मुख्य बिंदु
- बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पैतृक जिले नालंदा में अवैध रूप से बनी देशी शराब ने एक बार फिर ली 13 लोगों की जान
- अवैध शराब के सेवन से होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि के बावजूद बिहार सरकार शराबबंदी कानून को निरस्त करने के लिए है अनिच्छुक
- नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-20 का आंकड़ा बताता है कि बिहार में आज भी 15.5 फ़ीसदी लोग शराब पीते हैं, जो कई बड़े राज्यों से अधिक है
- नीतीश कुमार की विफलता ही है कि शराब पर प्रतिबंध लगाने के कारण कालाबाजारी और नकली शराब का कारोबार चरम पर पहुंच गया
1 अप्रैल 2016 से बिहार में शराबबंदी की घोषणा की गई थी किन्तु हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पैतृक जिले नालंदा में अवैध रूप से बनी देशी शराब ने 13 लोगों की जान ले ली है जबकि कई लोग गंभीर रूप से बीमार हैं। नवीनतम मौतों के कारण विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल नीतीश कुमार पर हमलावर हो गई है। इस मामले के सामने आने के बाद बिहार में शराबबंदी नीति एक बार फिर से विफल हो गई है। वहीं, नकली शराब के सेवन से हर साल कई मौतें होती हैं। अवैध शराब के सेवन से होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि के बावजूद बिहार सरकार शराबबंदी कानून को निरस्त करने के लिए अनिच्छुक है। लिहाजा, कानून को निरस्त न करने का निर्णय नीतीश कुमार के अहंकार को प्रदर्शित करता है।
बिहार के शराबबंदी कानून पर बोले CJI
बिहार के शराबबंदी कानून को लेकर न केवल राजनीतिक दलों यहां तक कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI ) एनवी रमन्ना ने भी आलोचना की। CJI ने आंध्र प्रदेश में आयोजित एक कार्यक्रम में शराब प्रतिबंध कानूनों को तैयार करने में दूरदर्शिता की कमी को दोषी ठहराया था। दरअसल, CJI की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पीठ ने बिहार द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य के कड़े निषेध कानूनों के तहत आरोपितों को नियमित और अग्रिम जमानत देने को चुनौती दी गई थी।
और पढ़ें: बिहार में शराब बंदी ने माफिया और इसकी कालाबाजारी को बढ़ावा दिया है, और ये चुनावी मुद्दा होना चाहिए
CJI ने कहा “आप जानते हैं कि इस कानून (बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016) ने पटना उच्च न्यायालय के कामकाज में कितना प्रभाव डाला है और वहां एक मामले को सूचीबद्ध करने में एक साल लग रहा है और सभी अदालतें शराब की जमानत से ठप हैं।” न्यायमूर्ति रमन्ना ने अग्रिम और नियमित मामलों के अनुदान के खिलाफ राज्य सरकार की 40 अपीलों को खारिज करते हुए कहा, “मुझे बताया गया है कि 14 से 15 उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हर दिन इन जमानत मामलों की सुनवाई कर रहे हैं और कोई अन्य मामला नहीं उठाया जा रहा है।”
बिहार पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, अक्टूबर 2021 तक बिहार शराबबंदी कानून के तहत 348,170 मामले दर्ज किए गए और 401,855 गिरफ्तारियां की गईं। वहीं, ऐसे मामलों में लगभग 20,000 जमानत याचिकाएं उच्च न्यायालय या जिला अदालतों में निपटान के लिए लंबित हैं। जनवरी 2020 और नवंबर 2021 के बीच, पटना उच्च न्यायालय ने शराबबंदी मामलों में 19,842 जमानत याचिकाओं (अग्रिम और नियमित) का निपटारा किया। नवंबर 2021 तक, ऐसे मामलों में कुल 6,880 जमानत याचिकाएं उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित थीं, जिनमें से कुल जमानत का आंकड़ा 37,381 था।
