संप्रदा सिंह जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय, शिक्षा, नौकरी, व्यवसाय एवं मृत्यु

संप्रदा सिंह हँसते हुए

संप्रदा सिंह जीवन परिचय

बिहार में एक से बढ़कर एक प्रतिभाओं का खजाना है. इस राज्य ने देश को कई उम्दा कलाकार, नामचीन अफसर, अंतरराष्ट्रीय खिलाड़िय, मशहूर एकेडमिक्स और साइंटिस्ट के साथ आला दर्जे के कारोबारी भी दिए हैं. यह वह कारोबारी थे जिन्होंने शून्य से शिखर तक का सफर तय किया था. जिनमें एक नाम संप्रदा सिंह (Samprada Singh), का आता है. संप्रदा सिंह को दुनिया उनके कारोबार की वजह से जानती है.

एक मामूली किसान के बेटे ने अपनी मेहनत के दम पर जो कुछ भी हासिल किया वो किसी मिसाल से कम नहीं है. इलाके में संप्रदा बाबू के नाम से जाने जाने वाले इस उद्योगपति के बारे में लोग बताते हैं कि संप्रदा बाबू जब मुंबंई गए थे तो वो अपने साथ एक लाख रुपये लेकर गए थे और इसी पैसे से उन्होंने अपनी दवा कंपनी शुरू की

कौन थे संप्रदा सिंह?

संप्रदा सिंह का जन्म 1925 में बिहार के जहानाबाद जिले के मोदनगंजप्रखंड के ओकरी गांव में हुआ था. वो डॉक्टर बनना चाहते थे. उनके माता पिता की भी यही इच्छा थी. मेडिकल की परीक्षा पास ना कर पाने की वजह से संप्रदा सिंह और उनके माता पिता का सपना पूरा नहीं सका. संप्रदा सिंह ने पटना यूनिवर्सिटी से बीकॉम की पढ़ाई की. भले ही संप्रदा डॉक्टर न बने हों पर वह मेडिकल के क्षेत्र में कुछ करना चाहते थे.

पहले नौकरी की फिर बनाई कंपनी

संप्रदा सिंह की पहचान भले ही देश के बड़े और मशहूर उद्योगपतियों के तौर पर होती है लेकिन बहुत कम लोगों को ये पता है कि उन्होंने भी अपने करियर की शरूआत एक केमिस्टशॉप पर नौकरी से की थी. उन्होंने 1953 में पटना में एक साधारण दवा दुकान से अपने संघर्ष की शुरुआत की. वह इस कारोबार को बड़ी बारीकी से समझने लगे. 7 साल बाद 1960 में उन्होंने फार्मास्युटिकल्सडिस्ट्रिब्यूशनफर्म “मगध फार्मा” की नींव डाली.

पटना के बाद मुंबई का किया रूख

संप्रदा सिंह की मेहनत से उनके कई देसी-विदेशी दवा कंपनियों से अच्छे रिश्ते बन गए. वो जल्द ही डिस्ट्रीब्यूटर बन गए लेकिन उनको सिर्फ दवा नहीं बेचनी थी. तभी उनके दिमाग में आया कि क्यों न खुद दवाई बनाई जाए. इसी सपने के साथ 1973 में वो मुंबई चले गए.जहां उन्होने अपनी कंपनी “एल्केमलेबोरेटरीज” (Alkem Laboratories) की नींव डाली. शुरू में कई संघर्ष का सामना करने के बाद उनका संघर्ष 1989 में रंग लाया.

दरअसल, उनकी कंपनी ने “एंटीबायोटिककंफोटेक्सिम का जेनेरिकवर्जनटैक्सिम” बना लिया था. कंफोटेक्सिम की इन्वेंटर कंपनी मेरिओनरूसेल को लगा कि एल्केम बहुत छोटी कंपनी है. ये ज्यादा दिन टिक नहीं पाएगी. लेकिन डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क और किफायती मूल्य की वजह से उनकी “टैक्सिम” ने बाजार में तहलका मचा दिया.

2017 में मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान

आज की तारीख में संपदा की एल्केमलेबोरेटरीज, फार्मास्युटिकल्स और न्यूट्रास्युटिकल्स बनाती है. वहीं इसका कारोबार 30 से ज्यादा देशों में है. 2017 में फोर्ब्स इंडिया (Forbes India List) ने संप्रदा सिंह को देश के टॉप 100 भारतीय धनकुबेरों में 52वां स्थान दिया था. उस समय संप्रदा सिंह 3.3 अरब डॉलर के मालिक थे. फोर्ब्स में शामिल होने वाले बिहार के पहले कारोबारी थे. वहीं इस लिस्ट में दुनिया के जाने-माने कारोबारी मुकेश अंबानी के भाई अनिल अंबानी संप्रदा सिंह से पीछे थे. आखिरी सालों तक उनका कारोबारी जुनून देखते बनता था. संप्रदा सिंह को दुनियाभर के कई सम्मान भी मिल चुके हैं.

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संप्रदा सिंह की मृत्यु

बिहार के सबसे अमीर उद्योगपति रहे और मशहूर दवा कंपनी एल्केम ग्रुप ऑफ कंपनी के मालिक का निधन 27 जुलाई 2019 को 94 साल की उम्र में मुंबई के लीलावती अस्पताल में हुआ. उनकी पहचान न केवल एक सफल उद्योगपति के तौर पर होती है. बल्कि उनको फार्मा लाइन का एक दिग्गज भी माना जाता है. एक साधारण किसान के पुत्र से बिहार के सबसे बड़े उद्योगपति बनने तक की संप्रदा बाबू की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी. आशा करते है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा एवं ऐसे ही लेख और न्यूज पढ़ने के लिए कृपया हमारा ट्विटर पेज फॉलो करें.

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