ओवैसी की सलामती के लिए चढ़ाई गई 101 बेज़ुबानों की बलि, PETA ने साधी चुप्पी

यह भेदभाव नहीं चलेगा!

101 बकरियों की बलि

उत्तर प्रदेश में अपनी चुनावी रैली करने पहुंचे लोकसभा सांसद और AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के काफिले पर 3 फरवरी 2022 को जब वे मेरठ से दिल्ली की ओर लौट रहे थे तब छजारसी टोल प्लाजा के पास उनके कार पर हमलवारों ने तीन से चार राउंड फायरिंग की थी। हालांकि, सौभाग्य वश AIMIM प्रमुख को इस घटना में कोई चोट नहीं आई, जिसके बाद उनके गृह राज्य में एक व्यापारी ने ओवैसी की लंबी उम्र की प्रार्थना करते हुए बीते रविवार को 101 बकरियों की बलि दी।

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ओवैसी की सलामती हेतु 101 बकरियों की चढ़ाई बलि

दरअसल, हैदराबाद के बाग-ए-जहांआरा में बकरियों को बलि दी गयी। इस मौके पर मलकपेट विधायक और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के नेता अहमद बलाला मौजूद थे। वहीं, 3 फरवरी की घटना के बाद से AIMIM के कई नेताओं ने अपने तेजतर्रार नेता की लंबी उम्र की कामना के लिए प्रार्थना की है। घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ओवैसी को Z श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की किंतु लोकसभा में बोलते हुए ओवैसी ने इसे अस्वीकार कर दिया। बता दें कि बकरियों की बलि देने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।

PETA ने पशुओं के अत्याचार पर साधी चुप्पी

वहीं, इस मामले में अपने आप को पशुओं के अधिकारों का संरक्षक कहने वाले PETA यानी ‘पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स’ एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। यूं तो PETA दुनियाभर में पशुओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्था के रूप में जानी जाती है, लेकिन कई बार यह संस्था अपने दोहरे मापदण्डों के चलते विवादों को निमंत्रण दे चुकी है।

PETA कई बार अपने पशु-प्रेम की आड़ में हिन्दू-विरोधी एजेंडा को भी बढ़ावा देती आई है। वैसे तो PETA हर धर्म के ऐसे त्यौहारों पर टिप्पणी करती है, जो किसी न किसी तरीके से पशुओं के अधिकारों का हनन करते हैं। लेकिन जब बात हिन्दू धर्म के त्यौहारों की आती है, तो PETA अपनी एजेंडावादी मानसिकता के चलते ऐसे मामलों में कुछ ज़्यादा ही दिलचस्पी दिखाता है।

वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था और इसमें एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया और PETA इंडिया की सबसे बड़ी भूमिका थी। यह पहली बार नहीं है कि जब पशुओं की बलि चढ़ाने वाला शख्स किसी धर्म विशेष (मुस्लिम) से संबंध रखता हो और इस पर PETA ने चुप्पी साध ली हो। इससे पहले वर्ष 2014 में PETA ने मुसलमानों को शाकाहारी ईद मनाने का सुझाव देने की कोशिश की थी, जिसके बाद इसके कार्यकर्ताओं को इस्लामवादियों ने बुरी तरह पीटा था।

PETA को निष्पक्ष होने की है आवश्यकता

इसके बाद जब वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर दोबारा से जलीकट्टू के आयोजन को मंजूरी दी थी, तो वह PETA ही था जिसने सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में इस अधिसूचना के खिलाफ याचिका दायर की थी। लेकिन आज जब ओवैसी के लिए 101 बकरियों की बलि दी गई है, तब भी PETA ने चुप्पी साध कर अपनी लिबरल मानसिकता और एजेंडा को उजागर कर दिया है।

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इन्हीं दोहरे मानदंडों की वजह से भारत में PETA पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी कई बार उठ चुकी है। PETA जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन हिंदुओं के खिलाफ अपना एजेंडा चलाते हैं लेकिन जब दूसरे धर्मों की बात आती है तो ऐसी संस्थाएं एक्शन के नाम पर सिर्फ कुछ ट्विट्स करने का काम करती हैं। ऐसे में, PETA को पशुओं के अधिकारों की इतनी ही चिंता है तो उसे बिना धर्म की परवाह किए सभी मामलों पर खुलकर अपनी राय रखनी चाहिए।

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