सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित सरोज स्मृति का मार्मिक वर्णन

सरोज स्मृति

सरोज स्मृति की रचना किसने की?

’सरोज स्मृति’ हिंदी में अपने प्रकार का एकमात्र शोक काव्य है. जिसकी रचना “सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” ने की थी. यह कविता कवि निराला द्वारा अपनी पुत्री की मृत्यु पर लिखी गई थी. कवि निराला की पुत्री सरोज की मृत्यु 18 वर्ष की उम्र में हो गयी थी. सरोज स्मृति नामक इस रचना में कवि ने अपनी पुत्री की स्मृतियों को संजोया है. इस कविता में करुणा भाव की प्रधानता है.’सरोज स्मृति’ कवि ने अपनी प्रिय पुत्री सरोज के बाल्यकाल से लेकर मृत्यु तक की घटनाओं को बङे प्रभावशाली ढंग से सरोज स्मृति में अंकित किया है.

इस कविता में एक भाग्यहीन पिता का संघर्ष, समाज से उसके संबंध, पुत्री के प्रति बहुत कुछ न कर पाने का अकर्मण्यता बोध भी प्रकट हुआ है. सरोज स्मृति के माध्यम से निराला का जीवन-संघर्ष भी प्रकट हुआ है.आज हम इस पोस्ट के माध्यम से कवि निराला की चर्चित कविता सरोज स्मृति को समझाएंगे. सरोज स्मृति कविता सरोज की मृत्यु के 2 वर्ष बाद सन 1935 ईस्वी में लिखी गई थी.

सरोज स्मृति भावार्थ

कवि ’निराला’ की एक बेटी जिसका नाम सरोज था. जिसकी मृत्यु हो गई थी. निराला दुखी होकर उसके विवाह के क्षणों को याद करते हुए कहते हैं कि ’’तेरा विवाह मैंने एक नए रूप में देखा था. तुझ पर कलश से शुभ् जल गिराया जा रहा था,और तू मुझे उस समय देखकर मंद-मंद हँस रही थी. बिजली जैसा कंपन तेरे होठों पर था. प्रियतम की सुंदर छवि तेरे हृदय में झूल रही थी. जिसको अभिव्यक्त करना शायद तेरे लिए संभव नहीं था.

पर तेरे शृंगार के माध्यम से वह सामने आ रहा था. तेरे नेन झुके हुए थे जिससे प्रकाश की अनुभति हो रही थी. तेरे होंठ काँप रहे थे मानो तू कुछ कहना चाहती हो या शायद माँ का अभाव तुझे दर्द दे रहा हो . तुझे देखकर मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो मेरे जीवन का एक खुबसुरत क्षणों का प्रथम गीत तो तू ही थी.’’

’निराला’ को पुत्री का शृंगार उनकी पत्नी के निराकार स्वरूप का स्मरण करा रहा था. पत्नी का वह शृंगार ही कविता में अभिव्यक्त हो रहा है. वह अत्यंत सुन्दर रूप मानों आकाश अर्थात् स्वर्गलोक से उतरकर पुत्री के रूप में पृथ्वी पर उतर आया हो. पुत्री का विवाह सम्पन्न हो गया था. आत्मीयजन नहीं था क्योंकि किसी को निमंत्रण ही नहीं दिया था.

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पुत्री के विवाह का भावुक वर्णन

घर में विवाह वाले गीत भी नहीं गाए गए थे. जैसे विवाह में चहल पहल होती है वैसे पुत्री के विवाह की चहल-पहल में कोई दिन-रात नहीं जागा. बहुत साधारण तरीके से उसका विवाह हुआ. एक प्यारा-सा शांत वातावरण और इस मौन में संगीत की लहरी थी. जो नवयुगल के नवजीवन में प्रवेश के लिए आवश्यक थी.

आगे कवि सरोज स्मृति में अपनी स्वर्गीय पुत्री सरोज को संबोधित करते हुए बोलते हैं कि तेरी माँ के अभाव में मां के द्वारा दी जाने वाली शिक्षा भी तुझे मैंने ही दी थी. विवाह के दौरान तेरी डोली भी मैंने ही सजाई थी. कवि के मन में ख्याल आया कि जैसे कण्व ऋषि की पुत्री शंकुतला की मां नहीं थी इसी प्रकार मेरी पुत्री सरोज है.

विवाह के कुछ दिन बाद ही तू अपनी नानी की प्रेममयी गोद पाने के लिए ननिहाल चली गई .जहां पर मामा-मामी ने तुझे अपार प्यार दिया. तेरे ननिहाल वाले हमेशा तेरे सुख दुःख में तेरे साथ रहे. वे हमेशा तेरे हित देखते. तू वहीं कली के रूप में खिली, स्नेह से वहाँ पली, वहीं की लता बनी और अंतिम समय में तूने मृत्यु का वरण भी वहीं किया था.

कवि निराला भावुक होकर सरोज स्मृति में बोलते हैं कि हे पुत्री! तू मेरे जैसे भाग्यहीन पिता का एकमात्र सहारा थी. दुख मेरे जीवन की एक कथा रही है जिसे मैंने आज तक किसी से नहीं कहा, उसे अब क्या कहूँ. मुझ पर कितने ही भयानक विपत्तियाँ आए, चाहे मेरे सारे कर्म उसी तरह भ्रष्ट हो जाए जैसे ज्यादा सर्दी के कारण कमल का फूल नष्ट हो जाता हैं.

लेकिन अगर धर्म मेरे साथ रहा तो मैं विपदाओं को भी मस्तक झुकाकर स्वीकार कर लूँगा. मैं अपने रास्ते से कभी नहीं हटूँगा. कवि अंत में कहता है कि बेटी मैं अपने बीते हुए सारे शुभ कर्मों को तूझे अर्पित करता हूं और तेरा तर्पण करता हूँ अर्थात् मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि मेरे द्वारा किए शुभकर्मों का फल तुझे मिल जाए. आशा करते है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा ऐसे ही लेख और न्यूज पढ़ने के लिए कृपया हमारा ट्विटर पर हमसे जुड़े.

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