Statue of Equality: प्रथम हिंदू धर्म सुधारक स्वामी रामानुजाचार्य का हैदराबाद में बना भव्य मंदिर

हैदराबाद में बन रही है विश्व की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा!

स्वामी रामानुजाचार्य

भारत प्राचीन समय से ही संतों की भूमि रहा है। वहीं, पश्चिम जगत जीसस क्राइस्ट, मूसा, मोहम्मद जैसे उंगली पर गिने जा सकने वाले संत महात्माओं को देखा है। उनमें भी उनकी महानता को लेकर तरह-तरह के विवाद हैं क्योंकि क्राइस्ट और मोहम्मद के अनुयायियों ने उनके विचारों को आधार बनाकर करोड़ों मनुष्य का नरसंहार किया किंतु भारत की संत परंपरा इससे बहुत अलग है।

भारत के संतो ने अहं त्याग और मोक्ष, माया से मुक्ति के मार्ग बतलाए। फिर एक ऐसा दौर आया जब  कांग्रेस शासन में भारत की महान संत परंपरा को इतिहास से मिटाने का प्रयास किया गया। विद्यालय की पाठ्य पुस्तकें मुग़ल शासकों बाबर, हुमायूं, अकबर की बातों से भरी पड़ी थी। वर्ष 2014 जब मोदी सरकार सत्ता में आई तब भारत की संत परंपरा को पुनः जीवित करने और लोगों के समक्ष उन्हे आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने हेतु इतिहास की पाठ्यपुस्तक के साथ मठ और मंदिरों के भव्यीकरण का कार्य किया है।

हैदराबाद में बन रही है विश्व की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा

इसी क्रम में, हैदराबाद में 1000 करोड़ की लागत से बन रहे संत स्वामी रामानुजाचार्य के भव्य मंदिर का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाना है। पिछले वर्ष सितम्बर माह (2021) में 2 फरवरी से 14 फरवरी 2022 तक नियोजित समारोहों के बारे में जानकारी देने के लिए त्रिदंडी चिन्ना जीयर स्वामी ने पीएम मोदी से मुलाकात की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन्होंने स्वयं आमंत्रित भी किया है। बता दें कि स्वामी रामानुजाचार्य मन्दिर में दो प्रतिमायां स्थापित की जाएंगी। पहली प्रतिमा अष्टधातु की बनी 216 फ़ीट ऊँची विश्व की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है। स्वामी रामानुजाचार्य प्रतिमा को स्टैच्यू ऑफ इक्विलिटी (Statue of Equality) का नाम दिया गया है।

वहीं, दूसरी प्रतिमा मंदिर के गर्भगृह में स्थापित की जाएगी, जिसमें 120 किलो सोने का प्रयोग किया गया है। बता दें कि मंदिर निर्माण की पूरी राशि दान से जुटाई गई है।  स्वामी रामानुजाचार्य भारत में समानता की बात करने वाले प्रथम हिंदू धर्म सुधारकों में थे। स्वामी रामानुजाचार्य समानता के सबसे बड़े समर्थक थे, जिस कारण उनकी प्रतिमा का नाम स्टेच्यू ऑफ इक्वलिटी रखा गया है।

जहां भारत के पहले प्रधानमंत्री इफ्तार पार्टियों में व्यस्त रहते थे और देश के संसाधनों पर संप्रदाय विशेष के अधिकार की वकालत करते थे, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परिपाटी को बदलकर हर अवसर पर अपने हिन्दू होने का गर्व के साथ प्रदर्शन किया है। उनके कार्यों में संत परंपरा के प्रति विशेष रुचि भी दिखाई देती है। बताते चलें कि पिछले वर्ष 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ धाम में जगतगुरू आदि शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण किया था। जगतगुरू आदि शंकराचार्य की यह प्रतिमा क्लोराइड से बनी है एवं 35 टन वजनी है।

संत परंपरा को पुनः स्थापित की दिशा में सराहनीय प्रयास

ऐसे में, कहा जा सकता है कि वर्तमान भारत में धर्म के पतन का एक बहुत बड़ा कारण भारत में संत परंपरा का विलोप होना है। भारत में सन्यास ग्रहण कर समाज सेवा के लिए तत्पर होने और तपस्वी जीवन जीने वाले सन्तो के कारण ही सनातन संस्कृति सदैव अक्षुण्ण रही है। उदहारण के तौर पर कहें तो कौटिल्य अगर पैदल भारत भ्रमण पर नहीं निकलते तो उन्हें चंद्रगुप्त जैसा शिष्य नहीं मिलता। ऐसा नहीं है कि सन्यासी जीवन उसी का है, जो घर छोड़ दे।

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वस्तुतः सन्यास एक मनोवैज्ञानिक अवस्था है। गीता के छठे अध्याय के प्रथम श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने सन्यासी और योगी की परिभाषा देते हुए कहा है कि “अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः। स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः।।” इसका अर्थ है, जो फल की लालसा के बिना धर्म का पालन करता है, वह सन्यासी है। ना कि वह जो अक्रिय है अथवा जिसने योगी की भाँति अग्नि त्यज्य जीवन अपनाया है। यदि भारत को विश्व गुरु बनना है, तो हमें अपनी संत परंपरा को पुनः स्थापित करना और इस दिशा में यह सराहनीय प्रयास है।

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