क्रिकेट मुख्य रूप से औपनिवेशिक शक्ति ब्रिटेन की देन है। धीरे-धीरे यह ब्रिटेन के विभिन्न उपनिवेशों में फैल गया। शुरुआत में इसे व्यवसाय की तरह नहीं, बल्कि अंग्रेजी पदाधिकारियों, कंपनी के शासकों, प्रशासकों और सैन्य अफसरों द्वारा छुट्टी और खाली समय में मन बहलाने के लिए खेला जाता था। रसूखदार लोग गेंद फेंकने के लिए किसी दास, गुलाम या फिर परिचारक को काम पर लगाते थे। गेंदबाजी करना दोयम दर्जे का काम माना जाता था।
तत्पश्चात क्रिकेट जब अंतराष्ट्रीय खेल बना, नियम बनें और इसका व्यवसायीकरण हुआ, तब गेंदबाजी इस खेल का अभिन्न हिस्सा तो बन गई पर गेंदबाजों की स्थिति जस की तस रही। आईसीसी के नियम, अत्यधिक क्रिकेट मैचों का आयोजन, पिच की बनावट और टीम संयोजन ने इस खेल को आज ‘Gentleman Game’ से ‘Batsman Game’ में परिवर्तित कर दिया है। आज हम अपने इस लेख के माध्यम से चार कारणों पर चर्चा करेंगे, जिन्होंने वेस्ट इंडीज, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के द्वारा स्थापित की गई तेज गेंदबाजी की विरासत को किस तरह सुनियोजित तरीके से खत्म कर दिया।
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ICC का गेंदबाज विरोधी नियम
सबसे पहले आप हाल के दिनों में आईसीसी द्वारा लागू किए गए कुछ नियमों को देखिए। ICC ने आधिकारिक तौर पर क्रिकेट गेंद को पॉलिश करने के लिए लार के उपयोग को अवैध कर दिया है। यह तेज गेंदबाजों को हतोत्साहित करने और इस खेल को बल्लेबाज केंद्रित बनाने की ओर एक बड़ा कदम है! आईसीसी की मुख्य कार्यकारी समिति की सिफारिशों के आधार पर खेलने के नियमों में कई चीजों को “अंतरिम परिवर्तन” के रूप में वर्णित किया जा चुका है, इन्हीं परिवर्तनों में शामिल है थूक पर प्रतिबंध, जो COVID-19 के मातहत लिया गया है।
इसमें कहा गया है कि “खिलाड़ियों को गेंद को चमकाने के लिए लार के इस्तेमाल की इजाजत नहीं होगी। यदि कोई खिलाड़ी या गेंदबाज गेंद पर लार लगाता है, तो अंपायर समायोजन की प्रारंभिक अवधि के दौरान कुछ नरमी के साथ स्थिति का प्रबंधन करेंगे, लेकिन बाद में टीम को चेतावनी मिलेगी जिसे अनिवार्य रूप से मानना होगा।” साथ ही इसमें स्पष्ट किया गया है कि “एक टीम को प्रति पारी में दो चेतावनी जारी की जा सकती है, लेकिन गेंद पर लार के बार-बार इस्तेमाल से पांच रन का जुर्माना होगा। जब भी गेंद पर लार लगाई जाती है, तो अंपायरों को निर्देश दिया जाएगा कि वे खेल शुरू होने से पहले गेंद को साफ करें।”
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महान तेज गेंदबाज वसीम अकरम ने इस नियम के बारे में कहा है कि अब यह खेल बल्लेबाजों के पक्ष में अधिक झुक गया है। अकरम ने लार के फैसले के बारे में कहा, “यह गेंदबाजों को रोबोट बना देगा और उन्हें बिना स्विंग के गेंदबाजी के लिए प्रेरित भी करेगा। यह गेंदबाजों के लिए एक विचित्र स्थिति है, क्योंकि गेंदबाज गेंद को चमकाने और इसे स्विंग करने के लिए प्रायः लार का उपयोग करते है।” कूकाबुरा कंपनी ने गेंद को चमकाने के लिए मोम के इस्तेमाल की वकालत की थी, लेकिन आईसीसी ने नियमों में कोई बदलाव नहीं किया। हालांकि, ब्रेट ली और सचिन तेंदुलकर दोनों ने ही मोम के इस्तेमाल की वकालत की थी।
