कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि को लेकर आम धारणा यह रही है कि इससे किसानों को लाभ होगा किन्तु सवाल यह है कि कौन से किसान? हमारे देश में छोटे किसान, सीमांत किसान, बटाईदार, कुलक और जमींदार मिलाकर कई प्रकार के किसान हैं। पंजाब और हरियाणा के किसान विशेष तौर पर बिहार, पश्चिम बंगाल या उत्तर-पूर्व के किसानों से अलग हैं। कुछ किसान हैं, जो धान लगाते हैं, कुछ मोटे अनाज की खेती करते हैं और कुछ जो कपास या गन्ने की खेती करते हैं। ऐसे में, किस किसान को सबसे अधिक लाभ होगा यह स्पष्ट नहीं है? दरअसल, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) की रिपोर्ट जिसने कृषि परिवारों की आय, व्यय और ऋणग्रस्तता का मानचित्रण किया है वह कुछ अहम तथ्य भी प्रदान करती है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य सीमान्त और छोटे किसानों के भले के लिए नहीं
बता दें कि 0.4 हेक्टेयर से कम के खेतों वाले परिवार सभी कृषि परिवारों का एक तिहाई हैं और उन्हें खेती से प्राप्त होने वाली आय, कुल आय के 1/6 से भी कम होती है अर्थात इन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य से कोई लाभ नहीं होगा। 0.4 और 1 हेक्टेयर के बीच जोत रखने वालों के लिए, खेती से शुद्ध प्राप्तियां उनकी कमाई का लगभग ⅖वां हिस्सा हैं। यह वर्ग ( 0.4 और 1 हेक्टेयर के बीच) सभी कृषक परिवारों का एक तिहाई हिस्सा है। अतः इन्हें भी ज्यादा फायदा नहीं होगा। कुल मिलाकर, 1 हेक्टेयर तक भूमि वाले किसान कुल कृषि परिवारों का 69.4% हैं।
और पढ़ें: धान खरीदी पहली बार MSP नहीं भूमि अभिलेखों से हो रही है, यह क्रांतिकारी कदम है!
वहीं, एक ओर रिपोर्ट में पाया गया है कि उनका मासिक उपभोग व्यय सभी स्रोतों से प्राप्त कमाई से अधिक है, जिसका अर्थ है कि वे लंबे समय से कर्ज में हैं। बहुत से लोग साहूकारों, धनी किसानों और जमींदारों को खेती के लिए ऋण का साधन मानते हैं और उन्हें अक्सर इन फाइनेंसरों को बाजार मूल्य से कम पर अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर किया जाता है। संक्षेप में, लगभग 70% कृषक परिवारों के न्यूनतम समर्थन मूल्य वृद्धि के लाभार्थी होने की संभावना नहीं है।
दूसरी ओर, जिनके पास 4 हेक्टेयर से अधिक भूमि है, वे खेती करने वाली आबादी का मात्र 4.1% है और उन्हें अपनी शुद्ध आय का तीन चौथाई से अधिक हिस्सा खेती से प्राप्त होता है। ये अमीर किसान ग्रामीण भारत के शासक वर्ग से संबंध रखते हैं, जो कोई आयकर नहीं देते हैं। जो कृषि ऋण माफी से अधिकतम लाभ प्राप्त करती है, असल में वही किसान उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य से लाभ प्राप्त करेगा। बता दें कि शांता कुमार समिति की रिपोर्ट ने इस तथ्य को रेखांकित किया है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य का फ़ायदा उठाएंगे उच्च वर्ग के किसान
बताते चलें कि भारत में केवल 5.8% कृषि परिवारों ने किसी भी खरीद एजेंसी को धान या गेहूं बेचा था। यहां तक कि इन परिवारों ने अपनी कुल बिक्री का केवल एक हिस्सा ही बेचा था। रिपोर्ट में कहा गया है, “इस पूरे सबूत का नतीजा यह है कि गेहूं और चावल में खरीद कार्यों का प्रत्यक्ष लाभ देश में कृषि परिवारों के एक छोटे से हिस्से को जाता है। जाहिर है, सरकारी एजेंसियों द्वारा की जाने वाली अधिकांश खरीद बड़े किसानों से होती है और कुछ चुनिंदा राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और हाल ही में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ आदि से होती है।”
वहीं, इस न्यूनतम समर्थन मूल्य से मुद्रास्फीति भी बढ़ेगी और क्या आप जानते हैं कि उच्च मुद्रास्फीति से सबसे ज्यादा नुकसान किसे होता है? शहरी गरीब निश्चित रूप से बुरी तरह प्रभावित होंगे जबकि खेतिहर मजदूर उनसे भी ज्यादा प्रभावित होंगे क्योंकि ये सबसे कमजोर वर्ग है। इसके अलावा, सीमांत किसान भी अपनी आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन नहीं कर सकते हैं और उन्हें बाजार से खरीदना पड़ता है। अतः वो भी इसके भुक्तभोगी बनेंगे।
और पढ़ें: कृषि कानूनों का धन्यवाद: कर्नाटक में किसानों को अपनी फसलों पर मिले MSP से ज्यादा दाम
ऐसे में, अब सवाल ये उठता है कि क्या जनता की कीमत पर ग्रामीण अमीरों को फायदा पहुंचाना वाकई अच्छी राजनीति है? सरकार का यह निर्णय बेशक अर्थव्यवस्था को उच्च ब्याज दरों, अप्रतिस्पर्धी कृषि कीमतों एवं बढ़े हुए राजकोषीय घाटे की ओर ले जाएगा। यही कारण है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य वृद्धि से केवल 2-4 फीसदी कुलीन किसानों को ही फायदा होगा और यह हमेशा की तरह एक व्यवसाय बन जायेगा।