पूर्वोत्तर भारत का प्रथम भगवा राजनेता: मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह

हर समय कायाकल्प के लिए ढिंढोरा पीटना जरुरी नहीं!

एन बीरेन सिंह

मुख्य बिंदु 

हमारे देश में ऐसे कम ही मीडिया संस्थान हैं, जो पूर्वी भारत के नेताओं और भारत के विकास में उनके योगदान के प्रति अपने पाठकों को जागरूक करते हैं। पर, हम आज आपको एक ऐसे नेता की कहानी बताएंगे, जिसने मणिपुर की काया पलट दी। उनका नाम है- नोंगथोम्बम बीरेन सिंह। वो एक भारतीय राजनीतिज्ञ, पूर्व फुटबॉलर और पत्रकार हैं। जिनका जन्म 1 जनवरी 1961 को इम्फाल के लूंगसंंगम मामंग लेईकाई में हुआ था। वे वर्तमान में मणिपुर के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यरत हैं। एन बीरेन सिंह को राष्ट्र के प्रति उनके असाधारण कार्य के लिए 2018 में चैंपियंस ऑफ चेंज से सम्मानित किया गया था। यह पुरस्कार भारत के उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू द्वारा प्रदान किया गया।

1990 के दशक की शुरुआत में एन बीरेन सिंह एक फुटबॉलर थे, वह सीमा सुरक्षा बल की जालंधर टीम के लिए खेलते थे। उन्हें फुटबॉल से इतना लगाव था कि उन्होंने अपने एक बच्चे का नाम ब्राजील के फुटबॉलर ज़िको के नाम पर रखा। जब वे सीमा सुरक्षा बल की नौकरी से त्यागपत्र देकर मणिपुर लौटे तो उन्होंने अपने पिता के स्वामित्व वाली जमीन का एक टुकड़ा बेच अखबार शुरू किया, जिसके संपादक वो स्वयं थे। बंगाली लिपि में प्रकाशित मणिपुरी अखबार ‘नाहरोलगी थौडांग’ को मई 1996 में शुरू किया गया। इसके प्रकाशन का आदर्श वाक्य था: ‘मानव अधिकारों के लिए समर्पित एक समाचार पत्र’

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राजनीति में एन बीरेन सिंह का प्रवेश

एन बीरेन सिंह का दावा है कि वह मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए राजनीति में आए। 1990 के दशक के अंत में जब वह राजनीति में आए तब यह राज्य उग्रवाद, हत्याओं और अपहरण की घटनाओं से ग्रस्त था। उन्होंने कहा कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम के खिलाफ उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। आपको बता दें कि मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला द्वारा इस मुद्दे पर बहुत कम ध्यान दिया गया। एन बीरेन सिंह डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशनरी पीपुल्स पार्टी के संस्थापक सदस्य थे। यह एक अल्पकालिक राजनीतिक गठन था, जिसे 2002 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले शुरू किया गया था। इस पार्टी ने अपने प्रथम चुनाव में 23 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। वहीं, इसी चुनाव में बीरेन सिंह ने पहली बार हींगांग विधानसभा क्षेत्र जीता था।

पर, 2007 के चुनावों तक पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया था और एन बीरेन सिंह ओकराम इबोबी सिंह के करीबी सहयोगी बन गए। 2002 से 2012 तक, उन्होंने कांग्रेस सरकार में कैबिनेट पदों पर कार्य किया। उन्होंने खेल मंत्रालय भी संभाला। इम्फाल में स्थित पत्रकारों का मानना ​​है कि जब बीरेन सिंह को मंत्रिपरिषद से बाहर कर दिया गया तब ओकराम इबोबी सिंह और उनके सहयोगी 2012 के विधानसभा चुनाव से बाहर हो गए। वहीं, पिछले साल दोनों के बीच तनाव तब बढ़ गया जब बीरेन सिंह ने कांग्रेस छोड़ 20 अन्य विधायकों के साथ भाजपा में शामिल होने की धमकी दी। उनकी मांग थी कि कैबिनेट में विधिवत फेरबदल किया जाए। फेरबदल विधिवत हुआ और सिंह को राज्य में कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया। वह वैसे भी ‘कुशासन’ के विरोध में भाजपा में शामिल हो गए।

