वर्तनी क्या है, किसे कहते हैं? और वर्तनी के नियम

वर्तनी

वर्तनी क्या है (Vartani kya hai)

वर्तनी- लिखने की रीति को वर्तनी (Vartani) या अक्षर कहते हैं. वर्तनी को अक्षर या स्पेलिंग भी कहते हैं. किसी भी भाषा की समस्या ध्वनियों को सही ढंग से उच्चारित करने के लिए ही वर्तनी की एकरूपता स्थिर की जाती है.

जिस भाषा की वर्तनी (Vartani) में अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं की ध्वनियों को ग्रहण करने की जितनी अधिक शक्ति होगी, उस भाषा की वर्तनी (Vartani) उतनी ही समर्थ समझी जायेगी. अतः हम कह सकते हैं कि वर्तनी का सीधा सम्बन्ध भाषागत ध्वनियों के उच्चारण से है.

उच्चारण

हिन्दी में जो बोला जाता है वही लिखा जाता है.वहीं वर्तनी का सीधा संबंध उच्चारण से होता है. यदि उच्चारण अशुद्ध होता है तो वर्तनी भी अशुद्ध होती है. प्रायः अपनी मातृभाषा या बोली के कारण तथा व्याकरण संबंधी ज्ञान की कमी के कारण उच्चारण में अशुद्धियाँ आ जाती हैं जिसके कारण वर्तनी में भी अशुद्धियाँ आ जाती हैं.

संस्कृत भाषा के मूल श्लोकों को अदधृत करते समय संयुक्ताक्षर पुरानी शैली से भी लिखे जा सकेंगे. जैसे:संयुक्त, चिह्न, विद्या, चच्चल, विद्वान, वृद्ध, द्वितीय, बुद्धि आदि.
हम अब आपको कुछ शब्द का उदाहरण देते हैं जिनकी शुद्ध और अशुद्ध वर्तनी मौजूद है.

शुद्ध और अशुद्ध वर्तनी मौजूद है.

अशुद्ध                         शुद्ध

अर्यावर्त                       आर्यावर्त

अवाज                         आवाज

अकाश                         आकाश

अजमाइश                     आजमाइश

अहार                           आहार

नदान                           नादान

भगीरथी                         भागीरथी

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वर्तनी के नियम

1. वर्तनी में परसर्ग / कारक चिन्ह का प्रयोग
परसर्ग, संज्ञा से अलग लिखा जाता है, सर्वनाम के साथ जुड़ा रहता है. किन्तु लगातार दो परसर्ग रहे तो पहला सर्वनाम से जुड़ा रहेगा और दूसरा उससे अलग.
उदाहरण-
मै ने गलती नही की थी.
मैंने गलती नहीं की थी.

2. वर्तनी में हलन्त का प्रयोग
मान‌् /वान‌् /हान‌् प्रत्ययान्त शब्दो में हलन्त का प्रयोग अवश्य होना चाहिए.
जैसे- श्रीमान‌् ,आयुष्मान‌् , महान‌्

त‌्/अम‌्/उत‌् प्रत्ययान्त तत्सम शब्दों में हलन्त का प्रयोग किया जाता है.
जैसे- विद‌्या , शुद्ध

3. योजक चिन्ह का प्रयोग
दो शब्दों में परस्पर संबंध स्पष्ट करने के लिए तथा उन्हें जोड़कर लिखने के लिए योजक-चिह्न (–) का प्रयोग किया जाता है.
तत्पुरुष और द्वंद समास दोनों पदों के बीच में : गीता- संगीता, माता-पिता , खरा-खोटा.
मध्य के अर्थ में : कालका-हावड़ा-मेल .
तुलना सूचक सा/सी/से के पहले : तुम-सा, मीरा-सी भक्त .
विभिन्न शब्द (युग्मों में)-भीड़ – भाड़ , डर-वर , पानी – वानी

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4. वर्तनी में  रेफ चिन्ह का प्रयोग
रेफ़ “र् ” का ही रूप है. जिस वर्ण के बाद “र् ” का झटके से उच्चारण हो, ठीक उस वर्ण के बदले वर्ण पर “र् ” का प्रयोग किया जाता है.
जैसे- गर्म , मर्म , वर्ष‌ , शर्म

5. वाला / वाली / वाले/ कर आदि प्रत्ययो का प्रयोग
वाला/ वाली/वाले का प्रयोग विशेषण बनाने के लिए और कर का प्रयोग पूर्व कालीन क्रिया या क्रिया विशेषण बनाने के लिए होता है.
जैसे- दूधवाला , चायवाला , सोकर ,बैठकर

6. ” कि ” का प्रयोग दो शब्दो को जोड़ने के लिए , दो पदो के बीच संबंध दर्शाने और ” करना ” क्रिया के भूतकालिक रूप में प्रयोग किया जाता है.
जैसे – मोहन की गाय
बेलों की कथा
महाराणा प्रताप ने लड़ाई नहीं की .

