पश्चिम बंगाल में भाजपा की उड़ रही हैं धज्जियां, CAA के नियम बनाने को लेकर फिर बढ़ी समय सीमा

अब भी समय है मोदी जी, बचा लीजिए बंगाल को!

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जब नागरिकता संशोधन विधेयक (CAA) को संसद के दोनों सदनों से पारित कराया गया, तब इसके विरोध में हिंसक प्रदर्शनों ने समस्त देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। कई राज्यों में दंगे हुए साथ ही शाहीनबाग आंदोलन और कट्टरपंथियों के देश विरोधी बयानों ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। पूर्वोत्तर समेत देश के कई राज्यों में कर्फ्यू जैसी स्थिति भी बनी। हालांकि, कोविड के बाद इस अधिनियम को को अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है, जिसे लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है।

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के नियमों को अधिसूचित नहीं किए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के शरणार्थी प्रकोष्ठ ने सोमवार को सभी राजनीतिक दलों से अधिनियम के नियम बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया। प्रकोष्ठ की ओर से कहा गया कि “नियम नहीं बनाए जाने के कारण, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पिछले दो वर्षों से लागू नहीं किया गया है। इस अनुचित देरी के कारण शरणार्थियों को कई कानूनी मुद्दे, पुलिस द्वारा उत्पीड़न, काम, शिक्षा और विदेश यात्रा में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।”

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तीसरी विस्तारित समय सीमा

गृह मंत्रालय (MHA) ने CAA 2019 के नियमों को 9 जनवरी तक भी अधिसूचित नहीं किया, जो अधिनियम पारित होने के बाद नियम बनाने हेतु तीसरी विस्तारित समय सीमा है। प्रकोष्ठ की ओर से जारी बयान में कहा गया कि यह अधिनियम 11 दिसंबर, 2019 को संसद द्वारा पारित किया गया था और तब से केंद्र ने कई मौकों पर नियमों के गठन की तारीखों को बढ़ाया है। पहली बार जून 2020 में इसके लिए और समय बढ़ाने की बात कही गई थी। अब संसदीय समितियों से इसे लेकर फिर से और समय मांगा गया है।

प्रकोष्ठ की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि ये न सिर्फ शरणार्थियों, बल्कि पूरे पश्चिम बंगाल के लिए महत्वपूर्ण है। प्रकोष्ठ के संयोजक मोहित रॉय ने भाजपा आलाकमान पर इसका दोष मढ़ा। उन्होंने कहा कि नियमों को तय करने में कुछ दिन से ज्यादा का समय नहीं लगता, इसीलिए वो पार्टी का सदस्य होने के बावजूद केंद्र सरकार पर आरोप लगा रहे। उन्होंने कहा कि उनके लिए शरणार्थियों का हित महत्वपूर्ण है और इससे 1972 के बाद पश्चिम बंगाल में आए 1 करोड़ शरणार्थियों पर असर पड़ेगा।

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मतुआ नेतृत्व के साथ मतभेद

गौरतलब है कि मौजूदा समय में भाजपा और मतुआ समुदाय के बीच भी मतभेद चल रहा है। मतुआ समुदाय के अधिकतर लोग बांग्लादेश से आए हैं और वे राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में रह रहे हैं, जो सीएए को लागू करने की मांग कर रहे हैं। मतुआ नेताओं द्वारा उठाई गई मांगों में राजनीतिक पार्टी की समितियों में प्रतिनिधित्व और CAA को लागू करना शामिल है। भाजपा ने पिछले साल CAA को लागू करने के वादे पर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ा था। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सहित वरिष्ठ नेताओं ने COVID-19 की स्थिति में सुधार होने पर इसे लागू करने का वादा किया था। परन्तु, अब इसे बार-बार ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है, जिसे लेकर सवाल उठ रहे हैं।

बताते चलें कि संसदीय कार्य संबंधित नियमावली कहती है कि राष्ट्रपति की विधेयक को सहमति मिलने के 6 महीने के भीतर नियम तय कर लिए जाने चाहिए। ऐसा न होने की स्थिति में लोकसभा और राज्यसभा की समितियों से समय में विस्तार की मांग की जाती है। अब फिर से सेवा विस्तार की मांग की गई है। इसकी अधिसूचना के बाद ही पात्र लाभार्थियों को नागरिकता मिल पाएगी। इस कानून से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए प्रताड़ित हिन्दुओं, सिखों और ईसाईयों को भारतीय नागरिकता मिलेगी।

केंद्र सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि कठोर और राष्ट्रहित में फैसले लेना ही उनकी पहचान है। संसद से पारित कानून के लागू न होने से देश में गलत उदाहरण जा रहा है। इससे भीडतंत्र को बढ़ावा मिलेगा तथा पार्टी का कैडर, विचारधारा, वोटर और ताकत चारों समाप्त हो जाऐंगे। सरकार को इस अधिनियम को कार्यान्वयन करने वाले कानूनों को तुरंत लागू करने चाहिए।

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