रिलायंस ने अब तक के सबसे बड़े करेंसी बॉन्ड Issue में जुटाए 4 अरब डॉलर

टेंशन मत लीजिए, रिलायंस है न!

रिलायंस बांड

भारतीय अर्थव्यवस्था ने निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण का रास्ता इसलिए चुना था क्योंकि दुनिया में भारत अन्य देशों के साथ आर्थिक प्रतिसपर्धा कर सके। वहीं, इस प्रतिस्पर्धा में भारत सरकार एवं भारतीय कंपनियां विदेशी मुद्रा में कर्ज जुटाने से कतराती रहीं। कर्ज में चूक के डर से भारतीय कंपनियों के साथ भारत सरकार ने विश्व स्तर पर धन जुटाने के बजाय उच्च ब्याज दरों का भुगतान करना उचित समझा। हालांकि, इस नए दशक में एक नया भारत उभर रहा है, जो अपनी आर्थिक वृद्धि और ऋण चुकौती क्षमताओं के बारे में आश्वस्त है। 2022 की शुरुआत में, देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अंतरराष्ट्रीय निवेशकों से सफलतापूर्वक वैश्विक मुद्रा में 4 बिलियन डॉलर जुटा लिया है, जो की देश में अर्जित किया गया अब तक का सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा ऋण है।

रिलायंस ने अब तक के सबसे कम दरों पर  जुटाए बॉन्ड्स

बता दें कि कंपनी ने एक बयान में कहा, “लगभग 3 गुना ओवरसब्सक्राइब के साथ यह इश्यू लगभग 11.5 बिलियन डॉलर के पीक ऑर्डर पर बुक हुआ।” रिलायंस द्वारा कर्ज जुटाना हर लिहाज से उल्लेखनीय है। कंपनी द्वारा उठाए गए ऋण का मूल्य 2014 में ONGC विदेश लिमिटेड द्वारा जुटाए गए 2.2 बिलियन डॉलर से लगभग दोगुना था। वहीं, रिलायंस ने जापान के बाहर किसी भारतीय कॉरपोरेट के लिए अब तक सबसे कम ब्याज दर पर यह कर्ज उठाया है जबकि 10 वर्ष, 20 वर्ष और 40 वर्ष की परिपक्वता अवधि वाले बांड क्रमशः 2.875%, 3.625% और 3.75% कूपन दर की ब्याज दरों पर उठाए गए हैं।

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एक बयान में कहा गया, “यह लेन-देन विभिन्न मामलों में महत्वपूर्ण है – (यह) भारत से अब तक का सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा बांड जारी करना है। यह भारत की ओर से जारी अब तक का सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा बांड है। किसी भारतीय कॉरपोरेट द्वारा 3 चरणों में से प्रत्येक में संबंधित यूएस ट्रेजरी में फैला हुआ अब तक का सबसे सख्त निहित क्रेडिट है। यह एशिया पूर्व जापान के एक निजी क्षेत्र के बीबीबी कॉरपोरेट द्वारा बेंचमार्क 30-वर्षीय और 40-वर्षीय निर्गमों के लिए प्राप्त न्यूनतम कूपन वाला बॉन्ड है। एशिया पूर्व जापान से बीबीबी निजी क्षेत्र के कॉर्पोरेट द्वारा पहली बार 40 साल की किश्त बनी है।”

रिलायंस बॉन्ड्स जुटाने में एकमात्र कंपनी नहीं

मालूम हो कि रिलायंस इंडस्ट्रीज भारत की एकमात्र इकाई नहीं है, जो वैश्विक मुद्रा में कर्ज जुटा रही है। सौर ऊर्जा कंपनी, रिलायंस रीन्यू पावर ने भी 4.5% की प्रतिस्पर्धी दर पर 5.25 वर्षों के लिए बांड जारी करके 400 मिलियन डॉलर जुटाए हैं। हालांकि, इन प्रयासों की तुलना अभी भी भारत सरकार की आकांक्षा से की जाती है। भारत सरकार, जो हर साल घरेलू और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों से हजारों करोड़ रुपये जुटाती है, लेकिन  सारा पैसा भारतीय मुद्रा में उठाया जाता है, इस कारण ब्याज दरें अधिक होती हैं।

इसके साथ ही, भारत को अब वैश्विक बॉन्ड इंडेक्स के हिस्से के रूप में सूचीबद्ध करने पर विचार किया जा रहा है। भारत एक विकासशील देश है और सरकार को बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करने और कई आधुनिक उद्योगों के विकास में सहायता करने की आवश्यकता है, जो कि सस्ते दरों पर बहुत अधिक पूंजी की आवश्यकता की ओर इंगित करता है।

आपको बता दें कि रिलायंस द्वारा हासिल किए गए बांड में सबसे ज्‍यादा हिस्‍सेदारी 53 फीसदी के साथ एश‍िया की है। यूरोप 14 फीसदी और अमरीका में 33 फीसदी बांड बांटे गए हैं। रिलायंस बांड को हाई क्वालिटी फिक्स्ड इनकम अकाउंट में डिस्ट्रीब्यूट किया गया है।

सस्ते ऋणों से पूरी हो सकेंगी बड़ी विकास परियोजनाएं

भारत के पास उपलब्ध धन कोष को व्यापक बनाने के लिए मोदी सरकार वैश्विक सूचकांकों में भारत के सॉवरेन बांड की सूची पर विचार कर रही है। पिछले साल, भारत सरकार सभी के लिए पूर्वव्यापी कराधान को समाप्त करने के लिए कराधान (संशोधन) विधेयक लेकर आई थी। वहीं, कराधान पक्ष पर स्पष्टता की कमी के कारण विदेशी निवेशक भारत सरकार के बांड (IGB) से कतरा रहे थे। वर्तमान वित्त व्यवस्था में, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक भारत में अधिकांश सार्वजनिक ऋण धारण करते हैं और इसके कारण, उनके निजी ऋण को नुकसान होता है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड बाजारों में लिस्टिंग के बाद से भारत सरकार को हर साल बहुत कम ब्याज दर पर अरब डॉलर मिलेगा।

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विभिन्न शोधों के अनुसार, वैश्विक बॉन्ड इंडेक्स में सूचीबद्ध होने से भारत सरकार के बॉन्ड प्रतिफल में 50 आधार अंकों की कमी आएगी। आसान शब्दों में कहें तो भारत को अगर कर्ज 6.5 फीसदी सालाना ब्याज दर के आधार पर मिल रहा है, तो लिस्टिंग के बाद यह 6 फीसदी की दर से मिलेगा और इसका मतलब है कि सरकार ब्याज दर भुगतान में हर साल अरबों डॉलर बचाने में कामयाब होगी। वहीं, इस सस्ते ब्याज दरों के परिणामस्वरूप भारत सरकार सड़क, रेलवे, पाइप गैस, पानी और अन्य सभी प्रकार के आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण बहुत कुशलता से कर सकेगी और इससे आने वाले वर्षों में आर्थिक विकास में तेजी आएगी। साथ ही भारतीय कॉरपोरेट भी बड़ी परियोजनाओं को सस्ते ऋणों के साथ वित्तपोषित करने में सक्षम होंगे। ऐसे में, रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इस क्षेत्र में अपने कदमों से उदाहरण पेश कर दिया है।

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