बिहार में नीतीश कुमार ने याद दिलाई माओ की सांस्कृतिक क्रांति ताकि उनकी शराबबंदी रहे जारी

बिहार में मनमानी है, नीतीश कुमार की यही कहानी है!

मुख्य बिंदु

बिहार सरकार ने बीते शुक्रवार को एक आधिकारिक बयान जारी कर प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों, प्राचार्यों और अन्य कर्मचारियों से स्कूल परिसर में शराब पीने या आपूर्ति करने वाले लोगों के बारे में सर्कुलर में दिए गए नंबरों पर गुप्त रूप से सूचित करने का आग्रह किया। शराब के गुप्त सेवन की रिपोर्टों पर कड़ा संज्ञान लेते हुए बिहार सरकार ने राज्य में एक नशामुक्ति अभियान शुरू किया, जिसमें स्कूली शिक्षकों और शिक्षा विभाग के अन्य अधिकारियों को शराब के सेवन से होने वाली बीमारियों और इसकी लत के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए शामिल किया गया है। राज्य में शराबबंदी को जारी रखते हुए नीतीश कुमार ने माओ की उस सांस्कृतिक क्रांति की याद दिलाई दी जब माओ ने अपने तानाशाही और अपने फैसलों को हमेशा उचित ठहराया था।

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बिहार में शिक्षक शराब को लेकर फैलाएंगे जागरूकता 

आपको बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश सरकार की पहल के जमीनी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए बिहार के अपर मुख्य सचिव संजय कुमार ने राज्य के सभी क्षेत्रीय शिक्षा उप निदेशकों, सभी जिला शिक्षा अधिकारियों, सभी जिला कार्यक्रम अधिकारियों को इस पहल में भाग लेने और लोगों को अपने में जागरूक करने के लिए लिखा है। पत्र में संजय कुमार ने शिक्षकों से नशामुक्ति कार्यक्रम में तेजी लाने को कहा क्योंकि शराब सेवन का उपभोक्ताओं और उनके परिवारों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने उनसे अवैध रूप से शराब का सेवन या वितरण करने वाले लोगों की पहचान करने और उन्हें शिक्षित करने के लिए कहा। उन्हें आगे कहा गया कि वह व्यक्ति को ड्रग निषेध विभाग को रिपोर्ट करें।

अतिरिक्त मुख्य सचिव ने शिक्षकों से यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा कि कक्षाएं पूरी होने के बाद स्कूल परिसर का उपयोग शराब बिक्री / उपभोग के लिए नहीं किया जाएगा। इस पहल में स्कूली छात्रों को शिक्षित करना और उन्हें कम उम्र में शराब के सेवन के दुष्प्रभावों के बारे में परामर्श देना भी शामिल है। गौरतलब है कि शराब की लत से निपटने के लिए बिहार सरकार ने विभिन्न नशामुक्ति पहल शुरू की हैं। इस तरह की पहल से लोगों में जागरूकता फैलाने में मदद मिलेगी। NDA  के नेतृत्व वाली बिहार सरकार ने 2016 में राज्य में शराब के सेवन पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि, प्रतिबंध के बाद राज्य में कई शराब त्रासदी दर्ज की गई हैं।

स्वनिर्मित शराब के सेवन से कई लोगों की हुई मौत 

मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, बेतिया, समस्तीपुर, वैशाली, नवादा के साथ-साथ सीएम नीतीश कुमार के जिला नालंदा समेत कई इलाकों में स्थानीय, स्वनिर्मित शराब के सेवन से कई लोगों की मौत हो चुकी है। शराब प्रतिबंध के अनुचित कार्यान्वयन के लिए विपक्षी नेताओं की भारी आलोचना का सामना करने के बाद, राज्य सरकार ने राज्य में शराब की खपत के खिलाफ सख्त मानदंडों का लक्ष्य रखा है।आपको बताते चलें कि बिहार में शराब पर प्रतिबंध साल 2016 से लगाया गया है, लेकिन स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है।

बिहार में युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़

बिहार सरकार शराबबंदी के नाम पर अपनी पीठ थपथपाते दिखती है, लेकिन राज्य में ऐसे कई शराब माफिया हैं जो प्रशासन के नाक के नीचे शराब का काला बाजार चला रहे हैं। राज्य में शराबबंदी होने के बावजूद शराब की खपत प्रतिवर्ष बढ़ रही है। बिहार में शराबबंदी को राजनीतिक रूप से खूब प्रचारित और प्रसारित किया गया, लेकिन आज स्थिति यह है कि जिस बिहार में शराबबंदी का कानून लागू है, वहां महाराष्ट्र जैसे राज्य से ज्यादा शराब पी जा रही है। दूसरी ओर बिहार में शराब और नशीले पदार्थों की काला बाजारी बड़े स्तर पर हो रही है। यह नीतीश कुमार की विफलता ही है कि शराब तो बंद नहीं हुआ, लेकिन उस पर प्रतिबंध लगाने के कारण कालाबाजारी और नकली शराब का कारोबार अवश्य चरम पर पहुंच गया है।

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ऐसे में, स्पष्ट है कि बिहार में शराब और नशीले पदार्थों की काला बाजारी बड़े स्तर पर हो रही है। इससे समाज को नुकसान को हो ही रहा है, साथ ही लोगों की जान भी जा रही है जिसका हमें प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिला है। बिहार में शराबबंदी को लेकर नीतीश कुमार ने हमेशा अपनी पीठ ठोकी है। इसके चलते एक बड़ा महिला वर्ग उन्हें वोट भी देने लगा, परंतु अब यही कई लोगों के परिवारजनों की मृत्यु का कारण बन रहा है। अब शिक्षकों को शराब और शराबियों को सुचना देने में लगाकर नीतीश कुमार बिहार के युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। राज्य के शिक्षक अब छात्रों को पढ़ाना छोड़ राज्य में शराबबंदी की मुहीम में शामिल होंगे। नीतीश कुमार का फैसला यह दर्शाता है कि उनके पास शराबबंदी की उचित नीति के साथ शिक्षा नीति भी नहीं है।

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