महाभारत के कई रहस्यों से उठेगा पर्दा, पांडवों की राजधानी में काम पर लगी ASI

केंद्र सरकार का यह कदम सराहनीय है!

Hastinapur

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हिन्दू धर्मग्रंथों में लिखित बातों को अनुयायी शास्वत सत्य मान कर उसके कण-कण को पूजते थे, पूजते हैं और आगे भी पूजते रहेंगे। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि लंबे समय से कुछ तुच्छ प्रवृत्ति के विकृत मानसिकता वाले लोग महाभारत जैसे विशाल काव्य ग्रंथ को सदैव काल्पनिक बताते आए हैं। ऐसे में ये घटिया लोग तो ज्ञान के भंडार श्रीमद्भागवत गीता को भी काल्पनिक ही बताएंगे। इसी बीच इन सभी के मुंह पर करारा तमाचा जड़ने के लिए अब ASI भी अपनी कमर कस चुका है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने 70 साल के अंतराल के बाद हस्तिनापुर में खुदाई शुरू कर दी है, क्योंकि इस जगह को केंद्र सरकार की एक योजना के तहत ‘प्रतिष्ठित साइट’ के रूप में विकसित करने के लिए चुना गया है। यह पहली बार नहीं है, जब हस्तिनापुर में उत्खनन होने जा रहा है। इससे पहले वर्ष 1952 में हस्तिानपुर में उत्खनन हुआ था, तब हजारों वर्ष पुराने कई रहस्यों से पर्दा उठा था। ऐसे में यह बड़ा मौका है, जब पुनः उत्खनन के काम को आगे बढ़ाया जा रहा है।

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पांडवों की राजधानी में आरंभ हुआ काम

दरअसल, हस्तिनापुर को कौरवों और पांडवों की राजधानी माना जाता है। पुरातत्वविदों का दावा है कि उन्होंने महाभारत काल से जुड़े कुछ तत्वों की खोज की है। जिसके अनुसार चल रही खुदाई इसकी एक कड़ी खोजने में मदद कर सकती है। संस्कृति मंत्रालय के तहत केंद्र सरकार साइट पर संग्रहालयों के साथ पांच पुरातत्व स्थलों को ‘प्रतिष्ठित स्थलों’ के रूप में विकसित करने की तैयारी में है। चयनित स्थलों में हस्तिनापुर (यूपी), शिवसागर (असम), राखीगढ़ी (हरियाणा), धोलावीरा (गुजरात) और आदिचनल्लूर (तमिलनाडु) शामिल हैं। हस्तिनापुर मेरठ में जिला मुख्यालय से 30 किमी की दूरी पर स्थित है और इसे महाभारत काल के ‘कुरु साम्राज्य’ की राजधानी माना जाता है। मेरठ के जिलाधिकारी के. बालाजी ने गुरुवार को इस संबंध में अधिकारियों के साथ बैठक कर मवाना क्षेत्र के अनुमंडलीय दंडाधिकारी अमित कुमार गुप्ता, क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी अंजू चौधरी और अन्य अधिकारियों को संग्रहालय स्थापित करने के लिए 5 एकड़ जमीन की पहचान करने के निर्देश दिए हैं।

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केंद्र सरकार का सराहनीय कदम

बालाजी ने कहा कि यह ‘प्रतिष्ठित स्थल’ और संग्रहालय पर्यटकों को आकर्षित करने और शोधकर्ताओं और इतिहास में गहरी रुचि रखने वालों को इतिहास और संस्कृति के बारे में प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने में मदद करेंगे। ASI की टीम ने एक सप्ताह पहले ‘उल्टा खेरा’ नामक अधिसूचित क्षेत्र में खुदाई शुरू की थी। इतिहासकार के के शर्मा ने कहा कि हस्तिनापुर में आखिरी बार खुदाई 1950 में प्रसिद्ध पुरातत्वविद् डॉ बी बी लाल की देखरेख में की गई थी। अब 70 साल बाद ASI ने फिर से साइट पर खुदाई शुरू की है। प्रोफेसर शर्मा ने आगे कहा, “यह केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया एक सराहनीय कदम है, इतिहास के शिक्षक होने के नाते, मैं कह सकता हूं कि हस्तिनापुर जैसी साइटों पर इस तरह की खुदाई क्षेत्र के समृद्ध इतिहास में झांकने का अवसर और  प्रामाणिक निष्कर्ष तक पहुँचने का मार्ग प्रदान करती है। ”

ध्यान देने वाली बात  है कि ‘प्रतिष्ठित स्थलों’ के ऑन-साइट संग्रहालयों में देश की समृद्ध विरासत और संस्कृति के विवरण के साथ-साथ खुदाई में मिली चीजों को रखा जाएगा। जबकि अन्य शहर और स्थान स्वतंत्रता के बाद फले-फूले और विकसित हुए, पर ऐतिहासिक महत्व के एक स्तंभ जिसे हस्तिनापुर के नाम से जाना जाता है, वह अभी भी वीरान है। इस स्थान को ‘प्रतिष्ठित स्थलों’ के रूप में विकसित किए जाने वाले पांच स्थलों में शामिल किया गया था, क्योंकि हस्तिनापुर का उल्लेख महाभारत और प्राचीन जैन ग्रंथों में भी मिलता है। प्रोफेसर शर्मा ने कहा कि एएसआई के अधिसूचित स्थलों में और उसके आसपास अतिक्रमण चिंता का विषय है, क्योंकि इस तरह के अतिक्रमण पुरातत्व के कई महत्वपूर्ण तथ्यों को हमेशा के लिए नष्ट कर देते हैं।

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देश का नया टूरिस्ट स्पॉट बन जाएगा हस्तिनापुर

आपको बता दें कि सत्य कितना भी गहरा क्यों न हो, उसको समाज में सबके सामने लाने में कितना भी समय लग जाए पर सच सदैव सच ही रहता है। ऐसा ही महाभारत से जुडी भ्रांतियों को लेकर एक साफ़ तथ्य है कि महाभारत या अन्य धार्मिक ग्रंथ न कभी काल्पनिक थे और न ही हिन्दू धर्म के अनुयायी इतने नासमझ है कि सच और झूठ में भेद न कर पाएं। ऐसे में अबकी बार जो खुदाई शुरू हुई है, इससे बहुत सारे तथ्यों और रहस्यों से पर्दा हटने की प्रबल संभावना है। ऐसे में यदि यह सत्य होता है तो  आगामी भविष्य में न केवल हस्तिनापुर की सूरत बदलेगी, बल्कि विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैश होकर, हस्तिनापुर देश का नया टूरिस्ट स्पॉट भी बन जाएगा।

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