हिंदुत्व के गौरव थे बाला साहेब ठाकरे, लेकिन उद्धव ने उनकी विरासत का ‘कांग्रेसीकरण’ कर दिया!

हिंदुत्व की ललकार थे बाला साहेब, नहीं कर सकता था कोई सामना!

Bala Saheb Thakeray

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मुंबई अपने शुरुआती दिनों से देश की आर्थिक राजधानी रहा है। देश का भाग्य संवारने में इस शहर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। मुंबई में जब से आर्थिक गतिविधियां औद्योगिकरण की गति से गतिशील होना शुरू हुई, तभी से ट्रेड यूनियन अर्थात् मजदूर संघ मुंबई की राजनीति में हावी रहे। वर्ष 1909 में तिलक की गिरफ्तारी पर ट्रेड यूनियन में इतनी बड़ी हड़ताल हुई थी, जिसकी चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई। 1970 का दशक आते-आते ये ट्रेड यूनियन पूरी तरह से वामपंथी प्रभाव में आ चुके थे और रूस तथा चीन जैसी विदेशी शक्तियों के हाथों की कठपुतली बन गए थे।

तब सबसे बड़ा सवाल था कि इस ट्रेड यूनियन की शक्ति को कौन तोड़ सकता है। इसी समय महाराष्ट्र की राजनीति में उदय होता है बाला साहेब ठाकरे का। 19 जून 1966 को मशहूर कार्टूनिस्ट बाला साहेब ठाकरे (Bal Thackeray) ने अपनी राजनीतिक पार्टी का गठन किया था और वहीं से शिवसेना का जन्म हुआ। हालांकि, पूरे देश में ट्रेड यूनियन के कम्युनिस्टीकरण को रोकने में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, किंतु मुंबई की बात करें तो अपनी राजनीति के शुरुआती दिनों में बालासाहेब ठाकरे ने कम्युनिस्टों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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हिंदुत्व विरोधी शक्तियों को कुचलने में निभाई अहम भूमिका

राजनीतिक पार्टी बनाने के लिए बालासाहेब ने भूमिपुत्र का नारा दिया था। शिवसेना के गठन के समय बालासाहेब ठाकरे ने नारा दिया था, ”अंशी टके समाजकरण, वीस टके राजकरण।” यानि 80 प्रतिशत समाज सेवा और 20 प्रतिशत राजनीति। शिवसेना के गठन से पहले बाल ठाकरे एक अंग्रेजी अखबार में कार्टूनिस्ट थे और उनके पिता ने मराठी बोलने वालों के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन किया था। उन्होंने बॉम्बे में दूसरे राज्यों के लोगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए ‘मार्मिक’ नाम से अखबार शुरू किया था। महाराष्ट्र के मूल निवासियों के मुद्दे को हवा देने के चलते गठन के कुछ साल बाद ही शिवसेना काफी लोकप्रिय हो गई। इस दौरान दूसरे राज्यों से व्यापार करने महाराष्ट्र आए लोगों पर काफी हमले भी हुए। हालांकि, 1990 आते-आते पार्टी मराठी मानुष के मुद्दे से हटकर हिन्दुत्व की राजनीति करने लगी।

1990 का दौर वह समय था, जब मुस्लिम माफिया मुंबई को अपनी गिरफ्त में ले चुके थे। दाऊद इब्राहिम आर्थिक राजधानी को अपनी मुट्ठी में ले रहा था, उस समय बाला साहेब ठाकरे ने मुस्लिम माफिया का विरोध किया। वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद महाराष्ट्र में हुए दंगों में मुस्लिम समुदाय द्वारा हिंदू बस्तियों को निशाना बनाया जाने लगा। तब बाल ठाकरे और शिवसैनिक खुलकर हिंदुओं के पक्ष में उतरे, बाला साहेब ने इस तथ्य को कभी छुपाया नहीं, बल्कि गर्व के साथ इसे दुनिया के सामने रखा। हिंदुत्व विरोधी हर शक्ति को कुचलने में बाला साहेब ठाकरे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने आतंकी भिंडरावाले को मुंबई आने की खुली चुनौती दी थी और उसका खुला विरोध भी किया था।

उनके इशारे पर घूमती थी महाराष्ट्र की राजनीति

बाला साहेब महाराष्ट्र को एक हिंदू राज्य बताते थे। उनकी छवि एक कट्टर हिंदू नेता के तौर पर रही और संभवत: इसी वजह से उन्हें हिंदू हृदय सम्राट भी कहा जाने लगा था। वे वैलेंटाइन डे को हिंदू धर्म और संस्कृति के लिए खतरा मानते थे। उन्होंने कट्टरपंथियों को मुंबई से बाहर चले जाने को कहा था। खासकर वो बंग्लादेश से आने वाले मुस्लिम शरणार्थियों के खिलाफ थे। करीब 4 दशक तक महाराष्ट्र की राजनीति उनके इशारे पर घूमती रही। हमेशा चांदी के सिंहासन पर बैठते थे और अपनी शर्तों पर जीते थे। उनके एक इशारे में रात में ना थमने वाली मुंबई ठहर जाती थी। हिंदुत्व के प्रखर वक्ता बाला साहेब के कारण ही महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी राजे की परंपरा और सोच उस दौर में भी अक्षुण्ण रही, जब वामपंथी इस देश को दीमक की तरह चाट रहे थे। यही कारण था कि बाला साहेब की छवि महाराष्ट्र और शिवसेना से बड़ी थी, उन्हें पूरे भारत में हिन्दू हृदय सम्राट माना जाता था। किंतु आज शिवसेना बाला साहेब के विचारों से कितना भटक गई है यह बताने की आवश्यकता नहीं।

