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भाजपा अगर नीतीश को हटाने के लिए गंभीर है, तो उसे इन 4 नेताओं को करना चाहिए तैयार

इन भाजपा नेताओं में है CM बनने के सारे गुण!

Aniket Raj द्वारा Aniket Raj
20 January 2022
in राजनीति
भाजपा जदयू

Source- Google

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लोकतांत्रिक परिवेश में किसी भी दल को अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए तीन चीजों की आवश्यकता होती है- नेतृत्व, विचार और जनाधार। विचार से जनाधार सृजित होता है और इसी जनाधार से नायक निर्मित होता है, जो न सिर्फ दल का नेतृत्व करता है अपितु इसका अस्तित्व भी संरक्षित रखता है। भाजपा के पास हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और समावेशी विकास जैसे प्रखर वैचारिक आधार हैं। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में, इन्हीं वैचारिक सिद्धांतों के पीछे बिहार की पूरी जनता चट्टान की तरह खड़ी हो गई। उनका समर्थन मत में परिवर्तित हुआ और NDA गठबंधन लगभग 35% मत और 117 विधानसभा सदस्यों के साथ सरकार बनाने में सफल रहा।

परंतु, जनमत का निष्कर्ष केवल यही तक सीमित नहीं था। इसमें नीतीश की अस्वीकार्यता और भाजपा के स्वीकार्यता का उद्घोष भी था। इस चुनाव में 2015 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले जदयू की 28 सीटें घट गई, जबकि भाजपा ने अपना दुर्ग बचाते हुए 21 नए विधानसभा क्षेत्रों में भगवा लहरा दिया। बिहार में 74 विधानसभा सदस्यों के साथ भाजपा गठबंधन में ‘बड़े भाई’ की भूमिका में, जबकि 43 सीटों पर सिमटी जदयू अब ‘छोटे भाई’ की भूमिका में थी। सैद्धांतिक और राजनैतिक दोनों दृष्टि से मुख्यमंत्री का पद भाजपा को मिलना चाहिए था।

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VIP पार्टी ने बिहार में भाजपा को फिर से जीवंत करने का एक और मौका दिया है

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किंतु ऐसा नहीं हो सका, इसके दो कारण थे। प्रथम, यह कि राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के सिद्धांतों से सिंचित यह दल बिहार की मुस्लिम तुष्टिकरण आधारित राजनीति में अस्पृश्य है, जबकि नीतीश कुमार ठहरे थाली के बैंगन! वो सत्ता हेतु किसी भी सिद्धांत से समझौता कर सकते हैं। अतः अपनी राजनीतिक विवशता और नेतृत्व विहीनता के कारण भाजपा को नीतीश के नेतृत्व में सरकार बनानी पड़ी, ताकि बिहार में महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य की पुनरावृति न हो।

और पढ़ें: गया में ‘पिंड-दान’ पर नीतीश कुमार की बिहार सरकार ने लगाया ‘जजिया’

बिहार में महाराष्ट्र की राजनीतिक पुनरावृत्ति होने से तो रोक दिया गया, लेकिन संख्याबल के विपरीत नीतीश के नेतृत्व में भाजपा को बिहार में तब तक सरकार बनानी पड़ेगी, जब तक दिल्ली के शिल्पकार बिहार भाजपा में नेतृत्व को निर्मित नहीं करते। ऐसा नहीं है कि बिहार भाजपा में नेताओं का कोई अकाल है। बस आवश्यकता है तो उन पर विश्वास जताने की, उन्हें आगे बढ़ाने की, उनकी पीठ थपथपाने की। मौजूदा समय में बिहार की सियासत में उठा पटक तेज है। जदयू और भाजपा कई मुद्दों पर आमने सामने हैं।

