‘आशाहीन’ कांग्रेस पार्टी ने चुनाव के बाद सपा के साथ गठबंधन का विकल्प खुला रखा है

हार से हाहाकार, SP-कांग्रेस का राजनीतिक व्यापार!

कांग्रेस सपा

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सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं, चोर-चोर मौसरे भाई या फिर हार के डर से हाहाकार! इस खबर के लिए आप कोई भी मुहावरा इस्तेमाल कर सकते हैं, पर सपा ने इसे राजनीतिक शिष्टाचार का नाम दिया है। इसी बीच खबर है कि कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों ने मंगलवार को यूपी में करहल (मैनपुरी) और जसवंत नगर (इटावा) सीटों से नामांकन दाखिल नहीं किया है। ध्यान देने वाली बात है कि करहल (मैनपुरी) से समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और जसवंत नगर (इटावा) से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव चुनाव लड़ रहे हैं।

राजनीतिक शिष्टाचार या राजनीतिक व्यापार?

करहल (मैनपुरी) विधानसभा सीट से अखिलेश यादव की दावेदारी से पहले कांग्रेस ने ज्ञानवती यादव के नाम की घोषणा की थी, परंतु अखिलेश के दावेदारी का ऐलान होते ही, उन्होंने अपना नामांकन दाखिल नहीं किया। जबकि जसवंत नगर विधानसभा सीट से सपा के टिकट पर शिवपाल यादव के नाम की घोषणा होते ही कांग्रेस ने वहां से भी अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा। मैनपुरी से ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के समन्वयक मनीष शाह ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा, “हमें आलाकमान से निर्देश मिले कि हमें यहां से नामांकन दाखिल नहीं करना चाहिए और हमने ऐसा ही किया। यह राजनीतिक शिष्टाचार का हिस्सा है।

ध्यान देने वाली बात है कि इन दोनों विधानसभा सीटों पर तीसरे चरण में मतदान होना है और मंगलवार को उम्मीदवारों के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने की आखिरी तारीख थी। तीसरे चरण का मतदान 20 फरवरी को होगा। सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने भी इसे ‘राजनीतिक शिष्टाचार’ बताया।

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कांग्रेस को हार का भय

दरअसल, राजनीतिक शिष्टाचार के आड़ में दोनों दल अपने भय को छिपा रहें हैं। दोनों को पता है कि मोदी-योगी के सामने उनकी राह कठिन है, अतः वो राजनीतिक शिष्टाचार के आड़ में गठबंधन के संभावनाओं को खुला रखना चाहते हैं। इन दलों के पास कोई राजनीतिक आधार, विचार और शिष्टाचार नहीं है। इनका बस ये मानना है कि तुम हमारे परिवारवालों को जीतने दो, हम तुम्हारे परिवारवालों को जीतने देंगे, अन्यथा सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शिष्टता तो प्रतिद्वंद्विता है।

कांग्रेस परिवार को बचाएगा यादव परिवार

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि कांग्रेस के ‘माँ-बेटे’ की पकड़ अमेठी-रायबरेली में दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। राहुल गांधी को तो वायनाड़ ने बचा लिया, वरना अमेठी में तो उन्होंने हार का स्वाद चख ही लिया। इस बार उम्मीद है कि सोनिया गांधी की सीट भी उखड़ जाएगी, जिससे यूपी से प्रियंका गांधी का राजनीतिक अस्तित्व बनने से पहले ही मिट सकता है। अतः यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने सौदा कर लिया है। कांग्रेस यादव परिवार के खिलाफ अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा करेगी, बदले में यादव परिवार भी लोकसभा चुनाव में ऐसा ही दांव चलकर कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करेगी। राजनीतिक शिष्टाचार का आवरण तो बस इनके ड़र और राजनीतिक व्यापार को छिपाने के लिए डाला गया है!

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