सांसदों के निलंबन के मामले में SC ने महाराष्ट्र सरकार की लगाई क्लास

तानाशाही नहीं चलेगी! 

महाराष्ट्र में काँग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की गठबंधन वाली महा विकास अघाड़ी सरकार ने 5 जुलाई, 2021 को भाजपा के 12 विधायकों को एक साल के लिए निलंबित कर दिया था।हाल हीं में महाराष्ट्र विधानसभा का दो दिवसीय मानसून सत्र शुरू हुआ था, उस दौरान भाजपा के 12 विधायकों पर महाराष्ट्र विधानसभा के पीठासीन सभापति भास्कर जाधव के खिलाफ कथित तौर पर असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करने का आरोप लगाकर यह कार्रवाई की गई थी।

इसपर अब जस्टिस खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और रविकुमार की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि महाराष्ट्र विधानसभा से 12 भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायकों को 1 साल की अवधि के लिए निलंबित करना निष्कासन से भी बदतर है।

पीठ ने यह भी संकेत दिया कि महाराष्ट्र विधानसभा के विधायकों को निलंबित करने का आदेश संविधान के अनुच्छेद 190 (4) के अनुसार असंवैधानिक है, जो यह कहता है कि “यदि किसी राज्य के विधान-मंडल के सदन का कोई सदस्य साठ दिनों की अवधि के लिए, सदन की अनुमति के बिना उसकी सभी बैठकों से अनुपस्थित रहता है, तो सदन उसकी सीट को रिक्त घोषित कर सकता है। बशर्ते कि साठ दिनों की उक्त अवधि की गणना में सदन का सत्रावसान या लगातार चार दिनों से अधिक के लिए स्थगन को नहीं जोड़ा जाएगा।”

पीठ ने आगे टिप्पणी करते हुए कहा कि इस स्थिति से बचा जा सकता था। पीठ ने राज्य के संज्ञान में लाते हुए कहा कि 12 निर्वाचन क्षेत्रों को इतनी लंबी अवधि के लिए बिना प्रतिनिधित्व के नहीं छोड़ा जा सकता है और घटकों को प्रतिनिधित्व करने का अधिकार है।  पीठ ने यह भी बताया कि अगर इस तरह के निरंकुश निलंबन को अनुमति दी जाती है, तो इससे लोकतंत्र में बहुत खतरनाक स्थिति पैदा हो जाएगी। न्यायमूर्ति खानविलकर ने टिप्पणी की- “आज यह 12 है, कल यह संख्या 120 हो सकती है।”

मामले की सुनवाई शुरू होते ही वरिष्ठ अधिवक्ता महाराष्ट्र राज्य के वरिष्ठ अधिवक्ता सीए सुंदरा ने कहा कि अदालत के अंतिम आदेश के बाद विधायकों ने अध्यक्ष के समक्ष आवेदन किया है और उनकी विधिवत सुनवाई की गई है। सुंदरम ने आगे कोर्ट से मामले को 3 सप्ताह के लिए स्थगित करने के लिए कहा ताकि अध्यक्ष के समक्ष आवेदन  के परिणाम को न्यायालय के संज्ञान में लाया जा सके।

विधायकों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी, मुकुल रोहतगी और सिद्धार्थ भटनागर

इस पर आपत्ति जताते हुए विधायकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा कि निलंबन विधानसभा द्वारा किया गया था और इसे केवल विधानसभा ही रद्द कर सकती है।  उन्होंने आगे कहा कि विधानसभा का सत्र अब फरवरी के अंतिम सप्ताह से ही शुरू होने जा रहा है।

जेठमलानी ने तर्क दिया कि इस प्रस्ताव का अनुपालन किसी के भी अधिकार क्षेत्र के बिना है और निलंबन का कार्य भी बिना किसी प्रक्रिया का पालन किए किया गया था। उन्होंने कहा कि इस मामले में नैसर्गिक न्याय का भी घोर उल्लंघन किया गया है। जेठमलानी ने महाराष्ट्र विधानसभा नियमों के ‘नियम 53’ के तहत अदालत का रुख किया, जो एक स्पीकर द्वारा विधानसभा के सदस्यों के निलंबन संबंधी अधिकारक्षेत्र पर विचार करता है।

उन्होंने आगे कहा कि जिस दिन शिकायत दर्ज की गई थी उसी दिन प्रस्ताव पेश किया गया और निलंबित विधायकों को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया था।

विधायक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि सदन और अध्यक्ष नियमों की पुस्तक से बंधे हैं और सदन के पास कोई दंड शक्ति नहीं है। उन्होंने सवाल किया कि अगर सदन को किसी को भी मनमाने तरीके निलंबित करने की शक्ति दी जाती है तो लोकतंत्र कैसे कार्य कर सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, “मान लीजिए कि सदन किसी को 5 साल के लिए प्रतिबंधित करता है तो उनकी शक्तियों की सीमाएं क्या हैं?”

