वामपंथियों के आखिरी गढ़ की तबाही का प्रारंभ है JNU की नई एडमिशन स्ट्रेटजी

अब JNU भी बदलेगा और छात्रों की विचारधारा भी बदलेगी!

JNU

Source- TFIPOST

JNU कैंपस में लगेभारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह’ और अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल अभी जिंदा है’ के नारे आपको आज भी याद होंगे। 9 जनवरी 2016 को आतंकी अफजल गुरु को फांसी दिए जाने की तीसरी वर्षगांठ पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुछ विद्यार्थियों द्वारा एक प्रदर्शन का आयोजन किया गया था, जिसमें यह नारेबाजी हुई थी। उस समय भारत के हर नागरिक को यह पता चला था कि जेएनयू कैंपस वामपंथी विचारधारा का गढ़ है और वामपंथी विचारधारा देश तोड़ने के मंसूबे पाले हुए है। इसके बाद तो JNU आए दिन चर्चा का हिस्सा बना रहा। इन सब में महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि JNU देशविरोधी विचारों विशेषतः वामपंथ की नर्सरी बना कैसे? और दूसरा प्रश्न यह था कि इसे ठीक कैसे किया जाए? अब भारत सरकार इस समस्या के लिए एडमिशन स्ट्रेटजी लेकर आई है।

अब JNU देश के अन्य विश्वविद्यालयों की तरह ही विद्यार्थियों का एडमिशन लेगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी वर्ग के विद्यार्थियों को समान अवसर मिले। नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद केंद्र सरकार ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए एक सामान्य प्रवेश परीक्षा आयोजित कराने का निर्णय लिया था। इस संदर्भ में यूजीसी द्वारा सभी विश्वविद्यालयों को 2022 तक अपने यहां सेंट्रल यूनिवर्सिटी कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट से संबंधित सभी कामों को पूरा करने के लिए कहा गया था। CU-CET लागू होने पर दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रवेश प्रक्रिया में हुए परिवर्तन के बाद JNU ने भी CU-CET के अंतर्गत 2022 की एडमिशन परीक्षा कराने का निर्णय किया है।

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JNU प्रशासन की ओर से की गई घोषणा

JNU प्रशासन ने स्वयं इसकी घोषणा की और बताया कि प्रवेश परीक्षा नेशनल टेस्टिंग एजेंसी NTA द्वारा ली जाएगी। प्रवेश परीक्षा का जेएनयू प्रशासन के हाथों से निकल जाना इस बात को सुनिश्चित करेगा कि जेएनयू में प्रवेश पाने वाले विद्यार्थियों में केवल वामपंथी विचारधारा के विद्यार्थियों को ही तवज्जो न मिले। बीते बुधवार को हुई मीटिंग में JNU की एडमिशन काउंसिल ने CU-CET/CU-ET लागू करने की योजना पर विचार किया। जिसके बाद एक नोटिस जारी करते हुए कहा गया कि अकादमिक परिषद का उपरोक्त निर्णय 22 मार्च, 2021 को आयोजित अकादमिक परिषद की 157 वीं बैठक में लिए गए अपने पहले के निर्णय के अनुरूप है, जब भी राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) द्वारा परीक्षा की योजना बनाई जाएगी, उसी के माध्यम से छात्रों का चयन और प्रवेश होगा।”

नोटिस में आगे कहा गया कि अकादमिक परिषद में विचार-विमर्श के दौरान, स्कूलों के डीन, केंद्र अध्यक्षों और परिषद के बाहरी सदस्यों सहित बड़ी संख्या में सदस्यों ने इस बात पर जोर दिया कि CU-ET देश भर के कई योग्य छात्रों को एक समान अवसर प्रदान करेगा। (परिषद पर) कई प्रवेश परीक्षाओं को लेने के बोझ को कम करेगा। CU-ET के बारे में कुछ संकाय सदस्यों द्वारा फैलाई गई गलत सूचना को अकादमिक परिषद द्वारा नोट किया गया था और इसकी निंदा की गई।”

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जानें कब हुआ JNU में मार्क्सवादी विचारधारा का जन्म?

बताते चलें कि JNU की स्थापना वर्ष 1969 में हुई थी। उस समय इस विश्वविद्यालय में पढ़ाने आए प्राध्यापकों के प्रथम बैच में अधिकांश प्राध्यापक कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से आए थे। यहीं से JNU में मार्क्सवादी विचार का बीज बोया गया, क्योंकि तब अधिकांश प्राध्यापक मार्क्सवादी विचारधारा के थे। अतः विश्वविद्यालय मार्क्सवादी विचारधारा का केंद्र बन गया! शुरुआती वर्षों में JNU में प्रवेश के लिए साक्षात्कार का नियम था और साक्षात्कार में बैठने वाले प्राध्यापक यह सुनिश्चित करते थे कि एडमिशन पाने वाले विद्यार्थियों का वैचारिक झुकाव वामपंथ की ओर ही रहे!

1980 के दशक में JNU प्रशासन द्वारा, देश के पिछड़े और गरीब क्षेत्रों के विद्यार्थियों को एडमिशन प्रक्रिया में समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से, देश के अलग-अलग भागों में प्रवेश परीक्षा आयोजित कराने का निर्णय लिया गया। यह प्रवेश परीक्षा लिखित रूप में ली जाती थी। हालांकि, लिखित परीक्षा ने भी वामपंथ के प्रभाव को कम करने में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई, क्योंकि विद्यार्थियों की उत्तर पुस्तिका जांचने वाले प्राध्यापक वामपंथी विचारधारा के ही थे। इस कारण वे केवल कथित तौर पर ऐसे विद्यार्थियों को ही चयनित करते थे, जो उनके वैचारिक दृष्टिकोण से सहमत होते थे!

अब केंद्र सरकार ने जो नए बदलाव किए हैं, उसके बाद सभी विश्वविद्यालयों के लिए एक सामान्य परीक्षा होगी। इस परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय आवंटित किए जाएंगे। अर्थात् प्रवेश प्रक्रिया अब IIT और नीट के समान होगी। ऐसे में किस विद्यार्थी को एडमिशन देना है और किसे नहीं देना है, यह तय करने का अधिकार JNU के प्राध्यापकों के पास होगा ही नहीं।

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