भाजपा के पहले मुख्यमंत्री बने एन बीरेन सिंह

मार्च 2017 में एन बीरेन सिंह मणिपुर में भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में चुना गए और उन्होंने 15 मार्च 2017 को मणिपुर के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। हैं। मणिपुर में वह भाजपा के पहले मुख्यमंत्री हैं। जनवरी 2018 में, उन्होंने मणिपुर पब्लिक स्कूल के नए शैक्षणिक भवन की आधारशिला रखी। यह परियोजना मणिपुर माइनॉरिटीज और OBC इकोनॉमिक डेवलपमेंट सोसाइटी (MOBEDS) द्वारा शुरू की गई है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के तहत इस परियोजना की लागत 10.80 करोड़ रुपये होने का अनुमान है और इसमें नई कक्षाएं, प्रधानाध्यापक कक्ष, कॉमन रूम, पुस्तकालय, प्रयोगशालाएं, शौचालय सहित लड़कों और लड़कियों के लिए अलग छात्रावास भी शामिल होंगे।

20 अप्रैल, 2018 को सिंह ने फेरज़ावल जिले के परबुंग में पहले राज्य स्तरीय जिंजर फेस्टिवल का शुभारंभ किया। यह त्योहार राज्य के सबसे पिछड़े पहाड़ी जिलों में कृषि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मानाया जाता है। किसानों ने बताया है कि 2018 से वे साल भर अपने जैविक अदरक को बेचने में सक्षम हैं। वर्ष 2020 में COVID-19 महामारी के दौरान, मणिपुर खुद को कोरोनवायरस मुक्त घोषित करने वाला तीसरा राज्य था।वहीं, 17 जून 2020 को मणिपुर में एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन करने वाले 9 विधायकों ने उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया और उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इसके पीछे बड़ा कारण था कि उन्हें कोविड -19 महामारी के दौरान कार्रवाई की कमी के लिए दोषी ठहराया गया था ।

मणिपुर में भगवा ध्वज के तले बहाई विकास की गंगा

भाजपा के भीतर बीरेन सिंह के तेजी से बढ़ने की तुलना असम में पिछली कांग्रेस सरकार के सर्वेसर्वा हिमंत बिस्वा सरमा के साथ की गई है, जो पिछले साल विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले भाजपा में शामिल हो गए थे। दोनों नेता अपने-अपने मुख्यमंत्रियों के करीबी थे। ऐसा लगता है कि बीरेन सिंह और हेमंत बिसवा शर्मा दोनों को वंशवाद के विरोध के कारण कांग्रेस से बाहर कर दिया गया। कहा जाता है कि सरमा और गोगोई के बीच विवाद तब शुरू हुआ जब मुख्यमंत्री गोगोई ने अपने बेटे गौरव गोगोई को राजनीति में उतारा। इसी तरह बीरेन सिंह ने इबोबी सिंह द्वारा अपनी पत्नी और बेटे को विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार के रूप में उतारने की शिकायत की है।

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बता दें कि तमाम राजनीतिक झंझावातों के बावजूद एन बीरेन सिंह ना सिर्फ अपना वजूद बचाने में कामयाब रहें बल्कि खुद को एक कुशल प्रशासक के रूप में भी स्थापित किया। उनकी सरकार मणिपुर स्टेट लीग में भाग लेने वाले 15 फुटबॉल क्लबों को 3-3 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इम्फ़ाल में उन्होंने कैंसर संस्थान भी स्थापित किया। इसके अलावा उन्होंने इम्फ़ाल की आधारभूत संरचना भी मजबूत की। एक कुशल फूटबालर से एक सक्षम पत्रकार और एक सक्षम पत्रकार से प्रभावशाली राजनेता तक का सफर बिरेन सिंह ने सफलतापूर्वक पूर्ण किया है। ऐसे में, उन्होंने ना सिर्फ भाजपा को मणिपुर में उभरने का अवसर दिया बल्कि भगवा ध्वज के तले विकास की गंगा भी बहाई। मणिपुर और भाजपा ही नहीं बल्कि पूरा देश अपने इस सपूत की सफलता पर प्रसन्न है।

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