कन्नड़ भाषा ‘संस्कृत’ से निकल कर आई है, ऐसे में किसी भी कन्नडिगा को ‘संस्कृत को न कहने’ का हक नहीं!

भारतीय ज्ञान को प्राप्त करने की चाबी है संस्कृत!

कन्नड़ संस्कृत

Source- TFIPOST

कर्नाटक सरकार ने हाल ही में कर्नाटक में एक संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए 100 एकड़ भूमि आवंटित की है। संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा के साथ ही सरकार का विरोध शुरू हो गया है। स्थानीय कांग्रेस नेताओं के साथी इस्लामिस्ट कार्यकर्ताओं ने कन्नड़-हिंदी अलगाव की राजनीति शुरू कर दी है। हालांकि, यह अलग बात है कि अपने शासनकाल के दौरान कांग्रेस कलबुर्गी में उर्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की तैयारी में थी। उनकी सरकार चली गई, अन्यथा अब तक उर्दू विश्वविद्यालय बनकर तैयार हो चुका होता। सोशल मीडिया पर यूजर्स ने कांग्रेस नेताओं द्वारा चलाए जा रहे प्रोपेगेंडा की हवा निकाल दी है और तथ्यों के साथ उन्हें जमकर लताड़ा भी है।

ट्विटर यूजर अंशुल सक्सेना ने अपने ट्वीट थ्रेड में कहा, कांग्रेस नेता नटराज गौड़ा (Nataraja Gowda) ने कर्नाटक में संस्कृत विश्वविद्यालय के निर्माण का विरोध किया और ‘SayNoTo संस्कृत’ ट्रेंड कराया। उन्होंने आगे लिखा कि कन्नड़ भाषा और गौरव के नाम पर कांग्रेस वोट मांगती है और कन्नडिगों को बेवकूफ बनाती है। उनके क्षेत्रीय विभाजन प्रचार के झांसे में न आएं।

अपने ट्वीट थ्रेड में अंशुल ने तथ्यों के साथ कांग्रेस की पोल खोलते हुए कहा, कर्नाटक में कांग्रेस सरकार उर्दू विश्वविद्यालय स्थापित करना चाहती थी। उर्दू के खिलाफ कुछ भी नहीं, लेकिन कुछ कांग्रेसी नेता कर्नाटक में केवल कन्नड़ भाषा चाहते हैं, कोई अन्य भाषा नहीं। फिर उसके बारे में क्या? संस्कृत को नहीं, लेकिन उर्दू को हां, ऐसा क्यों? कांग्रेस के कन्नड़ गौरव के बारे में क्या?

गौरतलब है कि देश विरोधी बयानों और देश तोड़ने में इस्लामिस्ट शक्तियों से आगे कोई नहीं है। भारत विखंडन के एकसूत्रीय कार्यक्रम को लेकर चलने वाले कट्टरपंथी मुसलमानों के नाम स्वयं अरबी और फ़ारसी भाषा के होते हैं। कर्नाटक के मदरसों में केवल अरबी पढ़ाई जाती है, कुरान के कन्नड़ संस्करण में महजबी जहर नहीं भरा जाता, लेकिन संस्कृति का विरोध करने में ये सबसे आगे हैं!

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एक दूसरे से जुड़ी हुई है कन्नड़ और संस्कृत भाषा

हालांकि, इस्लामिस्टों और कांग्रेसी नेताओं के इन विरोधी स्वरों का कर्नाटक सरकार के निर्णय पर कोई असर नहीं पढ़ने वाला है। किंतु एक महत्वपूर्ण बात रेखांकित करना आवश्यक है कि कन्नड़ और संस्कृत भाषा एक दूसरे से जुड़ी हुई है। जैसे- देव् हिंदी है, देवः संस्कृत, देव (Deva) कन्नड़ और देवन् तमिल है। ऐसे ही अधिकांश शब्द दोनों भाषाओं में समान हैं। कन्नड़ ही नहीं, तमिल, तेलुगु, मलयालम, संस्कृत के कई स्तरों पर समान हैं। यह लम्बा विमर्श है, जिसे एक लेख में समेटा नहीं जा सकता। कुछ मूल प्रश्न उठाए जा सकते हैं, जो इस विमर्श में आपको सही परिणाम की ओर ले जाएंगे।

