मुख्य बिंदु
- तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के मुदिचुर क्षेत्र के वरधाराजपुरम गाँव में तोड़ा गया नरसिंह अंजनेयर मंदिर
- तमिलनाडु में चर्च के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं कर रही स्टालिन सरकार
- पूरे भारतवर्ष में हिंदू मंदिरों की मुक्ति एक गंभीर प्रश्न है, इस पर विमर्श करने की है जरुरत
तमिलनाडु का पोंगल एक प्रसिद्ध त्यौहार है किन्तु उसके शुरू होने से पहले ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन मुग़ल शासक औरंगजेब के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। हर महीने तमिलनाडु में सरकारी विभागों द्वारा मंदिर तोड़े जाने की घटनाएं सामने आ रही हैं। एक ओर मंदिरों पर कथित अवैध निर्माण के आरोप लगाकर उन्हें तोड़ा जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर चर्च के अवैध निर्माण को सरकारी विभाग हाथ नहीं लगा रहे। दरअसल, हाल ही में 10 जनवरी को तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के मुदिचुर क्षेत्र के वरधाराजपुरम गाँव में नरसिंह अंजनेयर मंदिर को तोड़ दिया गया। भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार और अंजनी पुत्र भगवान हनुमान को समर्पित यह मंदिर 125 वर्ष पुराना था।
तमिलनाडु में फिर से तोड़ा गया हिन्दू मंदिर
अधिकारियों का कहना है कि मंदिर अड्यार नदीतल पर कब्जा करके बना था अर्थात नदी के वास्तविक तटबंध के भीतर मन्दिर निर्माण हुआ था। वहीं, स्थानीय लोगों का विरोध इस बात को लेकर है कि इसी प्रकार का एक निर्माण स्थानीय चर्च द्वारा भी किया गया है किंतु लोगों का आरोप है कि स्थानीय प्रशासन ने चर्च के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की है। हालांकि, तांबरम पुलिस कमिश्नर एम रवि ने इन आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने मीडिया से कहा है कि “मंदिर ही नहीं, चर्च परिसर की दीवार का एक हिस्सा भी ध्वस्त कर दिया गया क्योंकि यह एक जल निकाय पर अतिक्रमण कर रहा था। तहसीलदार की शिकायत के आधार पर मामला भी दर्ज कर लिया गया है और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
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स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन ने पहले ही हिंदू मंदिर को तोड़ने का नोटिस थमा दिया था किंतु हिंदू संगठनों के अनुरोध पर प्रशासन ने यह स्वीकार किया था कि हनुमान जयंती के बाद ही इस प्रकार की कार्यवाही की जाएगी। बाद में स्थानीय प्रशासन अपनी बात से पीछे हट गया और हनुमान जयंती के पूर्व ही हनुमान मंदिर को तोड़ दिया गया। इस घटना ने लोगों की भावनाओं को अधिक चोट पहुंचाई है। चर्च के विरुद्ध कार्यवाही ना होने की बात को लेकर स्थानीय लोगों का दावा सही है या सरकारी विभाग का कथन, यह तय करना मुश्किल है किंतु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वहां के स्थानीय हिंदुओं में सरकार की कार्यवाही के विरुद्ध व्यापक असंतोष व्याप्त है। यह पहली बार नहीं है जब तमिलनाडु में हिंदू मंदिर तोड़े गए हैं।
भारतवर्ष में एक गंभीर प्रश्न है हिंदू मंदिरों की मुक्ति
बता दें कि जुलाई महीने में ही कोयंबटूर के मुथनंकुलम बांध पर बने सात मंदिरों को तोड़ दिया गया था। इस कार्यवाही का स्थानीय हिंदू संगठनों ने जबरदस्त विरोध भी किया था किंतु कोई लाभ नहीं हुआ। नवंबर महीने में श्रीपेरंबदूर जिले में भगवान शिव का एक मंदिर तोड़ा गया था। स्थानीय हिंदुओं का कहना था कि प्रशासन ने श्रद्धालुओं को मूर्ति हटाने का अवसर भी नहीं दिया था।
इस बार भी प्रशासन का तर्क यही था कि मंदिर अवैध तरीके से बना है किंतु स्थानीय हिंदुओं ने इस मामले को न्यायालय में उठाने का निश्चय किया है। तमिलनाडु में मंदिरों की मुक्ति के लिए व्यापक रूप से अभियान चल रहा है। तमिलनाडु में मंदिरों का शोषण इतना बढ़ चुका है कि पिछले 35 वर्षों में AIADMK और DMK दोनों दलों की सरकारों द्वारा 47000 एकड़ भूमि का गबन किया गया है। इस मामले पर मद्रास उच्च न्यायालय ने सरकार से जवाब तलब भी किया है।
पिछली सरकार में तमिलनाडु के अर्धनारीश्वर मंदिर की 100 करोड़ की संपत्ति को राज्य सरकार द्वारा मात्र 1.98 करोड़ रुपये में अधिग्रहित करने का प्रयास किया गया था, जिसका RSS संगठनों द्वारा विरोध किया गया था। सरकार विभिन्न माध्यमों से मंदिर की संपत्ति पर अधिकार जमा लेती है। स्टालिन सरकार ने भगवान कार्तिकेय को समर्पित पलानी स्थित मंदिर का अधिग्रहण करने का प्रयास किया था। वास्तविकता यह है कि पूरे भारतवर्ष में भी हिंदू मंदिरों की मुक्ति एक गंभीर प्रश्न है किंतु कोई राजनीतिक दल इसे विमर्श का हिस्सा नहीं बनाना चाहता है।