वर्षा ऋतु के त्यौहार, आध्यात्मिक महत्त्व,और वर्षा की क्षेत्र वार स्थिति

वर्षा ऋतु

भारत देश ऋतुओं का देश है. यहां साल में छः ऋतुएं आती हैं जिनमे से वर्षा ऋतु का अपना एक खास महत्त्व होता है. यह ऐसी ऋतु है जो लगभग सभी लोगों की पसंदीदा होती है क्योंकि यह झुलसा देने वाली गर्मी के बाद ये राहत का एहसास लेकर आती है. वर्षा ऋतु जुलाई से शुरू होती है अर्थात सावन भादों के महीनों में होती है. यह मौसम भारतीय किसानों के लिए बेहद ही हितकारी एवं महत्वपूर्ण है.

वर्षा ऋतु एक बहुत ही सुहाना ऋतु है.इस मौसम में चारो ओर हरियाली छा जाती है, चिड़िया चहचहाने लगते हैं. वहीं वर्षा ऋतु किसानों के लिए वरदान साबित होती है. वे इस ऋतु में खरीफ़ की फ़सल बोते हैं. वर्षा ऋतु से धरती की प्यास बुझती है तथा भूमि का जलस्तर बढ़ जाता है. वर्षा ऋतु गर्मी से झुलसते जीव-समुदाय को शांति एवं राहत पहुंचाती है. लोग वर्षा ऋतु का भरपूर आनंद उठाते हैं.

अधिक वर्षा वाले क्षेत्र

पश्चिमी तटीय भाग हिमालय , दक्षिणावर्ती तलहटी में सम्मिलित राज्य- असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, पश्चिम बंगाल का उत्तरी भाग, पश्चिमी तट के कोंकण, मालाबार तट (केरल), दक्षिणी किनारा, मणिपुर एवं मेघालय इत्यादि सम्मिलित हैं. यहाँ वार्षिक वर्षा की मात्रा 200 सेमी. से अधिक होती है. विश्व की सर्वाधिक वर्षा वाले स्थान मासिनराम तथा चेरापूंजी मेघालय में ही स्थित हैं.

साधारण वर्षा वाले क्षेत्र

इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा की मात्रा 100 से 200 सेमी. तक होती है. यह मानसूनी वन प्रदेशों का क्षेत्र है. इसमें पश्चिमी घाट का पूर्वोत्तर ढाल, पश्चिम बंगाल का दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र, उड़ीसा, बिहार, दक्षिणी-पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा तराई क्षेत्र के समानान्तर पतली पट्टी में स्थित उत्तर प्रदेश पंजाब होते हुए जम्मू कश्मीर के क्षेत्र शामिल हैं. इन क्षेत्रों में वर्षा की विषमता 15 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक पायी जाती है. अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि के कारण फसलों की बहुत हानि होती है.

न्यून वर्षा वाले क्षेत्र

इसके अन्तर्गत मध्य प्रदेश, दक्षिणी का पठारी भाग गुजरात, उत्तरी तथा दक्षिणी आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, पूर्वी राजस्थान, दक्षिणी पंजाब, हरियाणा तथा दक्षिणी उत्तरी प्रदेश आते हैं. यहाँ 50 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा होती है. वर्षा की विषमता 20 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक होती है.

अपर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्र

इन क्षेत्रों में होने वाली वार्षिक वर्षा की मात्रा 50 सेमी. से भी कम होती है. कच्छ, पश्चिमी राजस्थान, लद्दाख आदि क्षेत्र इसके अन्तर्गत शामिल किये जाते हैं. यहाँ कृषि बिना सिंचाई के सम्भव नहीं है.

वर्षा ऋतु के फायदे

बारिश का मौसम सभी को अच्छा लगता है क्योंकि यह सूरज की तपती गर्मी से राहत देकर एक ठंडक एहसास कराता है. यह पेड़, पौधे, घास, फसल और सब्जियों आदि को बढ़ने में मदद करता है. यह मौसम जानवरों और पक्षियों के लिए बहुत अच्छा होता है क्योंकि उन्हें चरने के लिये ढेर सारी घास और पीने का पानी प्राप्त होता है. सभी प्राकृतिक संसाधन जैसे नदी और तालाब आदि पानी से भर जाते है.

वर्षा ऋतु के नुकसान

वर्षा ऋतु में मिटटी गीली हो जाती है जिससे कीचड और गन्दगी फ़ैल जाती है.वर्षा अधिक होने से आने जाने में दिक्कत होती है.वहीं रोड़ो पर पानी भर जाता है.अधिक वर्षा से बाढ़ का खतरा रहता है. बड़े स्तर पर संक्रामक बीमारियों (विषाणु, फफूंदी और बैक्टीरिया से होने वाली) के फैलने का खतरा बढ़ जाता है. मच्छर पैदा हो जाते हैं.

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वर्षा ऋतु में आने वाले त्योहार

वर्षा ऋतु को तीज-त्योहारों का मौसम भी कहा जाता है. जैसे:
रक्षाबंधन, तीज, जन्माष्टमी, ईद उल जुहा, प्रकाश वर्ष, मुहर्रम, ओणम, गणेश पूजा जैसे अन्य त्योहार भारत में इस ऋतु में आते हैं.

आध्यात्मिक महत्व

वर्षा ऋतु को वर्षाकाल, वर्षोमास, चौमास अथवाचातुर्मास के नामों से भी जाना जाताहै. छह ऋतुओं में यदि वर्षा ऋतु नहीं, तो बाकी की ऋतुएं महत्वहीन हो जाती हैं. वर्षाकाल से ही हमारा ऋतु चक्र संभव हो पाता है. वर्षा न हो तो सूखा और अकाल पड़ना अवश्यंभावी है. वर्षाकाल आते ही कुछ स्वाभाविक बदलाव प्रकृति में होने लगते हैं, जिनमें पर्यावरण का परिवर्तन सबसे प्रमुख है.

इन दिनों प्रकृति की समस्त कृपा हम पर बनी रहती है. शारीरिक दृष्टि से जप, तप, स्वाध्याय और मनन-चिंतन इस ऋतु में आवश्यक है, क्योंकि प्रकृति का परिवर्तन हमारे शरीर को प्रभावित करता है. अत:वर्षाकाल हमारे जीवन का सुनहरा अवसर है. इस से लाभ प्राप्त करने के लिए हमें सदैव तत्पर रहना चाहिए. आशा करते है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा एवं ऐसे ही लेख और न्यूज पढ़ने के लिए कृपया हमारा ट्विटर पेज फॉलो करें.

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