समाचार पत्र का इतिहास, भारत का पहला साप्ताहिक और प्रभाव

समाचार पत्र

समाचार पत्र दिन-प्रतिदिन अपने बढ़ते हुए महत्व के कारण सभी क्षेत्रों में बहुत ही प्रसिद्धि प्राप्त कर रहा है. विद्यार्थियों के लिए समाचार पत्र पढ़ना बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सभी के बारे में सामान्य जानकारी देता है. यह उनकी किसी भी सरकारी या गैर-सरकारी नौकरी के लिए तकनीकी या प्रतियोगी परीक्षा को पास करने में भी हमारी मदद करता है.

समाचार पत्र समाज और देश में हो रही घटनाओं पर आधारित एक प्रकाशन है. जिससे हमें: घटनाएँ, खेल-कूद, व्यक्तित्व, राजनीति, विज्ञापन की जानकारियाँ प्राप्त होती है. यह एक सस्ते काग़ज़ पर छपी होती है. समाचारपत्र प्रायः दैनिक होते हैं लेकिन कुछ समाचार पत्र साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक एवं छमाही भी होतें हैं. अधिकतर समाचारपत्र स्थानीय भाषाओं में और स्थानीय विषयों पर केन्द्रित होते हैं.

समाचार पत्र का इतिहास

भारत में ब्रिटिश शासन के द्वारा अखबारों की शुरुआत मानी जाती है. लेकिन उसका स्वरूप अखबारों की तरह बिल्कूल नहीं था. वह बस एक पन्ने का सूचनात्मक पर्चा सा था. पूर्णरूपेण अखबार बंगाल से ‘बंगाल-गजट’ के नाम से वायसरायहिक्की द्वारा निकाला गया था. शुरुआत में अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिए इस अखबारों का इस्तेमाल किया. तब सारे अखबार अंग्रेज़ी में प्रकाशित हो रहे थे. जिसके कारण बहुसंख्यक लोगों तक खबरें और सूचनाएँ नहीं पहुँच पाती थीं. खबरों को काफ़ी तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जाता था. जिसके चलते अंग्रेज़ी सरकार के अत्याचारों की खबरों को दबाया जा सके.

उस समय अंग्रेज़ों की क्रुरता काफी हद तक बड़ गई थी. सिपाही किसी भी क्षेत्र में घुसकर मनमाना व्यवहार कर रहे थे. वह जहां भी जा रहे थे वहाँ अपना आतंक फैलाते रहते थे. शासन उनका होले के कारण उन पर ना तो मुकदमे हो रहे थे और न ही उन्हें कोई दंड ही दिया जा रहा था. इन सब परिस्थितियों को लोग खामोशी से झेलते आ रहे थे.

इस दौरान भारत में ‘द हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘नेशनल हेराल्ड’, ‘पायनियर’, ‘मुंबई-मिरर’ जैसे अखबार अंग्रेज़ी में निकलते थे. जिसमें उन अत्याचारों का दूर-दूर तक कोई उल्लेख नहीं होता था. इन अँग्रेजी पत्रों के अतिरिक्त बंगला, उर्दू आदि में पत्रों का प्रकाशन तो होता रहा, लेकिन उसका दायरा सीमित था. उसे कोई बंगाली पढ़ने वाला या उर्दू जानने वाला ही समझ सकता था. ऐसे में पहली बार 30 मई 1826 को हिन्दी का प्रथम पत्र ‘उदंतमार्तंड’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ.

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उदंतमार्तंड

यह समाचारपत्र साप्ताहिक था. ‘उदंतमार्तंड’ की शुरुआत ने भाषायी स्तर पर लोगों को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया. यह केवल एक पत्र नहीं, बल्कि उन हजारों लोगों की जुबान था, जो अब तक खामोश और भयभीत थे. हिन्दी में पत्रों की शुरुआत से देश में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ और आजादी की जंग की शुरुआत हुई. इस समाचार पत्र से लोगों तक देश के कोने-कोन में घट रही घटनाओं की जानकारी पहुँचने लगी.

लेकिन कुछ ही समय बाद इस पत्र के संपादक जुगल किशोर को सहायता के अभाव में 11 दिसम्बर 1827 को पत्र बंद करना पड़ा. 10 मई 1829 को बंगाल से हिन्दी अखबार ‘बंगदूत’ का प्रकाशन हुआ. यह पत्र भी लोगों की आवाज बना और उन्हें जोड़े रखने का माध्यम. इसके बाद जुलाई, 1854 में श्यामसुंदर सेन ने कलकत्ता से ‘समाचार सुधा वर्षण’ का प्रकाशन किया.

आजादी की लहर पूरे देश में फैल रही थी. बंगाल विभाजन के उपरांत हिन्दी पत्रों की आवाज और बुलंद हो गई. लोकमान्य तिलक ने ‘केसरी’ का संपादन किया और लाला लाजपत राय ने पंजाब से ‘वंदेमातरम’ पत्र निकाला. इन पत्रों ने युवाओं को आजादी की लड़ाई में अधिक-से-अधिक सहयोग देने का आह्वान किया. ‘केसरी’ को नागपुर से माधवराव प्रेस ने निकाला. तिलक के उत्तेजक लेखों के कारण इस पत्र पर पाबंदी लगा दी गई. इसी प्रकार बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र के क्षेत्रों से पत्रों का प्रकाशन होता रहा.

अत: हम कह सकते हैं कि भारत में स्वतंत्रता की लोह को पैदा करने में समाचार पत्रों का अहम योगदान रहा है.क्योंकि इसी के माध्यम से लोगों तक अंग्रेजों के अत्याचारों को पहुंचाया गया.

समाचार पत्र का सकारात्मक प्रभाव

समाचार पत्र समाज के लोगों को सकारात्मक रुप से प्रभावित करता है क्योंकि आज के समय में सभी लोग देश की सामयिक घटनाओं को जानने में रुचि रखने लगे हैं. समाचार पत्र सरकार और लोगों के बीच जुड़ाव का सबसे अच्छा तरीका है.

यह लोगों को पूरे संसार की सभी बड़ी व छोटी खबरों का विवरण प्रदान करता है. यह देश के लोगों को नियमों, कानूनों और अधिकारों के बारे में जागरूक बनाता है. समाचार पत्र विद्यार्थियों के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होते हैं. कुछ लोगों में समाचार पत्र को प्रत्येक सुबह पढ़ने की आदत होती है. वे समाचार पत्र की अनुपस्थिति में बहुत अधिक बेचैन हो जाते हैं.

समाचार पत्रों में सामाजिक मुद्दों, मानवता, संस्कृति, परम्परा, जीवन-शैली, ध्यान, योगा आदि जैसे विषयों के बारे में कई सारे अच्छे लेख संपादित होते हैं. यह सामान्य जनता के विचारों के बारे में भी जानकारी प्रदान करता है और बहुत से सामाजिक तथा आर्थिक विषयों को सुलझाने में हमारी सहायता करता है. इसके साथ ही समाचार पत्रों के द्वारा हमें राजनेताओं, सरकारी नीतियों तथा विपक्षी दलों के नीतियों के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है.

यहीं कारण है कि वर्तमान समय में समाचार पत्र को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है. आशा करते है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा एवं ऐसे ही लेख और न्यूज पढ़ने के लिए कृपया हमारा ट्विटर पेज फॉलो करें.

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