हाल ही में शराबबंदी समेत कई मुद्दे पर बिहार भाजपा के अध्यक्ष संजय जयसवाल ने नीतीश कुमार को निशाने पर लिया था। उन्होंने नीतीश पर टिप्पणी करते हुए यह स्पष्ट कर दिया था कि गठबंधन में अगर कोई समस्या होती है, तो गठबंधन के सभी घटक दलों के नेताओं को मिलकर उसका समाधान निकालना चाहिए वरना ऐसा न हो कि हालात बिगड़ जाएं और मुख्यमंत्री की कुर्सी चली जाए। भाजपा नेताओं की हालिया टिप्पणी ने यह तो स्पष्ट कर दिया है कि अब बिहार की सियासत में नीतीश कुमार के दिन लदने वाले हैं। ऐसे में भाजपा किसके चेहरे को लेकर आगे बढ़ेगी, इस पर संशय बना हुआ है। इस लेख के माध्यम से हम बिहार के उन चार भाजपा नेताओं की समीक्षा करेंगे, जो मुख्यमंत्री बनने की योग्यता रखते हैं।

नित्यानंद राय यादव

2019 के लोकसभा चुनाव में, समस्तीपुर जिले के उजियारपुर निर्वाचन क्षेत्र से प्रचार करते हुए भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भाजपा उम्मीदवार नित्यानंद राय को जिताने पर अहम भूमिका सौंपने का वादा किया था। उजियारपुर से राय ने रालोसपा के दिग्गज नेता उपेंद्र कुशवाहा को 2.5 लाख मतों से पराजित कर दिया। एनडीए सत्ता में लौटी और राय को केंद्रीय गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाकर शाह ने अपना वादा पूरा किया। 2010 तक सिर्फ एक विधायक रहे राय पिछले साल शाह के आधिकारिक डिप्टी बने।

54 वर्षीय नित्यानंद राय भाजपा के सबसे बड़े यादव चेहरे के रूप में उभरे हैं और मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए प्रमुख दावेदार हैं। किसान के बेटे राय 1981 से संघ परिवार से जुड़े हुए हैं और उसी साल छात्र कार्यकर्ता के रूप में वो ABVP में भी शामिल हुए थे। उन्होंने हाजीपुर के आर एन कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई करते हुए आरएसएस की शाखाओं में भाग लिया। सबसे पहले भाजपा के पितामह कैलाशपति मिश्रा की नजर उन पर पड़ी और वो ही उनके राजनीतिक शिल्पकार बने।

वो भूमि अधिग्रहण कानून के संयुक्त समिति के सदस्य भी रहे हैं। राय भाजपा के सबसे विश्वस्त कार्यकर्ताओं में से एक हैं। संगठन के निचले हिस्से तक उनका प्रभाव है। संघ से भी उनका जुड़ाव है और सबसे बड़ी बात कि वो यादव समाज से आते हैं। यही सारी योग्यताएं उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त बनाती है।

श्रेयसी सिंह

नेतृत्व, योग्यता और राजनीतिक समीकरण के मानक पर बिहार भाजपा में श्रेयसी सिंह का नाम भी अव्वल है। 30 वर्ष की श्रेयसी सिंह भारतीय निशानेबाज और जमुई से विधानसभा सदस्य हैं। वर्ष 2014 के ग्लास्गो, स्कॉटलैंड कॉमनवेल्थ खेलों में रजत पदक, जबकि वर्ष 2018 के गोल्ड कोस्ट, ऑस्ट्रेलिया कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित भारत की इस बेटी ने हंसराज कॉलेज से कला स्नातक, जबकि मानव रचना विश्वविद्यालय से प्रबंधन विषय में पारा स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। राजपूत राज परिवार से आनेवाली श्रेयसी के खून में राजनीति है। उनके पिता स्वर्गीय दिग्विजय सिंह का एक वृहद और विस्तृत राजनीतिक इतिहास रहा है। वो चंद्रशेखर और वाजपेई सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके थे। विदेश, वित्त, रेलवे और वाणिज्य जैसे कई अहम मंत्रालयों में उन्होंने स्वतंत्र प्रभार के रूप में कार्य भी किया। अतः अगर भाजपा युवा और योग्य श्रेयसी सिंह के चेहरे को आगे लेकर आती है, तो वो न केवल तेजस्वी यादव के युवा चेहरे को ध्वस्त कर देंगी, अपितु सवर्ण जाति से संबंध रखने के कारण राजनीतिक समीकरणों को साधने में भी अहम सिद्ध होंगी।

और पढ़ें: नीतीश कुमार की ‘शराबबंदी’ अब तक की उनकी सबसे बड़ी नाकामी सिद्ध हुई है!