कांग्रेस और NCP को नहीं करते थे पसंद

ध्यान देने वाली बात है कि जिस एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर शिवसेना महाराष्ट्र में सरकार चला रही है, वहीं कांग्रेस और एनसीपी हमेशा शिवसेना सुप्रीमो रहे बाला साहेब ठाकरे के निशाने पर रहते थे। सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भी उन्होंने कई बार कटाक्ष किया था। सपाट बातें और अपने तीखे अंदाज के लिए पहचाने वाले बाल ठाकरे को महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार के सबसे बडे़ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाता था। हालांकि, कथित तौर पर दोनों की व्यक्तिगत दोस्ती बेहद गहरी थी, लेकिन राजनीतिक तौर पर दोनों एक-दूसरे पर निशाना साधने से पीछे नहीं हटते थे।

वर्ष1999 में एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के साथ गठबंधन को लेकर बाल ठाकरे ने कहा था कि मैं कैसे किसी स्काउंड्रल (दुष्ट) के साथ जा सकता हूं। मैं किसी भी दुष्ट व्यक्ति के साथ नहीं जा सकता, चाहे वो जो भी हो। एक आदमी जिसका हाथ वाजपेयी जी की सरकार गिराने में रहा हो, मैं उसके साथ हाथ कैसे मिला सकता हूं? दुश्मन तो दुश्मन ही होता है। बाल ठाकरे का इशारा शरद पवार की तरफ था।

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वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस के धुर विरोधी रहे बाला साहेब ने सोनिया गांधी की विदेशी छवि के आगे झुकने वाले कांग्रेसियों को कभी सम्मान नहीं दिया। बाल ठाकरे ने सोनिया गांधी पर कई बार निशाना साधा था। उन्होंने सोनिया गांधी के बारे में कहा था कि ‘आखिर उन्हें इस देश से प्यार क्यों होगा? उनका इस देश के लिए योगदान क्या है?’ दरअसल, उस समय तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह की उम्र को लेकर विवाद चल रहा था। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया था, उस पर बाल ठाकरे ने कहा था कि देखिए देश में क्या चल रहा है? सेनाध्यक्ष की उम्र को लेकर विवाद हो रहा है, मामला कोर्ट में है। आखिर किसकी प्रतिष्ठा पर सवाल है? सोनिया गांधी की प्रतिष्ठा का सवाल तो नहीं है क्योंकि वो तो विदेशी हैं।

बाल ठाकरे ने राहुल गांधी को भी निशाने पर लिया था। वर्ष 2012 में जब राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने को लेकर अटकलें चल रही थी, तब बाल ठाकरे ने कहा था कि राहुल गांधी कल पैदा हुए और आज प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। बाल ठाकरे कांग्रेस के धुर विरोधी थे, लेकिन आज शिवसेना उनके विचारों को रौंदते हुए अपने धुर विरोधियों के साथ सरकार में है।

अब हिंदुत्व की राह से भटक चुकी है शिवसेना!

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना अब कांग्रेस और एनसीपी की कठपुतली के समान हो गई है! राज्य में हिंदू विरोधी गतिविधियां भी काफी तेजी से बढ़ी है। खबरों की मानें तो मौजूदा समय में मराठा साम्राज्य की प्रथम राजधानी रहे रायगढ़ में अवैध मस्जिद का निर्माण हो रहा है। कभी कम्युनिस्ट देश के विकास में बाधक बने थे तो शिवसेना ने उनका विरोध किया था, आज शिवसेना के कारण बुलेट ट्रेन जैसी योजना अटकी हुई है, मराठवाड़ा में एक्सप्रेस-वे के कार्य में दिक्कत आ रही है! हालांकि, गडकरी की डांट के बाद अब कार्य पुनः आरंभ हो चुका है, किन्तु यह सब परिवर्तन शिवसेना की राजनीति में हुए व्यापक बदलाव को दिखाते हैं। शिवसेना हिंदुत्व की राजनीति से भटक चुकी है और यह भटकाव केवल सामाजिक और राजनीतिक नहीं है, बल्कि आर्थिक नीतियों में भी दिख रहा है। यही कारण है कि ठाकरे रत्नागिरी ऑयल रिफाइनरी के कार्य को अटका रही है, हर वो कार्य कर रही है जो कांग्रेस को पसंद आए। मूलतः शिवसेना कांग्रेस की परिपाटी पर आ चुकी है!

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