मोदी सरकार ने किया नेताजी सुभाष चंद्र बोस को याद, दिया वो सम्मान जिसके वो हकदार हैं

कांग्रेस ने नेताजी को हमेशा उनके सम्मान से रखा वंचित

“सुभाष जी, सुभाष जी, वो जान ए हिन्द आ गए,

है नाज़ जिस पे हिन्द को, वो शान ए हिन्द आ गए”

ये गीत आज की वास्तविकता है, क्योंकि जिस व्यक्ति को केवल कुछ वाद विवाद प्रतियोगिता और कुछ कमीशन मात्र तक सीमित कर दिया गया था, अब उन्हे पुनः अपनी राष्ट्रव्यापी पहचान मिलने लगी है। अब देश की स्वतंत्रता का पर्याय केवल गांधी और नेहरू नहीं, नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी होंगे, और भारत के इस सच्चे सपूत के लिए इससे अनोखी और महत्वपूर्ण श्रद्धांजलि कोई नहीं हो सकती।

निस्संदेह मोहनदास करमचंद गांधी ने देश को एकजुट करने में काफी योगदान दिया, परंतु देश को उन्होंने नहीं स्वतंत्र कराया। जिस व्यक्ति के कारण वास्तव में देश स्वतंत्र हुआ, आज उन्ही के जन्म को 125 वर्ष पूरे हुए हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म प्रख्यात अधिवक्ता जानकीनाथ बोस और प्रभावती बोस के घर कटक में हुआ था। ये प्रारंभ से ही देशभक्ति में ऐसे लीन थे, कि उन्होंने अपने संस्कृति के अपमान पर अपने अंग्रेज़ प्रोफेसर की ही पिटाई कर दी थी, जिसके लिए उन्हे 1918 में कलकत्ता प्रेसिडेंसी कॉलेज से निलंबित किया गया। बाद में उन्होंने आगे की पढ़ाई स्कॉटिश मिशन चर्च कॉलेज से पूरी की।

प्रखर व्यक्तित्व और बुद्धि के धनी सुभाष ने भारतीय सिविल सर्विसेज की परीक्षा को उत्तीर्ण किया, परंतु वे अंग्रेज़ों की चाटुकारिता में कोई रुचि नहीं रखते थे। अतः सम्पूर्ण भारत में इस परीक्षा में चौथा स्थान पाने के बाद भी उन्होंने इस सेवा को त्यागकर अपने को राष्ट्रसेवा को समर्पित कर दिया और प्रारंभ में कांग्रेस से जुड़े। कभी भी अनुनय विनय के मार्ग पर नहीं चलने वाले सुभाष चंद्र बोस ने क्रांतिकारी विचारधारा को बढ़ावा दिया और अंत में 1941 में अंग्रेज़ों की आँखों में धूल झोंकते हुए वह पेशावर के रास्ते पहले काबुल और फिर बर्लिन गए। यहीं से आज़ाद हिन्द फ़ौज यानि इंडियन नेशनल आर्मी की नींव पड़ी, जिसने अपने अनोखी शैली में न केवल ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी, अपितु 1947 तक उन्हे भारत से दुम दबाकर भागने पर विवश कर दिया।

परंतु स्वतंत्र भारत में नेताजी को इस अतुलनीय योगदान के क्या मिला? क्योंकि उनकी मृत्यु पर एक प्रश्नचिन्ह था, और कई लोग उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व से काफी चिढ़ते थे, इसलिए स्वतंत्र भारत में नेताजी के साथ भी वही हुआ, जो भगत सिंह, सूर्य सेन, यहाँ तक कि सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ हुआ। सारी लाइमलाइट और जयजयकार केवल और केवल मोहनदास करमचंद गांधी और उनके ‘चुने हुए उत्तराधिकारी’, जवाहरलाल नेहरू को मिली। इसके अलावा नेताजी सुभाष चंद्र बोस से वामपंथी कितना जलते थे, ये आप उनके एक वर्तमान प्रतिनिधि के कुंठा भरे ट्वीट से भी समझ सकते हैं, जहां वे ट्वीट किए –

“जो कभी हिटलर के साथ मित्र था, वो अब इंडिया गेट को अपनी उपस्थिति से ‘अपवित्र’ करने जा रहा है” –

 

2010 तक आते आते नेताजी की हस्ती कुछ वाद विवाद प्रतियोगिता, दो तीन कमीशन इत्यादि तक ही सिमट चुकी थी। इनकी विरासत को आगे बढ़ाने की बात पर लोगों को जैसे सांप सूंघ जाता था। जब 2005 में मुखर्जी कमीशन ने अपनी जांच में इस बात पर संदेह जताया कि नेताजी की मृत्यु एक प्लेन क्रैश में हुई थी, तो तत्कालीन मनमोहन सिंह की केंद्र सरकार ने उसे ऐसे दरकिनार किया जैसे चाय में से मक्खी।

लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के आते ही सब कुछ बदल गया। जिन सुभाष चंद्र बोस की विरासत के बारे में कोई पानी भी न पूछे, उन्हे उनका उचित सम्मान दिलाने के लिए मोदी सरकार ने एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना प्रारंभ कर दिया। ममता बनर्जी से लगाकर अखिलेश यादव तक कई लोगों ने दावे किए कि वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की विरासत को सहेजेंगे, परंतु वास्तव में नरेंद्र मोदी ने इस कार्य को सिद्ध किया, जब 2016 में उन्होंने एक साथ अनेक अति महत्वपूर्ण और गोपनियों फ़ाइलों को सार्वजनिक किया।

लेकिन वे यहीं पर नहीं रुके। चाहे पूर्व INA सैनिकों को ससम्मान 2019 के गणतंत्र दिवस परेड में आमंत्रित करना हो, अंडमान निकोबार के तीनों महत्वपूर्ण द्वीपों को शहीद, स्वराज और सुभाष द्वीप का नाम देना हो, 23 जनवरी से गणतंत्र दिवस का उत्सव मनवाना हो, या फिर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनवाना हो, आप बस बोलते जाइए और मोदी सरकार ने नेताजी के शौर्य को उनका वास्तविक स्वरूप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह तो कुछ भी नहीं है, अभी हाल ही में भारतीय नौसेना ने एक ऐतिहासिक निर्णय में 1946 के रॉयल इंडियन नेवल क्रांति को अपनी झांकी में प्रदर्शित करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है –

वास्तव में कहें तो पीएम मोदी ने वो कर दिखाया जिसका साहस किसी में नहीं था। आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस को फिर से वही सम्मान मिल रहा है जिसके वे वास्तव में अधिकारी हैं। आज नेताजी फिर से वहीं पर हैं जहां उन्हें होना चाहिए – इतिहास के शिखर पर, और यही नेताजी को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी!

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