जहरीली शराब के सेवन से जा रही है लोगों की जान
केवल अदालतें ही नहीं, बिहार में 59 जेलें भी शराबबंदी कानूनों के तहत अभियुक्तों (विचाराधीन कैदियों और दोषियों) से भरी पड़ी हैं। 59 जेलों में करीब 47,000 कैदी रह सकते हैं लेकिन करीब 70,000 कैदी फिलहाल इन जेलों में बंद हैं। इनमें से लगभग 25,000 पर शराबबंदी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था। पिछले साल नवंबर की शुरुआत में गोपालगंज और बेतिया में जहरीली शराब की त्रासदियों (जिसमें 40 से अधिक लोगों की जान गई थी) के बाद बिहार पुलिस ने अपना शराब विरोधी अभियान तेज कर दिया था, जिसके बाद अकेले नवंबर (2021) में लगभग 10,000 कथित उल्लंघनकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था।
इससे राज्य भर की जेलों में और भीड़ हो गई है। उदाहरण के लिए, पटना की बेउर सेंट्रल जेल में वर्तमान में 5,600 कैदी हैं, जबकि इसकी अधिकतम क्षमता 2,400 है। बिहार में मद्यनिषेध कानूनों के तहत दोषसिद्धि दर दयनीय रूप से कम है, 1 प्रतिशत से भी कम। बिहार सरकार अब शराबबंदी से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए 75 विशेष अदालतें स्थापित करने की योजना बना रही है। लेकिन शराबबंदी के आलोचकों का कहना है कि ये अदालतें बिहार के वित्तीय बोझ को अधिक कर देंगी। शराबबंदी ने बिहार को आर्थिक रूप से कमज़ोर किया है।
गौरतलब है कि बिहार में शराबबंदी 2016 से लागू है, लेकिन इन सर्वे के आंकड़ों में तब से लेकर अब तक कोई खास बदलाव नहीं आया है। राज्य में शराबबंदी होने के बावजूद शराब की खपत प्रतिवर्ष बढ़ रही है। बिहार में शराबबंदी को राजनीतिक रूप से खूब प्रचारित और प्रसारित किया गया किन्तु आज स्थिति यह है कि जिस बिहार में शराबबंदी का कानून लागू है, वहां महाराष्ट्र जैसे राज्य से ज्यादा शराब का सेवन किया जा रहा है।
नीतीश कुमार की विफलता
पिछले वर्ष के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-20 ने बिहार में शराबबंदी की व्यवस्थाओं की पोल खोली थी। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-20 का आंकड़ा बताता है कि बिहार में आज भी 15.5 फ़ीसदी लोग शराब पीते हैं, जो कई बड़े राज्यों से अधिक है। यह सर्वे 15 साल से अधिक उम्र के लोगों पर किया जाता है। ऐसे में संभावना यह भी है कि 15 से लेकर 17 साल का एक बड़ा नाबालिक वर्ग भी बिहार में धड़ल्ले से शराब का सेवन कर रहा है। शराब न मिल पाने की स्थिति में ये लोग अब अन्य तरह के नशीले पदार्थों का सेवन करने लगे हैं। शराबबंदी के बाद राज्य में ड्रग्स की खपत भी ज्यादा हो गई है।
और पढ़ें: Carlsberg से विश्वासघात पर नीतीश बाबू, बिहार की जनता माफ़ नहीं करेगी!
ऐसे में, स्पष्ट है कि बिहार में शराब और नशीले पदार्थों की काला बाजारी बड़े स्तर पर हो रही है। यह नीतीश कुमार की विफलता ही है कि शराब तो बंद नहीं हुआ, लेकिन उस पर प्रतिबंध लगाने के कारण कालाबाजारी और नकली शराब का कारोबार अवश्य चरम पर पहुंच गया। इससे समाज को नुकसान पहुंच रहा है, साथ ही लोगों की जान भी जा रही है, जिसका हमें प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिल रहा है। बिहार में शराबबंदी को लेकर नीतीश कुमार ने हमेशा अपनी पीठ ठोकी है। इसके चलते एक बड़ा महिला वर्ग का समर्थन उन्हें मिलने लगा है परंतु अब यही प्रतिबन्ध कई लोगों के मृत्यु का कारण बन रहा है।