भी ताइवान को एक स्वतंत्र और अलग देश माने।

ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जहां किसी देश के नेता, राजनेता, मंत्री या अन्य प्रभावशाली व्यक्तियों ने ताइवान को चीन से स्वतंत्र और अलग देश कहा है। ऐसी ही एक घटना इस सोमवार को हुई जब स्लोवेनियाई प्रधानमंत्री जानेज़ जानसा ने ताइवान को “लोकतांत्रिक देश” कहा। उन्होंने यह भी कहा कि स्लोवेनिया एक दूसरे के क्षेत्र में व्यापार कार्यालय खोलने के लिए ताइवान के साथ आधिकारिक बातचीत कर रहा है।

वास्तव में क्या हुआ था?

सोमवार को भारतीय सार्वजनिक प्रसारक दूरदर्शन के साथ एक साक्षात्कार के दौरान, स्लोवेनियाई प्रधान मंत्री जनेज़ जानसा ने कहा कि, “ताइवान एक ‘लोकतांत्रिक देश’ है जो अंतरराष्ट्रीय लोकतांत्रिक मानकों और कानूनों का सम्मान करता है।” उन्होंने कहा, “स्लोवेनिया और ताइवान प्रतिनिधियों के आदान-प्रदान पर काम कर रहे हैं, यह दूतावासों के स्तर पर नहीं होगा। यह उसी स्तर पर होगा जैसा कि यूरोपीय संघ के कई सदस्य देशों के पास पहले से ही है।”

उन्होंने आगे कहा कि, “अगर हमारे पास पूर्व के वर्षों में मजबूत गठबंधन होते, तो मुझे लगता है कि हम पहले से ही ऐसे व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित कर चुके होते, क्योंकि यह सामान्य लाभ का मुद्दा है।”

ताइवान के लिए अपना समर्थन व्यक्त करते हुए, उन्होंने यह भी कहा कि, “स्लोवेनिया ताइवान के लोगों के संप्रभु निर्णयों का सम्मान करता है और ताइवान पर किसी भी तरह का जबरदस्ती – सैन्य, राजनयिक और गैर रणनीतिक शक्ति  – लागू नहीं की जानी चाहिए।”

उन्होंने यह भी कहा कि, “अगर वे चीन में शामिल होना चाहते हैं, अगर यह उनकी स्वतंत्र इच्छा है, बिना किसी दबाव के, बिना किसी सैन्य हस्तक्षेप के, बिना किसी ब्लैकमेलिंग के और बिना रणनीतिक धोखाधड़ी के, जैसा कि वर्तमान में हांगकांग में हो रहा है, तो हम इसका समर्थन करेंगे, लेकिन अगर ताइवान के लोग स्वतंत्र रूप से रहना चाहते हैं, तो हम यहां भी उसका समर्थन करने के लिए हैं।”

चीन के विपरीत, भारत एक लोकतंत्र है और उसके पास एक स्वतंत्र और स्वतंत्र मीडिया है। भारतीय मीडिया न तो भारत सरकार के नियंत्रण में है और न ही इसे किसी विदेशी संस्था द्वारा प्रभावित या निर्देशित किया जा सकता है।

हालाँकि, दूरदर्शन द्वारा स्लोवेनियाई प्रधानमंत्री जनेज़ जानसा के सोमवार के साक्षात्कार को भारतीय सार्वजनिक प्रसारक द्वारा एक दिलचस्प और प्रभावी कदम माना जा सकता है। इस तरह के कार्यक्रम के मंचन से भारत भी चीन को बता रहा है कि भारत भी चीन की कमजोर कड़ियों को पकड़ने में सक्षम हैl आपको बतादें कि भारत का यह एक छोटा लेकिन चतुर कदम था और यही नहीं यह ताइवान का समर्थन करने और ताइवान पर चीनी दावों को चुनौती देने के लिए एक प्रतीकात्मक कदम भी था।

इस कदम से यह भी पता चलता है कि भारत और भारतीय सार्वजनिक प्रसारक यहां ताइवान और सभी ताइवान समर्थक आवाजों का समर्थन करने के लिए हैं, और किसी को भी समर्थन देने के लिए तैयार हैं जो ड्रैगन को चुनौती देना, लड़ना या खड़ा होना चाहता है। अब ये साक्षात्कार भारत सरकार के प्रभाव में हो या नहीं हो, लेकिन इसे निश्चित रूप से भारत द्वारा एक शक्तिशाली विदेश नीति के कदम के रूप में देखा जा सकता है।

भारत सरकार जानती है कि जब मीडिया और प्रेस की स्वतंत्रता की बात आती है तो चीन भारत को चुनौती नहीं दे सकता या उसका मुकाबला नहीं कर सकता है, और भारत अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का हवाला देते हुए चीन की किसी भी चुनौती या शिकायत पर आसानी से जीत सकता है, इसलिए मीडिया और प्रेस, चाहे वह निजी हो या सार्वजनिक ,दूरदर्शन के मामले में चीन चाहे तो भी इस बारे में कुछ खास नहीं कर सकता।

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इस तरह की घटनाओं ने अतीत में चीन को परेशान किया है और भविष्य में भी ऐसा करना जारी रखेगा। चीन विरोध कर सकता है और भारत सरकार से शिकायत कर सकता है, और भारत और स्लोवेनिया के खिलाफ प्रचार का बदला लेने का अभियान भी चला सकता है, लेकिन आज के परिदृश्य में वैश्विक मंच पर भारत से चीन जीत नहीं सकता चाहे विदेश नीति हो या फिर सैन्य शक्ति।

गौरतलब है कि दूरदर्शन पिछले कुछ समय से चीन को लेकर बहुत हीं मुखर रहा है और समय -समय पर भारत के तरफ से प्रतिधिनित्व करके चीन की घटिया नीतियों की आलोचना करता रहता है।परंतु इस बार जिस तरह से दूरदर्शन ने ताइवान समर्थित देशों के साथ अपनी वार्ता बढ़ाई है उससे कागज़ी ड्रैगन के पसीने छूट जाएंगे।

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