इस बार का गणतंत्र दिवस उत्सव कुछ ‘हट के’ था, जानें कैसे?

नया भारत अपनी संस्कृति को गले लगाता है, उससे भागता नहीं!

गणतंत्र दिवस परेड

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“मन लेके आया माता रानी के भवन में,
भवन में, मन लेके आया माता रानी के भवन में!”
“जय भोलेनाथ जय हो प्रभु, सबसे जगत में ऊंचा है तू!”

गणतंत्र दिवस परेड – कल्पना कीजिए, इन उच्चारणों के साथ यदि राजपथ पर झांकियां निकले तो? आप भी सोचेंगे – असंभव! लेकिन ऐसा ही कुछ इस गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर देखने को मिला है। गणतंत्र दिवस के 73वें वर्षगांठ पर इस वर्ष का उत्सव न केवल कुछ हटके था, अपितु भारतवर्ष के वास्तविक शौर्य को शत् शत् नमन भी प्रदान करते हुए दिखाई दे रहा था।

गणतंत्र दिवस परेड पर इस वर्ष एक अलग ही दृश्य देखने को मिला। पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी कोरोना के कहर के कारण दुर्भाग्यवश कोई मुख्य अतिथि उपस्थित नहीं था, लेकिन इससे इस समारोह की भव्यता पर कोई भी अंतर नहीं पड़ता। पड़ता भी कैसे – एक ओर भारतीय नौसेना ने अपनी झांकी में 1946 के नौसैनिक विद्रोह को भव्यता के साथ प्रदर्शित किया, तो वहीं दूसरी ओर राफेल फाइटर जेट्स के एक विशेष स्क्वाड्रन ने भी समारोह में अपनी भव्य उपस्थिति दर्ज कराई।

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जम्मू कश्मीर की झांकी में मां वैष्णो देवी 

लेकिन इस समारोह में ऐसा भी क्या भव्य था, जिसने इसे अन्य समारोहों से अलग और अनोखा बनाया? इसे दो शब्दों में समाहित करना हो, तो कहेंगे– INA और हिन्दुत्व। गणतंत्र दिवस की यह परेड नेताजी सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी और सनातन संस्कृति को काफी हद तक समर्पित थी। वो कैसे? उदाहरण के लिए जम्मू-कश्मीर के इस झांकी को ही देख लीजिए –

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जी हाँ, आपने बिल्कुल ठीक पहचाना। यह कोई और नहीं, जम्मू के निकट कटरा में स्थित माता वैष्णो देवी के दरबार की झांकी है, जहां हर साल लाखों करोड़ों श्रद्धालु मां शेरावाली यानी दुर्गा माता के दर्शन हेतु पधारते हैं। ये झांकी न केवल एक नए भारत का प्रतीक है, अपितु अनुच्छेद-370 के हटने के बाद जम्मू कश्मीर में हो रहे सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रतीक है। जिस जम्मू-कश्मीर को जबरदस्ती झूठी धर्मनिरपेक्षता को गले लगाने के लिए बाध्य किया जाता था, अब वह अपनी मूल संस्कृति को पुनः अपना रहा है और वर्तमान झांकी इसका सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण है!

गणतंत्र दिवस परेड – हरियाणा की अनोखी झांकी

परंतु ये तो कुछ भी नहीं था। हरियाणा ने एक अनोखी झांकी निकाली, जो महाभारत को शत् शत् नमन करती हुई दिखाई दी। अंतर बस इतना था कि इस बार रथ में वीर अर्जुन के स्थान पर हरियाणा से निकल रहे विभिन्न खिलाड़ियों के प्रतीक चिह्न थे, जिन्होंने ओलंपिक से लेकर अनेकों विश्व चैम्पियनशिप में भारत का गौरव विद्यमान रखा –

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ठीक इसी भांति पिछले वर्ष श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की भव्यता को प्रदर्शित करने के बाद उत्तर प्रदेश ने इस वर्ष ने काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर की भव्यता को प्रदर्शित किया, जिससे स्पष्ट हुआ कि नए भारत में अपने सांस्कृतिक विरासत को गर्व से दिखाने में कोई हिचक नहीं होगी। हो भी क्यों, जब स्वयं संस्कृति मंत्रालय ऐसी झांकी लेकर सामने आए –

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संस्कृति मंत्रालय ने महर्षि अरविंद यानि अरबिंदो घोष के जन्मदिवस के 150 वर्ष पूर्ण होने होने के अवसर पर एक भव्य झांकी के रूप में उनके विचारों की स्तुति की। महर्षि अरविन्द घोष एक महान विचारक थे और गरम दल के प्रख्यात लाल-बाल-पाल तिकड़ी के समर्थक भी थे। भले ही उन्होंने संन्यास ले लिया था, परंतु वे अपने कर्तव्य पथ और अपनी संस्कृति से कभी विमुख नहीं हुए। इसी नए भारत का प्रतीक वर्तमान गणतंत्र दिवस समारोह में देखने को मिला, जो अपने संस्कृति से भागता नहीं, उसे गले लगाता है और ये नया भारत है, जो अब झुकेगा नहीं!

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