एक अन्य विधायक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ भटनागर ने कहा कि निलंबन निष्कासन से भी बदतर है।  उन्होंने कहा कि निष्कासन अयोग्यता नहीं है।  जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत खाली सीट को छह महीने में भरना होता है।  हालांकि दिए गए मामले में न तो सीटें भरी गई हैं और न ही विधायक अब उन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

इस तर्क को काउंटर करते हुए महाराष्ट्र सरकार के अधिवक्ता सीए सुंदरम ने प्रस्तुत किया कि विधायिका अपने शासन के लिए बनाए गए नियमों के अनुसार कार्य कर सकती है और न्यायालय इन नियमों से विचलित होने पर विधायिका के निर्णय की समीक्षा नहीं कर सकता क्योंकि वे केवल विधायिका के संचालन हेतु प्रक्रियात्मक कानून हैं और मूल नहीं हैं।  उन्होंने प्रस्तुत किया कि जब प्रक्रियात्मक अनियमितताओं की बात आती है तो विधायिका न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अधीन नहीं होती है।  यह संविधान के अनुच्छेद 212 के अधिकार क्षेत्र से बाहर होगा।

सुंदरा ने प्रस्तुत किया कि इस तरह के आचरण के लिए विधायकों को दंडित करने की शक्ति विधायिका में निहित है।

यह शक्ति आंतरिक है। उन्होंने यह भी कहा कि सजा अत्यधिक है या नहीं, यह न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।  उन्होंने प्रस्तुत किया कि विधायिका द्वारा अपने लिए बनाए गए दिशानिर्देशों और अधीनस्थ विधान द्वारा बाध्य दिशानिर्देशों के बीच बहुत अंतर है।

कोर्ट का आदेश और महाराष्ट्र सरकार की हार

कोर्ट ने इस बिंदु पर सवाल किया- “विधकों के निष्कासन की इस विधायी प्रक्रिया का नतीजा यह है कि यह शासन को प्रभावित करने वाला है।  यह एक मजबूर और अनावश्यक अनुपस्थिति है। अनुच्छेद 190 (4) कब लागू होगा?  क्या हम अनुच्छेद 190(4) से ऊपर की सजा दे सकते हैं? कोर्ट ने आगे कहा कि एक विधायक के निलंबन का प्रश्न मूल कानून का विषय है, प्रक्रियात्मक कानून का नहीं

न्यायमूर्ति खानविलकर ने टिप्पणी की, “मौजूदा मामले के तथ्यों के सुनते हुए हम कहेंगे कि बहुत हो गया।  हमें केवल एक ही मुद्दे से निपटना होगा और वह है 6 महीने पहले उन खाली सीटों को भरने का मुद्दा। हम इसे केवल 2 पृष्ठ के आदेश के साथ निपटा देंगे।  हम श्री भटनागर के इस तर्क को स्वीकार करेंगे कि निलंबन निष्कासन से भी बदतर है।”

हालांकि, समय की कमी के कारण इस मामले को मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया है।

किसने दायर की हैं याचिकाएं?

ये याचिकाएं बीजेपी के 12 विधायकों- संजय कुटे, आशीष शेलार, अभिमन्यु पवार, गिरीश महाजन, अतुल भटकलकर, पराग अलावनी, हरीश पिंपले, राम सतपुते, विजय कुमार रावल, योगेश सागर, नारायण कुचे और कीर्तिकुमार बांगड़िया के निलंबन को चुनौती देते हुए दायर की गई हैं। इस याचिका में कहा गया है कि महाराष्ट्र विधान परिषद नियम के नियम 59 के तहत अध्यक्ष के पास अभद्र व्यवहार के आधार पर सदस्यों को निलंबित करने का एकमात्र अधिकार है जबकि इस मामले में, निलंबन विधानसभा के एक प्रस्ताव के बाद हुआ है।

सुनवाई की अंतिम तिथि पर न्यायालय ने 11 जनवरी, 2022 को एक नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया था कि “मामले के लंबित रहने से पक्षकारों द्वारा सदन का रुख नहीं किया जाएगा, और सदन इसे ध्यान में रख सकता है।”

न्यायालय का यह आदेश महाविकास अघाड़ी  सरकार की हार है क्योंकि इन 12 विधायकों का निलंबन महाराष्ट्र विधान सभा में प्रस्ताव पेश करके किया गया था। इसके साथ साथ ही ये सदन के विधायी  शक्ति के निरंकुशता पर भी लगाम लगता है। और अंत में सबसे बड़ी बात- एक विधायक के निलंबन का प्रश्न मूल कानून का विषय है, प्रक्रियात्मक कानून का नहीं

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