आजम खान चुनावी रैलियों में शामिल नहीं होंगे, वो जेल में बैठे-बैठे चुनाव हारेंगे!

सब कर्मों का खेल है भैया!

आजम खान जमानत

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भगवान के घर में देर है अंधेर नहीं! जब पाप का घड़ा भर जाता है, तब आततायी को कोई नहीं बचा सकता। कलेक्टर से अपने जूते साफ कराने की बात कहने वाले आजम खान को आखिरकार सुप्रीम कोर्ट अब सबक सीखा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिन मंगलवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता आजम खान को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रभावी ढंग से लड़ने हेतु अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उन्हें राहत के लिए ट्रायल कोर्ट या इलाहाबाद उच्च न्यायालय जाना चाहिए। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने कहा कि वह चार मामलों में जमानत देने की रिट याचिका पर सीधे विचार नहीं कर सकते। यह असाधारण है और पहले उन्हें ट्रायल कोर्ट या इलाहाबाद उच्च न्यायालय में गुहार लगानी चाहिए।

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कोर्ट में सिब्बल का तर्क तो ‘कुतर्क’ निकला

दरअसल, लोकसभा सदस्य आजम खान अपने गृह क्षेत्र रामपुर से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल के दौरान दर्ज मामलों के सिलसिले में फरवरी 2020 से जेल में हैं। आजम खान का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बताया कि उनके मुवक्किल को 88 आपराधिक मामलों में आरोपी बनाया गया है। उन्होंने कहा, “हम अपनी न्यायिक बुद्धि के दिवालियेपन में हैं। उनके खिलाफ 88 प्राथमिकी (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज हैं और उनमें से 84 में उन्हें जमानत मिल चुकी है। हम यहां चार मामलों में अंतरिम जमानत के लिए हैं, ताकि वह आगामी चुनाव प्रभावी ढंग से लड़ सकें।“

जिस पर खंडपीठ ने जवाब दिया, “अनुच्छेद-32 अर्थात् मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायिक अधिकार के तहत ऐसी याचिका योग्य नहीं हो सकती है। आप जमानत के लिए अनुच्छेद-32 की याचिका कैसे दायर कर सकते हैं? आप हाईकोर्ट जाएं।“

इसपर सिब्बल ने पुनः तर्क दिया, “प्राथमिकी उनके मुवक्किल के खिलाफ राजनीतिक प्रतिशोध का परिणाम है। उन्होंने कहा कि एक प्राथमिकी 16 साल पुरानी है और दूसरी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के वैचारिक स्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना से संबंधित है। फिर, हम कहां जाएं? जब हम हाईकोर्ट जाते हैं और कोर्ट को मेरी फाइल तक नहीं मिलती। फिर मामला उस जज के पास जाता है, जिसके पास मामला नहीं है। मेरा मुवक्किल बिना कुछ किए जेल में है। उस पर एक ही दिन में, 25 प्राथमिकी दर्ज की गई है।”

जिसके जवाब में पीठ ने कहा, कृपया, इस राजनीति को अदालत में न लाएं। हम उसे वहां के मामलों में जमानत कैसे दे सकते हैं? आपको उच्च न्यायालय जाना होगा। वहां के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष अनुरोध करें। आपके मुवक्किल आजम खान उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने और अपनी जमानत याचिकाओं के शीघ्र निपटान की मांग करने के लिए स्वतंत्र हैं। अदालत स्वतंत्रता के नुकसान के संबंध में उनके दावे को ध्यान में रखेगी।”

चुनाव के दौरान जेल में ही बंद रहेंगे आजम

बताते चलें कि अपनी जमानत याचिका में आजम खान ने कहा था कि राज्य सरकार उनके शेष जमानत आवेदनों पर कार्यवाही में देरी करने के लिए भरपूर प्रयास कर रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चुनाव के दौरान वह कैद रहें और प्रचार नहीं कर सकें। सपा ने रामपुर सीट से आजम खान को टिकट दिया है, जबकि उनके बेटे अब्दुल्ला आजम को स्वार विधानसभा से उम्मीदवार के रूप में नामित किया गया है, वह दो साल से जेल में थे और अब जमानत पर बाहर हैं।

गौरतलब है कि अब्दुल्ला आजम ने वर्ष 2017 का चुनाव स्वार विधानसभा से लड़ा और जीत हासिल की। दिसंबर 2019 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए उनका चुनाव रद्द कर दिया कि जब उन्होंने अपना नामांकन दाखिल किया, तो उनकी आयु 25 वर्ष से कम थी। इस बार आजम खान जेल में हैं और इस बात की चर्चा तेज है कि उनकी गैर-मौजूदगी में उनके बेटे की चुनाव हारने की पूरी संभावना है। अगर आजम खान खुद भी चुनाव हार जाते हैं, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी!

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