नंद वंश का इतिहास, राजा और महत्वपूर्ण तथ्य

इतिहास

नंद वंश मगध, बिहार का लगभग 344 ई.पू. से 322 ई.पू. के बीच का शासक वंश था. नंद वंश को पुराणों में महापदम नंद कहा गया है. नंद वंश प्राचीन भारत का एक राजवंश था.इनके पास भयानक एवं उग्र सेना भी थी. नंद वंश की स्थापना महापद्मनंद ने की थी. यह नाई जाति का था. उसे महापद्म एकारट, सर्व क्षत्रान्तक आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है. भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जो कुलीन नहीं था तथा जिसकी सीमाएं गंगा के मैदानों को लांघ गई.

महापद्म नन्द के प्रमुख राज्य उत्तराधिकारी हुए हैं- उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, योविषाणक, दशसिद्धक, कैवर्त, धनानन्द. इसके शासन काल में सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया था.

जब सिकन्दर भारत से गया तो सिकन्दर के जाने के बाद मगध साम्राज्य में अशान्ति और अव्यवस्था फैली गई.वहीं धनानन्द एक लालची और धन संग्रही शासक था. जिसे असीम शक्‍ति और सम्पत्ति के बावजूद वह जनता का विश्‍वास नहीं जीत सका. उसने ही एक महान विद्वान ब्राह्मण चाणक्य को अपमानित किया था.जिसके बाद चाणक्य ने अपनी कूटनीति से धनानन्द को पराजित कर चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध का शासक बनाया.

नंद वंश के शासन समय के दैरान मगध राजनैतिक दृष्टि से अत्यन्त समृद्धशाली साम्राज्य बन गया था. वर्ष, उपवर्ष, वर, रुचि, कात्यायन जैसे विद्वान नन्द शासन में हुए. वहीं वह व्याकरण के आचार्य पाणिनी महापद्मनन्द के अच्छे मित्र भी थे. शाकटाय तथा स्थूल भद्र धनानन्द के जैन मतावलम्बी अमात्य थे.

नंद वंश के राजा

पौराणिक परंपराएं बताती हैं कि नंद वंश में कुल 9 राजा हुए जो – उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, गोविषाणक, दशसिद्धक, कैवर्त, धनानन्द थे. पर इन राजाओं के नामों पर स्रोत काफी भिन्न हैं.

1.पंडुक- नंदराज महापद्मनंद के जेष्ट पुत्र पंडुक जिन्हें पुराणों में सहल्य अथवा सहलिन कहा गया है. उनकी मृत्यु के बाद उनके वंशज मगध साम्राज्य के रुप में शासक करते रहे.

2.पंडू गति- आनंद राज के द्वितीय पुत्र को महाबोधि वंश में पंडुगति तथा पुराणों में संकल्प कहा गया ह .कथासरित्सागर के अनुसार अयोध्या में नंद राज्य का सैन्य शिविर था जहां संकल्प एक कुशल प्रशासक एवं सेनानायक के रूप में रहकर उसकी व्यवस्था देखते थे.

3.भूत पाल – चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद के तृतीय पुत्र भूत पाल विदिशा के कुमार अथवा प्रकाशक थे.नंदराज के शासनकाल में उनकी पश्चिम दक्षिण के राज्यों के शासन प्रबंध को देखते थे. 4.राष्ट्रपाल- महाबोधि वंश के अनुसार नंदराज के चौथे पुत्र राष्ट्रपाल थे. राष्ट्रपाल के कुशल प्रशासक एवं प्रतापी होने से इस राज्य का नाम राष्ट्रपाल के नाम पर महाराष्ट्र कहा जाने लगा यह गोदावरी नदी के उत्तर तट पर पैठन अथवा प्रतिष्ठान नामक नगर को अपनी राजधानी बनाई थी.

5.गोविशाणक- महाबोधि वंश के अनुसार नंदराज महापद्मनंद के पांचवे पुत्र गोविशाणक थे. नंदराज ने उत्तरापथ में विजय अर्जित किया था. महापद्मनंद द्वारा गोविशाणक को प्रशासक बनाते समय एक नए नगर को बसाया गया था .वहां उसके लिए किला भी बनवाया गया. इसका नामकरण गोविशाणक नगर रखा गया.

6. दस सिद्धक- चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद के छठवें पुत्र दस सिद्धक थे. नंद राज्य की एक राजधानी मध्य क्षेत्र के लिए वाकाटक मे थी जहां दस सिद्धक ने अपनी राजधानी बनाया. बाद में इन्होने सुंदर नगर नंदिवर्धन नगर को भी अपनी राजधानी के रूप में प्रयुक्त किया जो आज नागपुर के नाम से जाना जाता है.

7. कैवर्त- नंदराज महापद्मनंद के सातवें पुत्र थे जिनका वर्णन महाबोधि वंश में किया गया है .यह एक महान सेनानायक एवं कुशल प्रशासक थे. ये बाकी पुत्रों की तरह कैवर्त किसी राजधानी के प्रशासक नहीं थे. बल्कि अपने पिता के केंद्रीय प्रशासन के मुख्य संचालक थे . कैवर्त की मृत्यु सम्राट महापद्मनंद के साथ ही जहरीले भोजन करने से हुई थी. जिससे उनका कोई राजवंश आगे नहीं चल सका.

8. सम्राट घनानंद-सम्राट महापद्मनंद की पत्नी महानंदिनी से उत्पन्न अंतिम पुत्र था. घनानंद कई शक्तिशाली राज्यों को मगध साम्राज्य के अधीन कर लिया. नंदराज महापद्मनंद की मृत्यु के बाद 326 ईसवी पूर्व में घनानंद मगध का सम्राट बना. स्थानीय और जैन परम्परावादियों से पता चलता है कि इस वंश के संस्थापक महापद्म, जिन्हें महापद्मपति भी कहा जाता है.

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नंद वंश के महत्वपूर्ण तथ्य

कहा जाता है कि नंद शासक मौर्य साम्राज्य के पूर्ववर्ती राजा थे. इस वंश के संस्थापक महापद्म, जिन्हें महापद्मपति या उग्रसेन भी कहा जाता है. पुराणों में उन्हें सभी क्षत्रियों का संहारक बताया है. जिन्होने उत्तरी, पूर्वी और मध्य भारत स्थित इक्ष्वाकु, पांचाल, काशी, हैहय, कलिंग, अश्मक, कौरव, मैथिल, शूरसेन और वितिहोत्र जैसे शासकों को हराया.

वहीं नन्द वंश के द्वारा गोदावरी घाटी- आंध्र प्रदेश, कलिंग- उड़ीसा तथा कर्नाटक के कुछ भाग पर कब्ज़ा करने की ओर भी संकेत मिलते हैं. महापद्म के बाद पुराणों में नंद वंश का उल्लेख मिलना मुश्किल है.इसमें सिर्फ सुकल्प का ज़िक्र है. जबकि बौद्ध महाबोधिवंश में आठ नामों का उल्लेख है.

चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ई. पूर्व में नंद वंश को समाप्त करके मौर्य वंश की नींव डाली. इस वंश में कुल नौ शासक हुए – महापद्मनंद और बारी-बारी से राज्य करने वाले उसके आठ पुत्र थे. सिकंदर के काल में नंद की सेना में लगभग 20,000 घुड़सवार, 2,00,000 पैदल सैनिक, 2000 रथ और 3000 हाथी थे. आशा करते है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा ऐसे ही लेख और न्यूज पढ़ने के लिए कृपया हमारा ट्विटर फॉलो करें.

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