दूसरा नियम यह है कि मैच में उत्पन्न होने वाले किसी भी विवाद को समाप्त करने के लिए टेस्ट टीमों को एक पारी में एक अतिरिक्त डीआरएस समीक्षा भी मिलेगी। वनडे और टी20 मैचों में यह एक से बढ़कर दो हो जाएगा। इस नियम के बारे में सभी क्रिकेट प्रेमी स्पष्ट रूप से जानते होंगे कि इसमें किसी भी दुविधा की स्थिति में फायदा बल्लेबाजों को मिलता है न कि गेंदबाजों को। पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा सीमाएं छोटी हो गई हैं और बल्ले बड़े हो गए हैं, लेकिन गेंदबाज का एकमात्र हथियार, गेंद बिना परिवर्तन के जस के तस बना हुआ है।
गेंदबाज विरोधी पिच
अत्याधुनिक कवर ने सतहों को बल्लेबाजी के लिए और बेहतर बना दिया है और ड्रॉप-इन ने उन्हें और भी परिष्कृत कर दिया है, जिससे गेंद बल्ले को चूमते ही सीमा रेखा के बाहर चली जाए। ऊपर से इन्हें रोकने वाले क्षेत्ररक्षकों को भी प्रतिबंधित कर दिया है। टेस्ट में भी फील्ड प्लेसमेंट पर प्रतिबंध लगाया गया और स्कोरिंग को अधिकतम करने के लिए शॉर्ट फॉर्मेट में उनका इस्तेमाल किया गया था। आज के परिदृश्य में किसी भी ऐसे नियम परिवर्तन के बारे में सोचना मुश्किल है, जो आड़े-तिरछे स्कोरिंग को प्रतिबंधित करे या फिर विकेटों की संख्या को अधिकतम कर गेंदबाजों को प्रेरित करे।
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गेदबाजों की कम होती गति
दक्षिण अफ्रीका के लांस क्लूजनर ने वर्ष 1996/97 में भारत के खिलाफ 154 km/h की रफ्तार से गेंदबाजी की थी। क्लूजनर के करियर की शुरुआत में उन्हें एलन डोनाल्ड से भी तेज कहा जाता था। पर, जब उनके तेज गेंदों पर लगने वाले अपारंपरिक शॉट पर छक्का लगने लगा, तब से उन्होंने मध्यम गति के गेंदबाज बनने की ठानी। उसके बाद उनका औसत लगभग 120 km/h हो गया। यही रणनीति 150 की रफ्तार से गेंद फेंकने वाले मुनाफ पटेल और जहीर खान ने भी अपनाई। एक समय में अजीत आगरकर भी 149 km/h की रफ्तार से गेंद फेंकते थे, पर अपने करियर के अंतिम पड़ावों में उन्होंने भी 130 km/h की रफ्तार पकड़ ली। स्विंग के किंग भुवनेश्वर कुमार के रफ्तार में भी उल्लेखनीय कमी आई है। अगर आप विदेशी खिलाड़ियों की बात करें, तो ब्रेट ली, मैक्ग्रा, जॉनसन की पेस विरासत से सजी ऑस्ट्रेलिया के कमिंस, हेजलवुड और स्टार्क ने भी अपनी रफ्तार कम कर ली। यही हाल दक्षिण अफ्रीका के तेज गेंदबाज रबाड़ा जैसे खिलाड़ियों का भी है।
प्रेरणा की कमी
गौरतलब है कि अत्याधुनिक सतही पिचों पर गेंदबाज, बल्लेबाज के अनुकूल नियमों के बीच गेंदबाजी करते हैं, बल्लेबाजों के आड़े-तिरछे शॉट पर बेतहाशा मार सहते हैं। न तो 21 गज की पिच उनके अनुकूल होती है और न ही दिन प्रतिदिन छोटी होती जा रही सीमा रेखा। उदाहरण के लिए आप चिन्नास्वामी या मुंबई के वानखेड़े के मैदानों को देख सकते हैं। ऊपर से ये छोटी होती सीमा रेखा जैसे स्वयं गेंद को सीमा के बाहर फेंकने के फिराक में रहती है। नियम और क्षेत्ररक्षण बंधन भी बल्लेबाजों के अनुकूल हो गया है और ऊपर से सीमित ओवर के खेल ने तो जैसे कहर बरपा रखा है। क्रिकेट जगत में सुपर-10 मैचों को भी मान्यता देने की चर्चा जोरों पर है।
अतः अत्यधिक दबाव और बल्लेबाजी अनुकूलन परिस्थिति में मार से बचने के लिए गेंदबाज अपनी गति धीमी कर देते हैं, ताकि गेंद को सीमा रेखा के बाहर पहुंचाने के लिए बल्लेबाजों को ताकत लगानी पड़े। पर, आज के हालात ने गेंदबाजों को निःशस्त्र कर दर्शकों के मनोरंजन हेतु भेदभाव वाले एक प्रतिकूल परिस्थिति में खड़ा कर दिया गया है। प्रेरणा की इस कमी से तेज गेंदबाज पैदा होने बंद हो गए हैं, जो कि काफी दुखद है!
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