पंजाब की सियासी लड़ाई में भाजपा के लिए छुपा हुआ है बड़ा अवसर

चुनावी रण में बिना लड़े हार मानने वालों में से नहीं है 'भाजपा'

मुख्य बिंदु

केंद्र की सत्ताधारी पार्टी भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश के बाद पंजाब सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में से एक है। साल 2017 में हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में कुल 117 सीटों में से भाजपा को महज 3 सीटों पर मिली जीत से संतोष करना पड़ा था जबकि उत्तर प्रदेश में साल 2017 के विधानसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद लोकप्रियता और अपने विकास कार्यों के आधार पर भाजपा अब मजबूत स्थिति में है। पंजाब में भाजपा के लिए राह आसान नहीं दिखती है क्योंकि पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव चौतरफा होने है। पिछली बार की तरह ही इस बार राजनीतिक मैदान में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और बसपा जैसी पार्टियां भाजपा को टक्कर दे सकती हैं।

भाजपा के लिए पंजाब चुनाव: अवसर और चुनौती

वहीं, पिछले डेढ़ सालों से भारत की कृषि प्रणाली को उदार बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर शिविर स्थापित कर आंदोलन किया। किसानों का मानना था कि यह तीनों कानून छोटे और मध्यम वर्गीय किसानों के लिए हितकारी नहीं है। वहीं, इस किसान आन्दोलन के नेतृत्व का बेड़ा सामंत वर्ग के किसानों ने उठाया था। केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसान के हितों में निर्णय लेते हुए 19 नवंबर 2021 को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी, जिसके बाद कयास यह लगाए जा रहे हैं कि हालांकि, यह निर्णय रणनीतिक तौर पर पंजाब में भाजपा की छवि की सुधारने और आगामी चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने से जुड़ा हो सकता है।

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दरअसल, पंजाब में भाजपा की स्थिति को मजबूत करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास परियोजना का शुभारंभ करने पंजाब के फिरोजपुर जा रहे थे। इस बीच फ्लाई ओवर पर उनके काफिले में हुई सुरक्षा चूक और पंजाब सरकार की चुप्पी के बाद प्रधानमंत्री मोदी को वापिस लौटना पड़ा, जिसके बाद इस सुरक्षा चूक पर गृह मंत्रालय ने संज्ञान लेते हुए पंजाब की कांग्रेस सरकार पर जांच शुरू कर दी है। वहीं, कयास यह लगाए जा रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के अपमान का जवाब पंजाब की जनता कांग्रेस सरकार को आगमी चुनाव में देगी।

पंजाब चुनाव में पार्टियों के बीच काटें की टक्कर

ऐसे में, एक बात स्पष्ट है कि न केवल भाजपा अपितु अन्य पार्टी पंजाब में विकास परियोजनाओं और जनहित से जुड़ी योजनाओं के बिना अपनी स्थिति में सुधार नहीं ला सकती है। अगर वर्ष 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव के आकड़ों का आकलन करें तो मालूम होता है कि पंजाब में कांग्रेस के बाद आम आदमी पार्टी काफी मजबूत स्थिति में मानी जा रही है।

इसका कारण है, अरविंद केजरीवाल के राज्य में हो रहे लगातार दौरे और मुफ्त योजनाओं की घोषणा, जो पंजाब वासियों को आकर्षित कर रही है। इन सबसे ऊपर, पंजाब के किसान संघों ने बलबीर राजेवाल के नेतृत्व में संयुक्त समाज मोर्चा नामक एक नई राजनीतिक पार्टी शुरू की है। ऐसी चर्चा है कि संयुक्त समाज मोर्चा (SSM) आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर सकती है। ऐसे में, आम आदमी पार्टी को राज्य में किसानों मतदाताओं से फायदा पहुंच सकता है।

पंजाब की राजनीतिक पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो ज्ञात होता है कि कई बार चुनी गई सरकार को पांच साल के कार्यकाल को पूरा करने से पहले ही बदल दिया जाता है। 90 के दशक से कांग्रेस और अकाली दल दोनों दल बारी-बारी से सत्ता में आए। उनके लिए यह सब तब तक सुविधाजनक था जब तक कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रकाश सिंह बादल राज्य के सबसे मजबूत खिलाड़ी थे। लेकिन अब पंजाब में कांग्रेस पार्टी संकट के दौर से गुजर रही है। कैप्टन अमरिंदर सिंह का इस्तीफा, उनका कांग्रेस पार्टी छोड़ एक नई राजनीतिक पार्टी का गठन करना फिर भाजपा के साथ गठबंधन का ऐलान करना यह सबकुछ राज्य में कांगेस के वोट प्रतिशत को बड़ा झटका दे सकता है। कांग्रेस के पास उम्मीदवार के तौर पर बस तत्कालीन सीएम चरणजीत सिंह चन्नी का चेहरा ही है।

सियासी लड़ाई में भाजपा के लिए छुपा हुआ है बड़ा अवसर 

वहीं, शिरोमणि अकाली दल, पंजाब में अकालियों की जनशक्ति और जमीनी ताकत की बराबरी कोई पार्टी नहीं कर सकती। आगामी विधानसभा चुनाव में अधिक से अधिक सीट पर जीत हासिल कर वापसी करने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। 2017 में शिरोमणि अकाली दल ने 95 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से उन्हें महज 15 सीटें मिलीं। अकाली दल के लिए यह एक हार थी और इसी तरह का प्रदर्शन निकट भविष्य में अगर जारी रहता है तो पंजाब में पार्टी का अंत हो जाएगा। पंजाब का यह चुनाव अनिश्चितताओं का चुनाव है।

वोटों के विभाजन से भाजपा को हो सकता है लाभ

बता दें कि पंजाब में होने वाली एक करीबी चौतरफा लड़ाई में वोटों का विभाजन बड़े पैमाने पर होगा। अगर किसान पार्टी अकेले चुनाव लड़ने का फैसला करती है, तो वह कांग्रेस और अकाली दल के लिए वोट कटुआ बन सकती है। वहीं, आम आदमी पार्टी और बीजेपी-पंजाब लोक कांग्रेस (PLC) गठबंधन इस तरह के वोट-कटौती के सबसे बड़े लाभार्थी के रूप में उभर सकते हैं। पंजाब में आंकड़ों के हिसाब से 38.49 फीसद हिंंदू और 31.94 फीसदी अनुसूचित जाति ( हिंदू और सिख ) के मतदाता हैं। इन आकड़ों को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने पंजाब के उन 45 सीटों पर नजर गड़ा रखी है, जहां 60 फीसदी से अधिक हिन्दू मतदाता हैं।

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ऐसे में, पंजाब में किसी भी पार्टी को 59 सीटों (बहुमत के लिए) पर जीत तय कर सत्ता में आने का सपना बड़ा रोमांचक होने वाला है। किसान आंदोलन की समाप्ति और अकाली दल से नाता तोड़ने के बाद भाजपा के लिए पंजाब चुनाव कठिन प्रतीत होता है किन्तु भाजपा को अपनी सहयोगी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस PLC से लाभ पहुंच सकता है। अन्तः इस चौतरफे सियासी लड़ाई में भाजपा के लिए बड़ा अवसर छुपा हुआ है।

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