7. ढ एवम ढ़ का प्रयोग
” ढ़ ” का प्रयोग किसी शब्द के मध्य या अन्त भाग में किया जाता है. जबकि ” ढ ” का प्रयोग शब्द के शुरू में किया जाता है.
जैसे- गढ़ना , पढ़ना , ढलना आदि.

8. ” श ” , ” ष ” और ” स ” का प्रयोग
• यदि अ/आ से भिन्न स्वर रहे तो ” ष ” का प्रयोग किया जाता है जैसे_ विषम, आकर्षित, धनुष, पुरुष, आभूषण

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• ” ट ” वर्ग के पहले ” ष ” का प्रयोग होता है
जैसे_ विशिष्ट ,शिष्ट ,कष्ट, भ्रष्ट ,नष्ट

• वर्तनी में ऋ के बाद ” ष ” का प्रयोग होता है.
जैसे_ कृषि ,वृष्टि ,ऋषि

• आगे ” च ” वर्ग रहने पर ” श ” का प्रयोग होता है.
जैसे_ निश्छल

• ” श ” और ” ष ” दोनो का एक साथ प्रयोग हो तो पहले ” श ” का फिर ” ष ” का प्रयोग होता है.
जैसे- विशेष , शोषण , शीर्षक , विशेषण

• वर्तनी में आगे ” त ” वर्ग रहने पर ” स ” का प्रयोग होता है.
जैसे – विस्तार , निस्तार

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9. अनुस्वार और चन्द्रबिन्दु का प्रयोग
अनुस्वार के उच्चारण में ‘अं’ की ध्वनि मुख से निकलती है. हिंदी में लिखते समय इसका प्रयोग शिरोरेखा के ऊपर बिंदु लगाकर किया जाता है. इसका प्रयोग ‘अ’ जैसे किसी स्वर की सहायता से ही संभव हो सकता है; जैसे – संभव.
इसका वर्ण-विच्छेद करने पर ‘स् + अं(अ + म्) + भ् + अ + व् + अ’ वर्ण मिलते हैं. इस शब्द में अनुस्वार ‘अं’ का उच्चारण (अ + म्) जैसा हुआ है, पर अलग-अलग शब्दों में इसका रूप बदल जाता है; जैसे
संचरण = स् + अं(अ + न्) + च् + अ + र् + अ + ण् + अ
संभव = स् + अं(अ + म्) + भ् + अ + व् + अ .
संघर्ष = स् + अं(अ + ङ्) + घ् + अ + र् + ष् + अ
संचयन = स् + अं(अ + न्) + च् + अ + य् + अ + न् + अ
चंद्रबिन्दु एक विशेषक चिह्न है जो देवनागरी, गुजराती, बांग्ला, ओडिया, तेलुगु तथा जावा की लिपि आदि में प्रयुक्त होता है. इसका आकार चन्द्रमा जैसा होने से इसे ‘चन्द्रबिन्दु’ कहा जाता है. यह अनुनासिक को व्यक्त करता है. उदाहरण : चाँद (देवनागरी), দাঁত (बांग्ला).

10. वर्तनी में “इ ” और ” ई ” का प्रयोग
किसी स्त्रीलिंग संज्ञा शब्द के अंत में ” ई ” रहने पर उसके बहुवचन रूप बनाने में ” ई ” की जगह “इ ” की मात्रा का प्रयोग होता है जैसे_
नदी = नादिया
गाड़ी = गाडियां

11. वर्तनी में ” उ” और ” ऊ” का प्रयोग
ऊकारान्त स्त्रीलिंग सैया के बहुवचन रूप बनाने में “ऊ ” कि जगह ” उ ” की मात्रा लगाई जाती है.
जैसे –
वधू = वधूएं
बहू = बहूएं

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