राज ठाकरे भारत के सबसे मूर्ख राजनेता हैं

राजनीति में दिखोगे नहीं तो टिकोगे कैसे?

राज ठाकरे महाराष्ट्र
कहाँ राजनीति में फँसे हो, इधर आ जाओ! वहाँ बहुत कीचड़ है..यहाँ जो दिखता है, वही टिकता है!

राज ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐसा नाम है, जो एक करिश्माई व्यक्तित्व रखते हुए भी राजनीतिक रूप से हाशिए पर पड़े हैं। आप राज की राजनीति से सहमत हो या असहमत किंतु आप राज ठाकरे की उपस्थिति को नजरअंदाज नहीं कर सकते क्योंकि एक राजनेता के लिए सबसे बड़ी शक्ति होती है उसकी उपस्थिति, जो हर व्यक्ति को महसूस हो। राज ठाकरे ने अपनी छवि को पूरी तरह बाल ठाकरे जैसा बदलने का प्रयास किया किंतु उन्हें राजनीतिक रूप से बहुत सफलता नहीं मिल सकी। राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर अपना राजनीतिक दल महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की नींव रखी लेकिन इस राजनीतिक दल की छवि पर कई दाग भी लगे।

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महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे का उदय

दरअसल, ठाकरे परिवार महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले कई दशकों से हावी है और एक प्रमुख भूमिका निभाता आ रहा है। बालासाहेब ठाकरे को पूरे भारत में हिंदू हृदय सम्राट के रूप में पहचाना जाता था। भले ही उनके राजनीतिक दल का प्रभाव महाराष्ट्र तक ही सीमित था किंतु उनकी लोकप्रियता महाराष्ट्र के बाहर भी थी। जब बाला साहब ठाकरे की उम्र बढ़ने लगी तो शिवसेना में उनकी विरासत को संभालने के लिए उनके पुत्र उद्धव ठाकरे और उनके भतीजे राज ठाकरे के रूप में दो प्रतिद्वंदी सामने आए। राज ठाकरे की पहचान बालासाहेब ठाकरे के वास्तविक उत्तराधिकारी के रूप में थी किंतु बाल ठाकरे ने आम शिवसैनिकों और मराठी लोगों की इच्छा को हाशिए पर रखकर उद्धव ठाकरे को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। संभवत यह उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक भूल थी।

राज ने बाल ठाकरे के निर्णय का विरोध करते हुए शिवसेना छोड़ दी और 2006 में एक अलग पार्टी का निर्माण किया। हालांकि, इस पार्टी द्वारा महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर राजनीतिक और शारीरिक तौर पर हमले किये गए। वहीं, चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी का प्रदर्शन ठीक-ठाक रहा। 2009 के विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने 13 सीट जीती और चौथे नंबर की पार्टी बनकर उभरी किन्तु 2014 और 2019 के चुनाव में उसे केवल एक सीट मिल सकी। 2019 चुनाव के बाद यह तय मान लिया गया कि महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे अप्रासंगिक हो चुके हैं किन्तु शिवसेना और भाजपा के गठबंधन टूटने के बाद उन्हें अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने के लिए एक और मौका मिला। राज ठाकरे चाहते तो उद्धव के विरुद्ध मोर्चा खोल सकते थे।

महाराष्ट्र की राजनीति में धूमिल हो चुके हैं राज 

उद्धव ने अपने पिता और राज के आदर्श पुरुष बाल ठाकरे की थाती को छोड़ने का कार्य किया है। जिस NCP के विरुद्ध लड़ते हुए बाला साहब को जेल तक हो गई और जिस कांग्रेस को बालासाहब नपुंसकों की पार्टी मानते थे आज उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्हीं की गोद में जा बैठे। राज ठाकरे के पास अवसर था कि वह लोगों को यह सिद्ध कर सके कि बाल ठाकरे की विरासत के असली उत्तराधिकारी वही हैं।

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राज ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में अब धूमिल हो चुके हैं। ऐसा लगता है कि राज ठाकरे सबसे कम उम्र में राजनीति से सन्यास लेने वाले नेता बनकर रहना चाहते हैं। दो चार गरीब ठेले वालों को पीटने के अतिरिक्त महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) पार्टी ने किसी अन्य गतिविधि में सक्रिय नहीं दिखती है। ऐसे में, राज ठाकरे को भाजपा के साथ गठबंधन पर विचार करना चाहिए और स्वयं बालासाहेब ठाकरे की विरासत को बचाने के लिए सामने आना चाहिए। यह उनके और महाराष्ट्र, दोनों के हित में होगा।

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