प्रेम कुमार

मुख्यमंत्री पद के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण नाम प्रेम कुमार का है। प्रेम कुमार गया शहरी विधानसभा क्षेत्र से 8 बार विधायक चुने गए हैं। 40 साल लंबा उनका राजनीतिक अनुभव उन्हें एक अद्वितीय उम्मीदवार के रूप में स्थापित करता है। बिहार में पिछड़ा वर्ग करीब 48% है। अगर यादव समाज को इसमें से निकाल भी दिया जाए, तो भी यादव रहित पिछड़ा वर्ग करीब 40 से 42% बचता है। प्रेम कुमार इसी पिछड़े वर्ग से आते हैं और पिछड़े वर्ग के इन सभी समुदायों को अपने पीछे लामबंद करने का सामर्थ्य रखते हैं। वर्ष 2015 में वो भाजपा की तरफ से बिहार विधान सभा में विपक्ष के नेता भी चुने गए थे। प्रेम कुमार बिहार राज्य के अहम पदों और विभिन्न मंत्रालयों में पदासीन भी रहे हैं। उनकी योग्यता, प्रशासनिक क्षमता, अनुभव और पिछड़ा वर्ग के बड़े समुदाय को अपने पीछे लामबंद करने की शक्ति निश्चित रूप से उन्हें बिहार नेताओं के सबसे अलग और अग्रिम श्रेणी में खड़ा करती है।

शाहनवाज हुसैन

प्रखर राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और समावेशी विकास के वैचारिक सिद्धांत सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के कारणवश अपने परिणीति को प्राप्त नहीं कर पाते। इस अवरोध को निष्क्रिय करने हेतु भाजपा के पास शाहनवाज हुसैन नाम का ब्रह्मास्त्र है। बिहार में लगभग 17% मुसलमान हैं। भगवा खेमे में शाहनवाज का उदय न सिर्फ ओवैसी जैसे राष्ट्र विरोधी शक्तियों को निष्क्रिय कर देगी, बल्कि राजद के MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण में सेंध लगा कर तेजस्वी को राजनैतिक रूप से पंगु भी बना देगी। शाहनवाज की प्रशासनिक क्षमता और अनुभव भी अद्भुत है। वो किशनगंज और भागलपुर से कई बार सांसद रह चुके हैं और वाजपेई सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। सबसे कम उम्र में केंद्रीय मंत्री बनने का कीर्तिमान भी शाहनवाज हुसैन के नाम ही है। 33 साल की उम्र में उन्होंने वाजपेई सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार संभाला था, जिसके कारण उन्हें ‘The original youth leader’ भी कहा जाता है।

प्रशासनिक रूप से क्षमतावान और राजनैतिक रूप से प्रबुद्ध शाहनवाज में बिहार भाजपा का नेतृत्व करने की सारी क्षमताएं, योग्यताएं और गुण सन्निहित है। वो न सिर्फ राजनीतिक समीकरण साधने में समर्थ हैं, अपितु भाजपा को बिहार की राजनीतिक शिखर पर आरूढ़ करने में भी शाहनवाज अहम योगदान निभाएंगे।

और पढ़ें: ‘बहुत हुआ तुम्हारा अब NDA से निकलते बनो’, नीतीश कुमार को PM मोदी का स्पष्ट संदेश

ऐसे में भाजपा अगर अपने रथ में इन चारों राजनीतिकों को जोतती है, तो नि:संदेह ही पार्टी बिहार के किसी भी राजनीतिक महाभारत को जीत सकती है। दिल्ली में बैठे राजनीतिक शिल्पकारों को न सिर्फ इन्हें पुष्पित पल्लवित करना चाहिए, बल्कि यथाशक्ति इन्हें राजनीतिक स्वायत्तता भी प्रदान करनी चाहिए ताकि एक दिन ये अपने दम पर बिहार में कमल खिला सके।

Tags: नित्यानंद रायप्रेम कुमारबिहार भाजपाशाहनुवाज हैसनश्रेयसी सिंह
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