भाषा की भिन्नता से साहित्य प्रभावित हुआ अथवा नहीं? क्या कन्नड़, तमिल, तेलुगु और संस्कृत का दर्शनशास्त्र आपस में उतना ही भिन्न है, जितना कि अंग्रेजी और संस्कृत का है? क्या उत्तर और दक्षिण के लोग अलग-अलग देवताओं को पूजते हैं अथवा उनका धार्मिक इतिहास अलग है? जवाब है कि ऐसा कुछ भी नहीं है।

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भगवान श्री राम का जो इतिहास उत्तर भारत में संस्कृत ग्रंथों में है, वही कन्नड़, तमिल, तेलुगू आदि भाषाओं में भी मिलता है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक भगवान विष्णु के 10 अवतार ही बताए जाते हैं, शिव कैलाशी ही हैं, लक्ष्मी भगवान विष्णु की संगिनी ही हैं। यदि संस्कृत अलग है और कथित द्रविड़ भाषाएं अलग, यदि भाषा दो भाषा-परिवारों से निकली है, जैसा वामपंथी व अन्य अलगाववादी बताते हैं, तो इन भाषाओं के दर्शन, इतिहास, कहानियां सभी में इतनी समानता क्यों है?

यदि संस्कृत विजेताओं ने बलपूर्वक अपनी संस्कृति द्रविड़ भाषा बोलने वाले लोगों पर थोपी तो वह कौन से राजा थे, जिन्होंने ऐसा किया? उत्तर भारत के किसी राजा या किसी चक्रवर्ती सम्राटों ने भारत के दक्षिणी हिस्सों को इतने लंबे समय तक अपने आधिपत्य में रखा ही नहीं कि वो उन पर बलपूर्वक सांस्कृतिक आधिपत्य स्थापित कर सके। यदि ऐसा कोई आधिपत्य थोपा गया, तो उसके साहित्यिक प्रमाण कहां हैं? ध्यान देने वाली बात है कि मत्तूर कर्नाटक का एक ऐसा गांव है, जहां का हर निवासी संस्कृत बोलता है। यह कर्नाटक में संस्कृत की संवृद्ध परंपरा का एक उदाहरण है।

हैदराबाद में स्थापित है उर्दू विश्वविद्यालय

आपको बताते चलें कि हैदराबाद में उर्दू विश्वविद्यालय स्थापित है, वहीं पर अंग्रेजी विश्वविद्यालय भी स्थापित है। हाल ही में कर्नाटक सरकार ने मल्लेश्वरम के प्री यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय स्तर की शिक्षा प्रदान कराने के उद्देश्य से विदेशी भाषाओं को भी पढ़ाने की घोषणा की, जिसका सभी ने स्वागत किया। ऐसे में राज्य सरकार द्वारा संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना से किसी को परेशानी होनी ही नहीं चाहिए थी।

किन्तु संस्कृत के नाम पर ही कुछ लोग ऐसे बौखला जाते हैं जैसे सरकार संस्कृत न बोलने पर चाबुक से पीटेगी! ये वही लोग हैं, जिनके उत्तर बनाम दक्षिण की राजनीति में स्वार्थ छिपे हैं, जिन्हें उत्तर भारत की जनता ने खदेड़ दिया है और अब भारत के दक्षिणी क्षेत्र में उन्हें अपनी बची हुई राजनीतिक जमीन की शक्ति नजर आ रही है। भारत का एक सत्य यही है कि भारतीय एकता का एकमात्र आधार सनातन संस्कृति है, जिसने विभिन्न भाषाओं और क्षेत्रीय संस्कृतियों के माध्यम से स्वयं को व्यक्त किया है, किन्तु उसका मूल तत्व एक ही है।

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