प्रिय अखिलेश-डिंपल, आपने योगी और मोदी को बिना परिवार वाला कहा, आइए उनके परिवार से मिलाते हैं

और कितना गिरोगे 'सपा' वालों!

PM Modi

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उत्तर प्रदेश सरकार को पारिवारिक संस्था के रूप में चलाने वाली समाजवादी पार्टी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर उनके संन्यास को लेकर प्रहार कर रही है। अपने ससुर मुलायम सिंह यादव और पति अखिलेश यादव के बल पर राजनीति में जगह बनाने वाली पूर्व सांसद डिंपल यादव ने योगी आदित्यनाथ पर प्रहार करते हुए कहा कि “उनके (भाजपा के) मुख्यमंत्री ने अपना परिवार छोड़ दिया है, वे परिवार के बारे में क्या जानते हैं?” इतना ही नहीं डिंपल यादव ने योगी आदित्यनाथ के संन्यासियों वाली वेशभूषा अर्थात् भगवा कपड़े को लेकर भी आपत्तिजनक टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि भगवा रंग लोहे पर लगी जंग का रंग है। इस प्रकार डिंपल यादव ने सनातन संस्कृति का अपमान किया ही है और साथ ही परिवार का मुद्दा उठाकर एक ऐसे विमर्श को छेड़ दिया है, जहां समाजवादी पार्टी योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा की परिपाटी के नेताओं के आगे दूर-दूर तक नहीं टिकेगी।

ध्यान देने वाली बात है कि भारत की राजनीति में परिवारवाद सदैव से हावी रहा है। कांग्रेस पार्टी ने प्रधानमंत्री पद को एक परिवार की विरासत बना दिया! उसी परिपाटी पर राजनीति करने वाले दल जैसे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, बहुजन समाज पार्टी सहित देश के अन्य भागों में सक्रिय दल जैसे तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, डीएमके आदि ने प्रदेश के स्तर पर लोकतंत्र को पारिवारिक सामंतशाही का उदाहरण बना कर छोड़ दिया है! जिस प्रकार सामंती शासन में केंद्र में बड़े राजा और क्षेत्रीय स्तर पर छोटे-छोटे सामंतों का शासन चलता है, उसी प्रकार लंबे समय तक भारत में केंद्र में नेहरू-गांधी परिवार और राज्यों में यादव परिवार, पवार परिवार आदि परिवार वादी दलों का राज रहा है। इनकी तुलना भाजपा से करें, तो भाजपा के किसी बड़े नेता ने परिवारवाद को बढ़ावा नहीं दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाई-बंधु राजनीति में सक्रिय नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बहुत पहले ही परिवार को छोड़कर संन्यास धारण कर लिया है।

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साधारण जीवन जीते हैं पीएम मोदी के परिवार के लोग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात करें, तो उनके पिता दामोदर दास मोदी उनके दादा मूलचंद मगनलाल मोदी की 6 संतानों में एक थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं अपने पिता की 6 संतानों में एक हैं। उनके बड़े भाई सोमाभाई मोदी पुणे में एक एनजीओ चलाते हैं। एक कार्यक्रम में सोमाभाई मोदी का परिचय यह कह कर कराया गया कि वह प्रधानमंत्री मोदी के बड़े भाई हैं, तो उन्होंने उत्तर दिया कि वह एक व्यक्ति नरेंद्र मोदी के भाई हैं, जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के परिवार की बात करें तो उसमें 125 करोड़ भाई बहन है और वो उनमें एक है। यह बात इसलिए सत्य है, क्योंकि दोनों भाई कई सालों में एक बार भी नहीं मिल पाए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छोटे भाई पंकज मोदी ही केवल उनसे प्रायः मिलते हैं, वो भी केवल इसलिए क्योंकि वह प्रधानमंत्री की माता हीराबेन के साथ रहते हैं। अक्टूबर 2019 में प्रधानमंत्री मोदी की भतीजी का पर्स दिल्ली में चोरी हो गया था। इस खबर पर बहुत मजाक बना, किंतु जो बात ध्यान नहीं दी गई वह यह थी कि देश के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के परिवार के लोग कितना साधारण जीवन जीते हैं, अन्यथा आज तो एक व्यक्ति विधायक हो जाए तो उसके पूरे परिवार को राजनीतिक धौंस और शक्ति प्रदर्शन का मौका मिल जाता है।

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भरा-भरा है योगी आदित्यनाथ का परिवार

वहीं, दूसरी ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बात करें, तो जब कोरोना काल के दौरान उनके पिता का निधन हुआ था, योगी आदित्यनाथ उनके दाह संस्कार में भी नहीं जा सके थे, क्योंकि वो उस समय राज्य के कोरोना प्रबंधन की देखरेख कर रहे थे। योगी आदित्यनाथ के भी तीन भाई और तीन बहने हैं, अर्थात् वो अपने पिता की 7 संतानों में एक हैं। इस प्रकार देखें तो उनका परिवार भी भरा-भरा है। अपने परिवार के सबसे होनहार बच्चे योगी आदित्यनाथ ने जब संन्यास ग्रहण किया, तो उनके माता-पिता बहुत दुखी हुए। दोनों ने उन्हें वापस लौटाने के लिए बहुत समझाया, किंतु योगी को तो संन्यासी जीवन और समाज सेवा भा गई थी। जिस प्रकार भगत सिंह के मां-बाप ने उन पर विवाह के लिए दबाव बनाया, किंतु उन्होंने आजादी की लड़ाई को चुना, वैसा ही दृढ़ संकल्प योगी आदित्यनाथ ने भी दिखाया था और अपने संन्यास के मार्ग पर आगे बढ़ गए।

लेकिन बात वहीं है कि भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद की मानसिकता से ग्रस्त लोग संन्यास और संत जीवन की महत्ता को नहीं समझ सकते। जिन्होंने सरकारी पैसे पर सैफई महोत्सव जैसे आयोजन किए हो, अपने पिता के जन्मदिन को सरकारी खर्च पर मनाया हो, ऐसे अखिलेश यादव और उनके आलीशान मकान में उनके साथ रहने वाली उनकी पत्नी डिंपल यादव संन्यास की महत्ता को कभी नहीं समझ सकते! अखिलेश यादव को संन्यास झोला उठाकर भागना लगता है, ऐसी छोटी बातें वही कर सकता है, जो सरकारी आवास से अपने पैसे पर खरीदी गई टोंटी तक उखाड़ कर भाग गया हो!

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